न भूलने वाला पल
स्टेशन पर हिंदुओं को काट-काट कर ट्रेन में डाल दिया जाता था और उसे भारत की ओर रवाना कर दिया जाता था।
सत्या अरोड़ा
अहसानपुर, मुजफ्फरगढ़, पाकिस्तान
भारत के बंटवारे के समय मेरी उम्र 13 साल थी। हम लोग अहसानपुर में रहते थे। वहां हमारे परिवार का सबसे ऊंचा मकान था। हमारे मकान से अहसानपुर रेलवे स्टेशन दिखाई देता था। हम लोग अपने मकान की छत से देखते थे कि जो भी हिंदू स्टेशन जा रहे थे उनको मुसलमान मारते थे। मुसलमानों ने स्टेशन मास्टर को हमारे सामने मारा, क्योंकि वे हिंदू थे। स्टेशन पर हिंदुओं को काट-काट कर ट्रेन में डाल दिया जाता था और भारत की ओर रवाना कर दिया जाता था। कई दिनों तक हम लोगों ने इस दृश्य को देखा।
उस समय पाकिस्तान का माहौल ऐसा था कि मुसलमान हिंदू लड़कियों को पकड़कर उनके बाल जड़ से उखाड़ देते थे। गर्भवती हिंदू महिलाओं के पेट पर मारा करते थे। ऐसी क्रूरता की जाती थी। उस समय हालात इतने खराब थे कि परिवार के परिवार बिखर गए थे। कोई कहीं, तो कोई कहीं। हिंदुओं ने जैसे-तैसे अपनी जान बचाई। मुझे याद है कि हम लोग मिर्च का पाउडर और गर्म पानी छत के ऊपर रखा करते थे। रात में लोग सोते तक नहीं थे। सभी हिंदू अपने-अपने घरों की छतों पर रहा करते थे।
मुसलमानों ने साफ कहा कि सभी हिंदू मार दिए जाएंगे। पिताजी ने कहा कि जान से मत मारो, जो लेना है ले लो। इस पर मुसलमानों ने कहा कि सभी हिंदू मिलकर 500 तोला सोना दें, तभी गांव से जाने दिया जाएगा। हिंदुओं ने ऐसा ही किया। तब उन्होंने कहा, ‘आज शाम तक सभी हिंदूूू मकान खाली कर चले जाएं।
जुम्मे के दिन तो कोई भी हिंदू घर से बाहर नहीं निकलता था। सभी लोग छत पर गर्म पानी और मिर्च का पाउडर लेकर बैठे रहते थे। होता यह था कि जुम्मे की नमाज के बाद कुछ कट्टरवादी मुस्लिम हिंदुओं के घरों पर हमला करते थे। उन दिनों मेरे पिताजी मिंटगुमरी में सरकारी शिक्षक थे। वे छुट्टियों में घर आते थे। जब उन्हें पता चला कि अहसानपुर में माहौल ज्यादा खराब हो गया है तो वे हम लोगों को बचाने के लिए घर आए। एक दिन अचानक ‘अल्लाह-हो-अकबर’ की आवाज आने लगी। यह आवाज बहुत देर तक गंूजती रही।
हम लोग घबरा गए। उस समय घर में मैं, मेरी एक और बड़ी बहन और भाई था। पिताजी ने हम दोनों बहनों को ऊपर वाले कमरे में बंद कर दिया और सीढ़ी को हटा कर कहीं छिपा दिया। (ऊपर वाले कमरे के लिए लकड़ी की सीढ़ी थी।) नीचे मेरे पिताजी और बड़े भाई परेशान हो रहे थे। मेरे पिताजी ने भाई से कहा कि तुम यहीं रहो, मैं जरा गांव वालों से मिलकर आता हूं कि अब करना क्या है? कुछ हिंदुओं के साथ वे गांव के मुसलमानों और थानेदार से भी मिले।
मुसलमानों ने साफ कहा कि सभी हिंदू मार दिए जाएंगे। पिताजी ने कहा कि जान से मत मारो, जो लेना है ले लो। इस पर मुसलमानों ने कहा कि सभी हिंदू मिलकर 500 तोला सोना दें, तभी गांव से जाने दिया जाएगा। हिंदुओं ने ऐसा ही किया। तब उन्होंने कहा, ‘आज शाम तक सभी हिंदूूू मकान खाली कर चले जाएं। अब एकाएक क्या करें?’ उस समय हमारे पास कोई सााधन भी नहीं था। फिर किसी तरह ऊंटों पर कुछ सामान रखकर रेलवे स्टेशन पहुंचे। ट्रेन में इतनी भीड़ थी कि लोग एक-दूसरे पर लदे हुए थे। बहुत बुरा हाल था। हम सभी रो रहे थे।
एक जगह अचानक गाड़ी रुक गई और डिब्बे में मुसलमान घुस आए। वे कहने लगे कि साथ में जो भी सामान है, दे दो। हिंदुओं ने कहा कि ऐसा न करो, हम लोग भूखे मर जाएंगे। इस पर मुसलमानों ने कहा कि फिर गाड़ी आगे नहीं बढ़ेगी और तुम लोग मारे जाओगे। इसके बाद सभी हिंदुओं ने अपना सारा सामान उन्हें दे दिया। इस तरह हम लोग बिल्कुल खाली हाथ हो गए। हमारे पास केवल पहने हुए कपड़े थे।
भगवान का नाम लेते हुए हम लोग जालंधर पहुंचे। यहां एक शरणार्थी शिविर में 15 दिन रहे। इसके बाद अपने एक रिश्तेदार के पास मेरठ आ गए। वहीं हम भाई-बहनों की पढ़ाई हुई, फिर दिल्ली में मेरी सरकारी नौकरी लग गई। बाकी भाई-बहन मेरठ वाले भाई के पास ही रहे और पिताजी ने वानप्रस्थ ले लिया।
प्रस्तुति- अरुण कुमार सिंह एवं अश्वनी मिश्र
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