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भारतमाता के अनमोल रत्न डॉ. अब्दुल कलाम

देश के 11वें राष्ट्रपति व ‘मिसाइल मैन’ के रूप में विख्यात महान वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कलाम की जीवनगाथा शून्य से शिखर पर पहुंचने की अप्रतिम दास्तान हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले ही वर्ष 1997 में राष्ट्र के सर्वोच्च सम्मान, ‘भारत रत्न’ से अलंकृत मां भारती के इस सच्चे सपूत का चमत्कारी व्यक्तित्व अनूठी प्रेरणास्पद कहानियों से भरा हुआ है। आज यानी 15 अक्टूबर 2022 को  डॉ. अब्दुल कलाम की 91वीं जयंती है।

by पूनम नेगी
Oct 15, 2022, 01:13 pm IST
in भारत
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देश के 11वें राष्ट्रपति व ‘मिसाइल मैन’ के रूप में विख्यात महान वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कलाम की जीवनगाथा शून्य से शिखर पर पहुंचने की अप्रतिम दास्तान हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले ही वर्ष 1997 में राष्ट्र के सर्वोच्च सम्मान, ‘भारत रत्न’ से अलंकृत मां भारती के इस सच्चे सपूत का चमत्कारी व्यक्तित्व अनूठी प्रेरणास्पद कहानियों से भरा हुआ है। आज यानी 15 अक्टूबर 2022 को  डॉ. अब्दुल कलाम की 91वीं जयंती है। इस पावन अवसर पर प्रस्तुत हैं, इस महामानव के जीवन से जुड़े कुछेक ऐसे प्रेरणादायी प्रसंग जो उन्हें भारत के सनातन जीवन मूल्यों को जीने वाला सच्चा भारतीय साबित करते हैं।

15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोडी गांव में जन्मे  डॉ. कलाम का पूरा नाम ‘अबुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम’ था। उनके पिता जैनुलाब्दीन नाविक और माता अशिअम्मा एक आदर्श गृहिणी थीं। दस भाई-बहनों में सबसे छोटे कलाम का बचपन काफी अभावों में बीता। सात वर्षीय कलाम ब्रहमबेला में उठकर और स्नान आदि से निवृत होकर प्रातः 4 बजे  गणित के ब्राह्मण शिक्षक के पास पढ़ने पहुंच जाते थे; कारण की निःशुल्क शिक्षा की यही कठोर शर्त थी। पढ़ाई से वापस आकर वे रेलवे स्टेशन, बस अड्डे व  सड़कों पर अखबार बेचते थे और बिजली न होने के कारण रात में केरोसिन की ढिबरी जलाकर पढ़ाई करते। अपनी जीवनी में डॉ. कलाम लिखते हैं कि बचपन की इस अनुशासित व संघर्षपूर्ण दिनचर्या ने कम उम्र में ही उन्हें दायित्वों का बोध कराकर आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा दिया। उनके बालमन पर उनके स्कूली शिक्षक सुब्रमण्यम अय्यर की शिक्षाप्रद बातों का इतना गहरा असर पड़ा  और उन्होंने ‘उड़ान’ को करियर बनाने का निश्चय कर लिया।

तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज से स्नातक के बाद मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान से ‘वैमानिकी अभियांत्रिकी’ में विशेषज्ञता हासिल कर उन्होंने ‘हावरक्राफ्ट परियोजना’ पर काम करने हेतु ‘भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान’ में प्रवेश लिया। कलाम ने ‘एसएलवी-3’ के लिए उद्योगों के साथ साझेदारी की और विश्वविद्यालयों की वैज्ञानिक प्रतिभाओं का उपयोग किया। ‘एसएलवी-3’ के लिए विकसित प्रौद्योगिकियों ने बड़े प्रक्षेपण वाहनों, ‘पीएसएलवी’ और ‘जीएसएलवी’ के लिए ठोस आधार प्रदान किया। 1962 में अंतरिक्ष विभाग से जुड़ने पर कलाम को विक्रम साराभाई, सतीश धवन और ब्रह्म प्रकाश जैसे वैज्ञानिकों का सान्निध्य मिला। साराभाई, कलाम के गुरु व मार्गदर्शक थे। साराभाई द्वारा परिकल्पित प्रक्षेपण यान परियोजना ‘एसएलवी-3’ के निदेशक थे कलाम, जिसको प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढांचे और मानव संसाधनों के साथ सफल बनाना चुनौती थी। कलाम के रॉकेट परिज्ञापन प्रयोग के परिणामस्वरूप, सोडियम वाष्प क्लाउड के मूल्यांकन के लिए बनाये नाइके-अपाचे परिज्ञापी रॉकेटों में दो विफल हो गये तो कारण पता लगाने और योजना तैयार करने के आदेश हुए क्योंकि कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय होने से चिंताएं बड़ी थीं। साराभाई तिरुवनंतपुरम आये तो असफलता से चिंतित कलाम, साराभाई से मिलने गये, उन्होंने मुस्कुराकर कलाम को एक कागज दिया। कलाम ने कागज खोला तो उनका पदोन्नति आदेश था। साराभाई ने कलाम की क्षमताओं का उल्लेख करके अच्छे भविष्य की कामना की और कलाम ने साराभाई से दो उड़ानें विफल होने की माफी मांगी, जिसको खारिज करके साराभाई बोले कि ‘‘असफलताओं से ही सीखा जाता है, आप सही दिशा में काम कर रहे हैं, सफल होंगे।’’ इस प्रोत्साहन ने उन्हें नवऊर्जा से भर दिया और अंततः वे अपने लक्ष्य में कामयाब होकर ही रहे। आज स्वदेशी बैलेस्टिक मिसाइल प्रणालियों के विकास तथा लॉन्चिंग तकनीक में भारत की आत्मनिर्भरता कलाम की अभूतपूर्व उपलब्धियां हैं जिनके लिए वो सदैव स्मरणीय रहेंगे। उन्होंने मिसाइल कार्यक्रम के द्वारा भारत के सशक्तिकरण में अविस्मर्णीय योगदान दिया है। कलाम ने राष्ट्र को परमाणु संपन्न बनाकर शक्तिशाली, आत्मनिर्भर, विकसित भारत का स्वप्न साकार करने हेतु भारतीयों के दिल-दिमाग जोड़े।

शानो-शौकत व दिखावे से कोसों दूर ‘सादा जीवन-उच्च विचार’ के हिमायती, सादगीपसंद, अनुशासनप्रिय कलाम की दिनचर्या मुख्यतः पढ़ना-लिखना थी। वे घर में टेलीविजन न रखकर रेडियो सुनते थे। कलाम हमेशा नीली कमीज़ और स्पोर्ट्स शूज़ पहनते थे। सूट और टाई में वे खुद को असहज महसूस करते थे। इस बाबत उनके जीवन का एक किस्सा विख्यात है। बात 1 मार्च 1998 को राष्ट्रपति भवन में आयोजित ‘भारतरत्न’ पुरस्कार समारोह की है। ‘’असहज कलाम बार-बार अपनी टाई को छू रहे थे क्योंकि उससे उनका दम घुटता था। टाई से चश्मा साफ करते देख सचिव ने उन्हें टोका तो कलाम बोले कि ‘टाई उद्देश्यहीन वस्त्र है जिसका कुछ तो इस्तेमाल कर रहा हूँ।‘’ इसी तरह राष्ट्रपति बनने पर दर्जी ने कलाम का नाप लेकर बंद गले के चार सूट सिले लेकिन कलाम खुश नहीं थे। उनको सूट में घुटन होती थी इसलिए दर्जी को सलाह दी कि गर्दन के पास थोड़ा खोल दे, इस तरह वो ‘कलाम सूट’ कहलाए। 1980 में इंदिरा जी ने कलाम को मिलने बुलाया तो वे सतीश धवन से बोले, ‘‘सर! मेरे पास न सूट है, न जूते; केवल  चेर्पू है (तमिल में चप्पल)।’’ इस पर धवन ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘कलाम! तुम पहले ही सफलता का सूट पहने हो।’’ ऐसे ही जब डॉ. कलाम का अटल बिहारी वाजपेयी जी से परिचय हुआ तो उन्होंने हाथ मिलाने की बजाए कलाम को गले लगा लिया।

कलाम कुरान के साथ  गीता भी उतनी ही श्रद्धा से पढ़ते थे। वो शुद्ध शाकाहारी थे, शराब छूते नहीं थे, जहां जाते वहां निर्देश रहते कि उन्हें शाकाहारी भोजन ही परोसा जाए। मानवता को सर्वोपरि धर्म मानने वाले कलाम ने राष्ट्रपति भवन के आतिथ्य विभाग को निर्देश दिया था कि इफ्तार में जो ढाई लाख रुपए खर्च होते हैं, उनसे अनाथालयों के बच्चों के लिए आटा-दाल, कंबलों और स्वेटरों का प्रबंध किया जाये और उनके निर्देश पर 28 अनाथालयों के बच्चों में यह सामान वितरित किया गया। इसी तरह एक बार जब कलाम के 52 परिजन नौ दिन राष्ट्रपति भवन में ठहरे तो उनके प्रस्थान के बाद सिद्धांतवादी कलाम ने ‘तीन लाख बावन हज़ार रुपए’ का बिल स्वयं के अकाउंट से राष्ट्रपति कार्यालय में जमा कराया। कलाम ने 25 जुलाई, 2002 से 25 जुलाई 2007 तक राष्ट्रपति पद सुशोभित किया। उनको ‘महामहिम’ या ‘हिज़ एक्सेलेंसी’ कहलाना पसंद नहीं था। कलाम ‘आम लोगों के राष्ट्रपति’ यानि ‘पीपुल्स प्रेसीडेंट’ कहलाते थे। पत्रों के जवाब स्वयं लिखते थे। कलाम राष्ट्रपति बने तो दो सूटकेस लेकर राष्ट्रपति भवन गये और कार्यकाल समाप्त होने पर वही दो सूटकेस लेकर विदा हुए। सचमुच प्रणम्य है ऐसी निस्पृहता।

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कलाम प्रकृति और अध्यात्म से गहरा जुड़ाव रखते थे। कविताएं लिखने के साथ संगीत में भी उनकी खासी रुचि थी। फुर्सत के पलों में रुद्रवीणा बजाना उन्हें काफी रुचता था। वे सुनिश्चित करते थे कि पक्षियों, जानवरों की तस्वीरें लेते समय वे परेशान न हों। उन्होंने एक बार बाग में टहलते वक़्त देखा कि एक मोर मुंह नहीं खोल पा रहा है। उन्होंने तत्क्षण पशु चिकित्सक से जांच करने को कहा। जांच में पता चला कि मोर के मुंह में ट्यूमर होने से वो मुंह खोलकर खा नहीं पा रहा था। कलाम के निर्देश पर चिकित्सक ने आपात सर्जरी करके ट्यूमर निकालकर उसे स्वस्थ कर दिया। ऐसे ही एक बार कलाम ने देखा कि एक सुरक्षागार्ड ठंड में ठिठुर रहा है, उन्होंने उसके केबिन में जाड़े में हीटर और गर्मी में पंखे की व्यवस्था करायी। राष्ट्रपति भवन के उद्यान में मयूर नृत्य और हिरणों की अठखेलियों के दृश्यों ने उनका लेखन निखारा। सत्कर्मों पर आस्था रखने वाले कलाम की उत्कृष्ट सोच, प्रेरणादायी विचारों से भरपूर आत्मकथा ‘द विंग्स ऑफ फायर’, अंग्रेज़ी में छपी, फिर हिंदी, फ्रेंच, चीनी सहित 13 भाषाओं में अनुवादित हुई। कलाम लिखित अन्य किताबों में ‘इंडिया 2020’,  ‘माइ जर्नी’, ‘विज़न फॉर द न्यू मिलेनियम’, ‘मिशन ऑफ इंडिया: ए विज़न ऑफ इंडियन यूथ’ तथा ‘अ जर्नी थ्रू द चैलेंजेज़’ आदि प्रमुख हैं।

फरवरी 2007  में डॉ. कलाम वर्ष 1971 के युद्ध के हीरो, फील्डमार्शल सैम मानेकशॉ से मिलने ऊटी गये। उन्हें पता चला कि मानेकशॉ को फील्डमार्शल की पदवी तो मिली पर भत्ते और सुविधाएं नहीं। उन्होंने मानेकशॉ के साथ, मार्शल अर्जन सिंह के भी सारे बकाया भत्तों का भुगतान कराया। कलाम का बच्चों से लगाव सर्वविदित है। वे विद्यार्थियों के बीच बेहद लोकप्रिय थे। बच्चों-युवाओं से मुलाकात और चर्चाओं के दौरान सदैव उत्साहित, मिलनसार, विनोदी और दयालु रहते थे। कलाम युवाओं को विज्ञान का महत्व समझाते। ऊंचे लक्ष्य, कड़ी मेहनत, बड़े सपने देखने, प्रगति करने, सफल होने के लिए प्रेरित, प्रोत्साहित करते थे। काबिलेगौर हो कि बच्चों के प्रति प्रेम देखकर, संयुक्त राष्ट्र ने कलाम के जन्मदिवस को ‘विद्यार्थी दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।  ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ की अवधारणा  के पोषक थे। उन्हें ग्रामीण भारत की यात्रा करना, छात्रों-शिक्षकों, कृषकों से मिलना भाता था। सद्भावना और बड़े स्वप्नों के पक्षधर कलाम अक्सर कहते थे कि, ‘ताकत, ताकत का सम्मान करती है।’ जानना दिलचस्प हो कि कलाम ने ‘अग्नि’ मिसाइल के लिए विकसित सामग्री से पोलियो प्रभावित बच्चों के लिए हल्के कैलिपर्स (3 किलो से घटाकर 300 ग्राम  वजन के) बनाने की तकनीक विकसित की। साथ ही  हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. सोमा राजू के साथ सस्ता कोरोनरी स्टेंट बनाया, नाम रखा ‘कलाम-राजू स्टेंट’। जिसकी मदद से लाखों निर्धन हृदय रोगियों की धड़कन बनी हुई है।

सार रूप में कहें तो डॉ. अब्दुल कलाम भारत की ऐसी चुनिंदा हस्तियों में शुमार हैं जिन्हें विज्ञान के क्षेत्र में अपने उत्कृष्टतम योगदान, देशहित और समाजोत्थान हेतु किये गये कार्यों के लिए सर्वोच्च पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1981 में ‘पद्मभूषण’, 1990 में ‘पद्मविभूषण’ और देश-विदेश के 48 विश्वविद्यालयों, संस्थानों ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। अन्ना यूनिवर्सिटी ने डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया। डॉ.  कलाम 27 जुलाई, 2015 को आईआईएम, शिलॉग में, ‘रहने योग्य गृह’ पर व्याख्यान दे रहे थे कि अचानक मंच पर ही उन्हें हृदयाघात हुआ, वे बेहोश होकर गिरे और देहांत हो गया। भले ही डॉ. कलाम की भौतिक काया अब इस भूलोक में नहीं है, मगर उनके काम, विचार और उपलब्धियां सदा सदा के लिए भारतमाता को गौरवान्वित करती रहेंगी।

 

 

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