इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुस्लिम महिला के हक में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि इस्लामिक कानून एक पत्नी के रहते दूसरी शादी करने का अधिकार देता है, लेकिन उस व्यक्ति को पत्नी की मर्जी के खिलाफ साथ रहने का आदेश अदालत नहीं दे सकती है। उस महिला को बाध्य कर साथ रहने का आदेश नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि यदि महिला को बाध्य किया गया तो यह उसके गरिमामय जीवन और संवैगाधानिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
कोर्ट ने कुरान की सूरा 4 आयत 3 के हवाले से कहा कि यदि मुसलमान अपनी पत्नी तथा बच्चों की सही देखभाल करने में सक्षम नहीं है तो उसे दूसरी शादी करने की इजाजत नहीं होगी।
हाई कोर्ट ने परिवार अदालत द्वारा दिए गए निर्णय को सही ठहराया। परिवार अदालत ने संत कबीर नगर निवासी हमीदुन्निशा को राहत दी थी। उसके पति अजीजुर्रहमान ने पत्नी के साथ रहने के लिए परिवार अदालत में मुकदमा दायर किया था। परिवार अदालत ने उसके पक्ष में आदेश नहीं दिया तो वह हाई कोर्ट चला गया। हाई कोर्ट से भी उसे राहत नहीं मिली।
हाई कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि पर्सनल लॉ के नाम पर नागरिकों को संवैधानिक मूल अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। गौरतलब है कि हमीदुन्निशा का निकाह वर्ष 1999 में अजीजुर्रहमान के साथ हुआ था। हमीदुन्निशा के पिता ने अपनी अचल संपत्ति उसे दान कर दी है। वह अपने तीन बच्चों के साथ अपने पिता (93) की देखभाल करती है। अजीजुर्रहमान ने उसे बताए बिना दूसरी शादी कर ली। इसके बाद उसने फैमिली कोर्ट में पहली पत्नी को साथ रखने के लिए केस दायर किया।
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