एक तरफ दुनिया इस्लामी जिहाद से त्रस्त है और कैसे भी सबके समन्वय के साथ इस पर लगाम लागने के प्रयास कर रही है तो दूसरी ओर चीन है जो आतंकियों की ढाल जैसा बनता जा रहा है। ड्रैगन की इस हरकत के पीछे विशेषज्ञ पाकिस्तान से अपने स्वार्थ साधने की उसकी मजबूरी को वजह मान रहे हैं, लेकिन चीन नहीं जानता कि अपना बाजार बढ़ाने की फिराक में वह दुनिया के लिए जिहादी खतरा बढ़ा रहा है।
पिछले दो दिन में कम्युनिस्ट चीन ने दो आतंकियों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकी घोषित किए जाने से बचाया है। ये दोनों ही प्रस्ताव भारत और अमेरिका ने संयुक्त रूप से दाखिल किए थे। इनमें से एक आतंकी है पाकिस्तान का ‘दुलारा’, लश्करे-तैयबा का शाहिद महमूद और दूसरा है पाकिस्तानी जिहादी हाफिज सईद का बेटा हाफिज तलहा सईद।
चीन ने अपनी वीटो शक्ति का प्रयोग करते हुए इन दोनों जिहादियों की एक तरह से मदद की है। अभी तक वह पांच बार पाकिस्तानी आतंकियों तथा संगठनों को वैश्विक आतंकी घोषित कराने में अड़ंगा पैदा कर चुका है।
शाहिद महमूद वह आतंकी है जिसने लश्करे-तैयबा और जमात-उद-दावा के प्रमुख और संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित वैश्विक आतंकवादी हाफिज सईद के साथ साठगांठ करके भारत में जिहादियों के लिए ठिकाने बनाने तथा उनके मददगार खड़े करने का षड्यंत्र रचा था। इसने मजहबी कामों के नाम से पैसा इकट्ठा करके भारत में भेजा था, जिसे भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों को चलाने में लगाया गया था।
इस्लामी आतंकी शाहिद के विरुद्ध दिल्ली में एनआईए ने आतंक को पैसा देने का मामला दर्ज किया हुआ है। यह पैसा ‘फलाहे-इंसानियत’ के नाम से इकट्ठा किया गया था। मार्च 2012 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे लश्करे-तैयबा की मददगार आतंकी संस्था ठहराया था। इधर अक्तूबर 2020 में भारत ने भी शाहिद महमूद को यूएपीए-1967 कानून के अंतर्गत ‘वांटेड’ आतंकवादियों की सूची में शामिल किया था। 2007 में शाहिद लश्करे तैयबा में शामिल हुआ था।
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