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ईरानी महिलाओं पर नारीवादी चुप्पी

हिजाब की अनिवार्यता के विरोध में महिलाओं का विरोध प्रदर्शन 22 वर्षीया महसा अमीनी की हत्या के बाद तेज हो गया है। ईरान में अब तक चार युवतियों की हत्या हो चुकी है और विरोध प्रदर्शनों में कुल मिलाकर 80 से अधिक लोग मारे गए हैं। जिनकी जान गई, उनमें महसा अमीनी के अलावा 20 वर्षीय हदीस नजफी है

by सोनाली मिश्रा
Oct 9, 2022, 08:15 am IST
in भारत, विश्व, विश्लेषण, मत अभिमत, तथ्यपत्र
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ईरान में 80 से ज्यादा शहरों में हिजाब के विरुद्ध महिलाओं के सड़क पर उतरने के बाद यह आग अन्य मुस्लिम देशों और दुनिया के विभिन्न मुल्कों में फैल गई है। परंतु कर्नाटक-केरल में हिजाब पहनने को औरत  की आजादी बताने वाली भारत की वामपंथी-नारीवादी जमात द्वंद्व में फंसी है और ईरान के मसले पर चुप्पी साधे है

ईरान में हिजाब की अनिवार्यता के विरोध में महिलाओं का विरोध प्रदर्शन 22 वर्षीया महसा अमीनी की हत्या के बाद तेज हो गया है। ईरान में अब तक चार युवतियों की हत्या हो चुकी है और विरोध प्रदर्शनों में कुल मिलाकर 80 से अधिक लोग मारे गए हैं। जिनकी जान गई, उनमें महसा अमीनी के अलावा 20 वर्षीय हदीस नजफी है, जिसे छह गोलियां मारी गईं। दूसरी युवती पर्वतारोही गजाले चेलावी है, जिसकी उम्र 32 वर्ष थी। और तीसरा नाम है 23 वर्षीया हनने किया का, तथा चौथा नाम है महासा मोगोई, जिसकी उम्र मात्र 18 वर्ष थी। कलाकार ओमिद दिजालिली ने इन चारों युवतियों की जीवन से भरी तस्वीरें साझा कीं, जिन्होंने आजादी के लिए इतनी बड़ी कीमत चुकाई है।

महसा अमीनी की मृत्यु के उपरान्त आरम्भ हुआ यह जागरण पूरे विश्व की महिलाओं को प्रभावित कर रहा है, यहां तक कि सीरिया तक में महिलाएं सड़कों पर उतर आई हैं, परन्तु जब भारत पर दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि यहां सन्नाटा है। परन्तु कौन करेगा यहां आन्दोलन, जब महिलाओं के लिए आवाज उठाने वाली महिलाएं ही इसके प्रति निरपेक्ष हैं। वैश्विक परिदृश्य में संघर्ष करती महिलाओं के बरक्स भारत एक अजीब द्वन्द्व से होकर गुजर रहा है, जहां की नारीवादी जमात कट्टरता के पक्ष में जाती हुई दिखाई दे रही हैं। ऐसा क्यों हो रहा है, यह शोध का विषय है, परन्तु ऐसा हो रहा है और यही सत्य है।

ईरानी महिलाओं को वैश्विक समर्थन
विडंबना है कि इस्लामी मुल्क ईरान में लड़कियों के प्राण इसलिए जा रहे हैं कि वह मजहबी हुकुम की जंजीर में नहीं फंसना चाहतीं। ईरान का मसला अब धीरे-धीरे सीरिया सहित अन्य मुस्लिम देशों में भी फैल रहा है। हिजाब के विरोध में अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ग्रीस, स्वीडन, आस्ट्रिया, फ्रांस, इटली, स्पेन, जर्मनी, इराक, लेबनान और तुर्की में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए हैं। सऊदी लेखिका हैदर ने हिजाब से अपनी जूती साफ कर अपना विरोध जताया तो तुर्की की गायिका मेलेक मोसो ने मंच पर अपने बाल काटकर विरोध प्रदर्शन किया। अफगानिस्तान की महिलाओं ने ईरानी दूतावास के सामने प्रदर्शन किया।

तो वहीं भारत में केरल में 26 सितम्बर, 2022 को मुस्लिम यूथ लीग, मुस्लिम स्टूडेंट फेडरेशन और स्टूडेंटस इस्लामिस्ट आगेर्नाइजेशन ने कोझिकोड में जुलूस निकाला कि प्रोविडेंस गर्ल्स हायर सेकंडरी स्कूल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए क्योंकि कक्षा 11 की छात्रा को विद्यालय प्रशासन द्वारा यह कहा गया कि वह इसलिए हिजाब नहीं पहन सकती क्योंकि वह पोशाक (यूनीफॉर्म) का हिस्सा नहीं है। इस बात को लेकर अभिभावकों ने शिक्षा विभाग के पास रिपोर्ट लिखवाई, मगर कोई कदम न उठाए जाने पर छात्रा ने विद्यालय छोड़ दिया। इससे पहले हिजाब के लिए कर्नाटक में हुए आन्दोलन और हिंसा को पूरा देश देख चुका है। यह मामला अभी उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है, जिरह पूरी हो चुकी हैं एवं निर्णय की प्रतीक्षा है।

भारत में नारीवादियों का दोहरा चरित्र
एक तरफ दुनिया की महिलाएं हिजाब के विरुद्ध सड़कों पर उतर रही हैं, वहीं भारत में मुस्लिम और नारीवादी तबका हिजाब के लिए आंदोलनरत है। खासकर ईरान के इस आंदोलन ने भारत की वामपंथी-नारीवादी जमात की पोल खोल दी है। अगर फरवरी, 2022 में भारतीय वाम-नारीवादियों के बयान देखें तो पाएंगे कि वे एक सुर से मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने की छूट विद्यालयों के नियमों को तोड़कर दिए जाने के पक्ष में मुहिम चलाए हुए थीं। इनमें राणा अय्यूब से लेकर अरफा खानम, स्वरा भास्कर तक कई नाम शामिल हैं। यही हाल पाकिस्तान की मलाला का भी था। परंतु अब, जब मुस्लिम देश ईरान में महिलाएं हिजाब के विरुद्ध 80 से ज्यादा शहरों में सड़कों पर उतर गईं तो इस वामी-नारीवादी गिरोह को मानो सांप सूंघ गया।

भारत में हिजाब पहनने की छूट दिए जाने के लिए बयान देने वाली नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला ईरान के मुद्दे पर खामोश हैं। भारत में नारीवादी जमात मुंह छिपाते हुए रणनीतिक युक्ति के तहत ईरान की महिलाओं के साथ एकजुटता तो दिखा रही है परंतु हिजाब के संदर्भ में अपना दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं कर पा रही। वजह साफ है, यदि ईरान के मुद्दे पर वे हिजाब का विरोध करें तो भारत में हिजाब के पक्ष में उनके रुख पर सवाल उठेंगे। और, यह बात उनके राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से ठीक नहीं है।

भारत में महिलाओं का ठेका लेकर बैठा हुआ उदार एवं जाग्रत नारीवाद मात्र इसलिए ईरान की महिलाओं के समर्थन में नहीं आ रहा है, कि कहीं उसे हिजाब विरोधी अर्थात इस्लाम विरोधी न मान लिया जाए, और कहीं उसे इस बहाने से भाजपा या संघ से वैचारिक निकट न मान लिया जाए, और कहीं इस बहाने से उनकी उसी प्रकार वामपंथी लिंचिंग होने लगे जो कविता कृष्णन की हुई थी, जब उन्होंने पार्टी छोड़ी थी

महिला साहित्यकारों में भी चुप्पी है। हिन्दी पट्टी के नारीवादी अगुआओं ने यह सुनिश्चित किया कि ईरान में बाल खुले रखने की अपनी मूलभूत आजादी के लिए लड़ती हुई लड़कियों के पक्ष में नहीं बोलना है, तो नीचे की उभरती हुई नारीवादी कभी भी यह नहीं कह पाएंगी कि वह ईरान में उन संघर्ष करती हुई लड़कियों के साथ हैं। वामी-नारीवादियों की यह चयनित चुप्पी भारत में नुपुर शर्मा को मिलने वाली धमकियों के पक्ष में जाकर खड़ी हो गई थी। यह इनकी चुप्पी ही थी जो कहीं न कहीं झारखंड की अंकिता के हत्यारे के पक्ष में जाकर खड़ी हो गई, क्योंकि यह लोग मुखर होकर सामने नहीं आईं! नारीवादियों के अनुसार ‘संघी-हिन्दू’ सबसे असहिष्णु हैं, फिर कौन सी बात उन्हें ईरान की लड़कियों के पक्ष में जाने से रोकती है?

एक और बात हैरान करने वाली है कि नारीवादी समुदाय के अनुसार सबसे अधिक हिंसक एवं असहिष्णु समाज और कोई नहीं बल्कि हिंदुत्व की बात करने वाला हिन्दू है, या उनकी भाषा में कहा जाए तो संघी है, जो उनकी ट्रोलिंग करता है। तभी तो कविता कृष्णन ने अपनी वामपंथी ट्रोलिंग को ही संघी ट्रोलिंग कह दिया था। तो जब उनका प्रिय समाज, अपनी आलोचना को लेकर खुला हुआ है, तो फिर वह ईरान की लाखों लड़कियों के साथ न होकर भारत के उन मुट्ठीभर इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ क्यों हैं, जो लड़कियों को हिजाब में कैद करना चाहते हैं? क्योंकि यह बात किसी के भी गले नहीं उतर सकती है कि कक्षा 11 में पढ़ने वाली बच्चियां अपने-आप ही हिजाब आदि को पहनने के लिए अदालत चली जाएंगी या फिर आन्दोलन करने लगेंगी?

फिर भी भारत में महिलाओं का ठेका लेकर बैठा हुआ उदार एवं जाग्रत नारीवाद मात्र इसलिए ईरान की महिलाओं के समर्थन में नहीं आ रहा है, कि कहीं उसे हिजाब विरोधी अर्थात् इस्लाम विरोधी न मान लिया जाए, और कहीं उसे इस बहाने से भाजपा या संघ से वैचारिक नैकट्य का पोषक मान लिया जाए, और कहीं इस बहाने उनकी उसी प्रकार वामपंथी लिंचिंग होने लगे जो कविता कृष्णन की हुई थी, जब उन्होंने पार्टी छोड़ी थी।

वह लोग डरती हैं। डर कभी भी राष्ट्रवादियों से नहीं था और न ही है। उन्हें डर है तो उस लिबरल लिंचिंग का, जो हैरी पॉटर की लेखिका जे.के. रोव्लिंग को भी उनके एजेंडे के विरुद्ध बोलने पर नहीं छोड़ती हैं। जो अपनी ही पार्टी की कविता कृष्णन के खिलाफ इसलिए की जाती है क्योंकि कविता ने चीन और रूस के प्रति चुप्पी पर प्रश्न उठाए थे, इसलिए वह चुपके से हिजाब के पक्ष में आन्दोलन के साथ जाकर खड़ी हो जाती हैं, क्योंकि इस्लामी कट्टरता का विरोध करना उनके लिए पिछड़ापन है तो वहीं हिजाब के पक्ष में नारे लगाना ऐसी प्रगतिशीलता है, जिसका आधार मात्र भारतीय लोक एवं उसके प्रति घृणा है।

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