पटना में इस बार मक्का, बाजरा, लिपस्टिक और पापड़ से बनी हैं देवी दुर्गा की प्रतिमाएं

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संजीव कुमार

आपने अब तक माटी से बनीं मूर्तियों के दर्शन किए होंगे, लेकिन इस समय पटना में देवी दुर्गा की ऐसी प्रतिमाएं स्थापित हुई हैं, जिनका निर्माण बाजरा, मक्का, पापड़ या केवल लिपिस्टक से किया गया है।

 

पटना में तीन साल बाद दुर्गा पूजा की धूम है। पटना का पूजा अपने वैशिष्टड्ढ के लिए प्रसिद्ध है। यहां की मूर्ति, पंडाल और प्रकाश (लाइटिंग) देखने के लिए लोग दूर- दूर से आते हैं। 1990 के पहले तक यहां पूजा में कलाकारों का जमघट लगा रहता था। कला जगत में कहा जाता था, ‘‘वही कलाकार कला जगत में सफल हो सकता है, जो पटना के श्रोताओं का दिल जीत ले।’’ समय के साथ बदलाव आया। राजनीति में 15 वर्ष के लालू परिवार के शासन ने इस परंपरा को ध्वस्त कर दिया। पटना कला जगत का वह गौरव प्राप्त नहीं कर पाया। इसके बाद नीतीश कुमार भी सफल नहीं हुए। परंतु मूर्ति, पंडाल और प्रकाश की विशेषता अभी तक बनी हुई है।

बता दें कि पटनावासी गत तीन वर्ष से उत्साहपूर्वक दुर्गा पूजा नहीं मना पा रहे थे। 2019 जलजमाव की भेंट चढ़ गया। 2020 और 2021 में कोरोना का संकट था। इस वर्ष सभी बाधाओं से मुक्त होकर माता दुर्गा की आराधना की जा रही है। पटना में कई स्थानों पर पारंपरिक तरीके से हटकर मूर्तियां बनाई गई हैं। राजधानी पटना में दो भाइयों जितेंद्र कुमार और चंदन कुमार ने माता रानी की पांच तरह की मूर्तियां तैयार की हैं। ये सभी मूर्तियां पर्यावरण के अनुकूल हैं। इनमें मिट्टी का भी इस्तेमाल नहीं किया गया है। मूर्ति गेहूं और मकई के चिप्स यानी कि कॉर्न फ्रलेक्स से तथा पापड़ और तिलौरी से तैयार की गई है। एक मूर्ति बाजरा के दानों से तैयार की गई है। ज्वार के दाने से भी मूर्ति बनाई गई है। सबसे हटकर 5,000 विभिन्न रंगों की लिपस्टिक का इस्तेमाल करके बनाई गई मूर्ति है, जो अमरूदी गली स्थित एएमबीसी क्लब में रखी गई है। गेहूं और मकई के चिप्स की मूर्ति पटना के न्यू आर्य एथलेटिक क्लब में लगी है। पापड़ की मूर्ति मुसल्लहपुर के जय हिंद क्लब में, तो ज्वार की मूर्ति भंवर पोखर स्थित इंडियन क्लब में भक्तों के दर्शनार्थ रखी गई है। बाजरे की मूर्ति एकता क्लब बायपास में है। मछुआ टोली की एबीसी दुर्गा पूजा समिति द्वारा 18 हाथ और 25 शीश वाली मां दुर्गा की 15 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है।

पटना सिटी में अलग-अलग वस्तुओं से मूर्ति बनाने की परंपरा रही है। कहीं पर चॉकलेट से, तो कहीं आइसक्रीम की डंडी से, कहीं खोया से, तो कहीं माचिस की तीली से मूर्ति बनाई जाती थी।

कोलकाता की तरह पटना की भी दुर्गा पूजा प्रसिद्ध है। इस बार पटना के पंडालों में इंडोनेशिया से चेन्नई तक की झांकी है। यहां राजा बाजार में बाहुबली फिल्म के माहिष्मति महल की झलक है। मीठापुर में कोलकाता के दक्षिणेश्वरी काली मंदिर जैसा पंडाल तैयार किया गया है। वहीं यारपुर में अयोध्या के राम मंदिर की तर्ज पर पंडाल बनाया गया है।

पटना के डाकबंगला चौराहे पर इंडोनेशिया के प्रंबानन मंदिर की तर्ज पर पूजा पंडाल बना है। पंडाल की ऊंचाई लगभग 90 फुट व चौड़ाई 55 फुट है। यहां का प्रवेश द्वार बुर्ज खलीफा जैसा है।

सिपारा के एतवारपुर में तमिलनाडु के मदुरई का मीनाक्षी अम्मन मंदिर देखने को मिल रहा है। यहां मां का विशेष आसन भी बनाया गया है। दुर्गाश्रम शेखपुरा में बेटी की पुकार थीम पर इस साल पूजा पंडाल बनाया गया है। इसमें घने जंगल में गणेश जी, भगवान शंकर, नारद मुनि, मां दुर्गा और राक्षस को विचरते दिखाया गया है।

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