मंदिर में घुसकर मूर्तियों को तोड़ने वाले किसी मुसलमान को बचाने के लिए उसके परिवार वाले, वामपंथी और यहां तक कि पुलिस भी कहने लगती है कि वह बेचारा विक्षिप्त है। यह बहुत ही घातक चलन है।
हाल के कुछ वर्षों में देखने को मिल रहा है कि जब भी भारत में हिंदुओं के त्योहार आते हैं उसी वक्त कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी इस कोशिश में लग जाते हैं कि किसी भी तरह से सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ जाए। इसके तहत कभी रामनवमी के समय जुलूस पर हमला कर दिया जाता है, तो कभी नवरात्रि के समय मंदिरों और पंडालों को निशाना बनाया जा रहा है। सवाल यह है कि इतना सब कुछ बिना किसी षड्यंत्र के तो नहीं हो रहा होगा?
अभी हाल ही में झारखंड की राजधानी रांची की मुख्य सड़क पर विशाल हनुमान मंदिर में रमीज अहमद नाम के व्यक्ति ने मूर्तियों को खंडित कर दिया था। यह घटना 28 सितंबर की है। रांची के जिस मंदिर में मूर्तियों को खंडित किया गया उसी मंदिर को 4 महीने पहले भी 10 जून को मुस्लिमों ने निशाना बनाया था। इस घटना में आश्चर्य की बात यह रही कि पुलिस ने हमलावर को पकड़ते ही उसे मानसिक विक्षिप्त घोषित कर दिया था।
रांची के बाद धनबाद के गोविंदपुर में 30 सितंबर यानी जुम्मे के दिन एक मुस्लिम युवक ने शिव मंदिर के अंदर तोड़फोड़ कर वहां साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की। धनबाद में जिसने तोड़फोड़ की है, उसने पहले भी दो मंदिरों पर हमला कर मूर्तियों को क्षतिग्रस्त किया है।
ऐसी ही घटना 29 सितंबर को बिहार के बक्सर जिले के सिकठी गांव में भी देखने को मिला। यहां मुबारक अंसारी नाम का एक व्यक्ति वहां के काली मंदिर में मां स्वरूपा की पिण्डियों को छतिग्रस्त कर वहां से भाग निकला। मुबारक अंसारी पर इस घटना के एक दिन पहले भी मंदिर आने-जाने वाली महिलाओं को भद्दे इशारे करने का आरोप लगा था और उसे हिरासत में लिया गया था। इसके बाद उसके घर वाले उसे थाने से छुड़वा कर ले आए थे। अगले ही दिन मुबारक ने मंदिर में घुसकर वहां तोडफोड़ की।
ठीक है ऐसी ही घटना 27 सितंबर को हैदराबाद के खैरताबाद इलाके से आई थी। वहां बुर्का पहनकर दो मुस्लिम महिलाओं ने मां दुर्गा के पंडाल में घुसकर तोड़फोड़ की और उन्होंने रोकने वाले स्थानीय लोगों पर हमला भी कर दिया।
मंदिरों और उनकी मूर्तियों को क्षतिग्रस्त करने की खबरें अक्सर बांग्लादेश या पाकिस्तान से आया करती थीं। लेकिन अब इस तरह की घटनाएं भारत के कई मुस्लिम बहुल इलाकों से भी आने लगी हैं। अब सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? आपको बता दें कि पूरे देशभर में यह देखने को मिल रहा है कि जैसे ही कोई मुसलमान मंदिर या धार्मिक स्थलों पर हमला करता है ठीक थोड़ी देर के बाद तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले नेता, हमलावर के परिवार और वामपंथी मीडिया हमलावरों को मानसिक विक्षिप्त बताने का प्रयास करते हैं या फिर पुलिस उन्हें समझा-बुझाकर छोड़ देती है। यानी जिन कट्टरपंथियों को उनकी गलतियों की सजा मिलनी चाहिए वहां उन्हें किसी न किसी रूप में बचाने का प्रयास किया जाता है। यही वजह है कि दिनोंदिन इन कट्टरपंथियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है और आए दिन हिंदुओं के धार्मिक स्थल पर हमले की खबरें आ रही हैं।
बता दें कि अभी हाल ही में आतंकवादी संगठन पीएफआई पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगाया है। इस संगठन के माध्यम से मुस्लिम समाज को हिंदुओं के खिलाफ बरगलाया जा रहा था और वर्ष 1947 तक पूरे भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने की योजना बनाई जा रही थी। पीएफआई के निशाने पर हिंदुओं के मंदिर और धार्मिक स्थल भी थे। प्रतिबंध के बावजूद पीएफआई की विचारधारा को मानने वाले जिहादी तत्व आज भी पूरे भारत में कई जगहों पर सक्रिय हैं। कहा जा रहा है कि यही तत्व जगह-जगह मंदिरों में मूर्तियां तोड़ रहे हैं।
टिप्पणियाँ