इस वर्ष दीपावली में लोगों को देसी गाय के गोबर से बने दीपक जलाने का अवसर मिलने जा रहा है। यह अवसर ‘श्रीहरि सत्संग समिति’ उपलब्ध करा रही है। इस समय गोबर से दीपक बनाने का कार्य तेजी से चल रहा है। दीपक झारखंड के देवघर जिले के दुम्मा और पश्चिम बंगाल के नताशापाड़ा में बन रहे हैं। लगभग 200 महिलाएं अब तक 3,00,000 दीयों का निर्माण कर चुकी हैं। उम्मीद है कि 16 अक्तूबर तक 5,00,000 दीए बन जाएंगे और उन्हें देश के कोने-कोने तक पहुंचा दिया जाएगा।
‘श्रीहरि सत्संग समिति’ ने लोगों से निवेदन किया है कि जिन्हें ये दीए चाहिए वे इस नंबर (7990549015) पर संपर्क कर सकते हैं। हेल्पलाइन के माध्यम से बड़ी संख्या में लोग दीए ‘बुक’ करा रहे हैं।
बता दें कि ‘श्रीहरि सत्संग समिति’ ने 2000 में गोपाष्टमी के दिन ‘गो ग्राम योजना’ का शुभारंभ किया था। योजना का मूल मंत्र है – ‘गाय का घर, किसान का घर।’ इसका उद्देश्य है गाय सुरक्षित हो, किसान आत्मनिर्भर हो और खेती की ऊर्वरा शक्ति फिर से बहाल हो।
‘गो ग्राम योजना’ के अध्यक्ष श्रीनारायण अग्रवाल ने बताया कि इस योजना के अंतर्गत 12 नवंबर, 2021 को नताशापाड़ा में और 12 दिसंबर, 2021 को दुम्मा में किसानों को देसी गोवंश भेंट किया गया। जिन लोगों को गोवंश दिया गया, उन्हें हर महीने 1,000 रु- भी दिए जाते हैं, ताकि वे गोवंश के लिए चारे-पानी की व्यवस्था कर सकें। श्री अग्रवाल ने यह भी बताया कि अब तक 60 गाय किसान के घर पहुंचाई जा चुकी हैं। शीघ्र ही 8,000 किसान परिवारों में गाय पहुंचा दी जाएगी। इन गायों को किसान न छोड़ें इसलिए गाय के गोबर और गोमूत्र से किसान को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। इसके साथ ही ग्रामीण महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य को लेकर ग्रामीण महिलाओं को गोबर के उत्पाद बनाना सिऽाकर उन्हें स्वावलंबी बनाया जा रहा है।
अब तक जिन परिवारों को गोवंश दिया गया है, उनके सदस्यों को गोबर और गोमूत्र से अनेक प्रकार की वस्तुओं के निर्माण का प्रशिक्षण निःशुल्क दिया गया है। जैसे ‘दीया’, ‘अगरबत्ती’, ‘शुभ-लाभ’, ‘ऊँ’, ‘स्वस्तिक’ आदि बनाना। गाय के गोबर से दीया बनाने के लिए उसमें मुल्तानी मिट्टी और कुछ अन्य सामग्री भी मिलाई जाती है, ताकि केवल बाती जले, दीया न जल जाए। जो लोग ये वस्तुएं तैयार कर रहे हैं, उन्हें इसके सांचे भी श्रीहरि सत्संग समिति ने दिए हैं। इसके लिए किसी से कोई पैसा नहीं लिया गया है।
श्रीनारायण अग्रवाल ने यह भी बताया कि जितनी भी वस्तुएं तैयार हो रही हैं, उन सबको श्रीहरि सत्संग समिति ही उचित कीमत पर खरीद रही है। इसलिए तैयार करने वालों को उनके बिकने की चिंता नहीं करनी है। यही कारण है कि इस कार्य में वे लोग भी जुड़ गए हैं, जिन्हें ‘गो ग्राम योजना’ के तहत गाय नहीं मिली है।
इस योजना की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसके अंतर्गत उन गोवंशों की भी रक्षा हो रही है, जिन्हें लोग लाभदायक न मानकर बेच देते हैं। जैसे बैल, बूढ़े गोवंश, अपाहिज, बिनदुधारू गाय आदि। ‘गो ग्राम योजना’ के अंतर्गत उपरोक्त गोवंशों को भी किसानों को दिए जाते हैं। ऐसे किसानों से कहा जाता है कि आप गोबर और गोमूत्र जमा करें उसे ‘गो ग्राम योजना’ के कार्यकर्ता खरीद लेंगे। इस कारण किसान बेकार माने जाने वाले गोवंश को भी पाल रहे हैं।
‘गो ग्राम योजना’ के अंतर्गत गांव-गांव में ‘गोरथ’ भी घूमता है। इसमें बीमार गोवंश के इलाज की पूरी व्यवस्था है। यही नहीं, जिसका स्थानीय स्तर पर इलाज नहीं हो पाता है, उसे इसी रथ के जरिए नजदीकी अस्पताल तक पहुंचाया जाता है। रथ में हाइड्रोलिक मशीन लगी है। इसी मशीन के सहारे गोवंश को रथ पर आसानी से चढ़ाया जाता है।
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