वामपंथी श्रमिक संगठनों के कारण बरौनी का खाद कारखाना बंद हो गया था। अब 20 वर्ष बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से यह कारखाना नए संयंत्रों के साथ काम करने लगा है।
अमूमन यह देखा जाता है कि एक बार जो कारखाना बंद हो जाता है, तो वह सदा के लिए बंद ही हो जाता है। भारत मेें ऐसे कारखानों की कोई कमी नहीं है, जो अनावश्यक हड़तालों और नेताओं के हस्तक्षेप के कारण बंद हो गए हैं। ऐसे कारखानों को फिर से शुरू करने का बीड़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उठाया है। उनकी प्रतिबद्धता का ही फल है कि बिहार के एकलौते बरौनी खाद कारखाना ‘हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड (हर्ल) से नीम परत वाली यूरिया खाद, जिसका ब्रांड नाम है— ”अपना यूरिया” और अमोनिया का उत्पादन शुरू हो गया है।
8,387 करोड़ रु की लागत से बना यह कारखाना प्राकृतिक गैस पर आधारित है। इस कारखाने से प्रतिदिन 3,850 मीट्रिक टन ”अपना यूरिया” और 2,200 अमोनिया का उत्पादन होगा। हालांकि अभी यहां व्यावसायिक उत्पादन नहीं हो रहा है। उम्मीद है कि जल्दी ही व्यावसायिक उत्पादन भी होने लगेगा।
उल्लेखनीय है कि बरौनी खाद कारखाना 70 के दशक में बना था। यहां 1 नवंबर, 1976 से उत्पादन शुरू हुआ था। एक समय में इस कारखाने में 1.84 लाख मीट्रिक टन ‘मोती यूरिया’ का उत्पादन होता था। इससे बिहार और पड़ोसी राज्यों के किसानों को खाद की कमी से मुक्ति मिली थी, लेकिन व्यवस्था की कमजोरी और वामपंथी श्रमिक संघों की अनावश्यक हड़तालों ने स्थिति ऐसी बना दी कि यह कारखाना घाटे में जाने लगा। केवल 24—25 वर्ष में घाटा इतना बढ़ गया कि कारखाना को चलाना संभव नहीं रह गया और 1998-1999 में अस्थाई रूप से बंद कर दिया गया। इसके बाद 2002 में इस पर स्थाई रूप से ताला लगा दिया गया।
इसके बाद इसे खुलवाने के लिए कई आंदोलन हुए। आंदोलनों को देखते हुए 2008 में इसका शिलान्यास हुआ, लेकिन निर्माण नहीं हो सका। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो तो उनके सामने इस मामले को रखा गया। इसके बाद 25 मई, 2016 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे चालू करने का निर्णय लिया। फिर जो भी अचड़नें थीं, उन्हें दूर किया गया। इसके बाद 17 फरवरी, 2019 को प्रधानमंत्री बेगूसराय पहुंचे। उसी दिन उन्होंने पुराने खाद कारखाने के परिसर में नए कारखाने का शिलान्यास किया। अब उसी कारखाने में उत्पादन शुरू हुआ है।
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