झारखण्ड में जहां कहीं भी मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है, वहीं पर हिंदुओं को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। इसका ज्वलंत उदाहरण पलामू के पांडू प्रखंड में देखने को मिल रहा है। बता दें कि यहां कुछ दिन पहले 50 हिंदू परिवार (महादलित) के लोगोें को बेघर कर दिया गया, वह भी भारी बरसात के बीच में। उसके बाद उनके घरों और मंदिर पर बुलडोजर चला दिया गया। ये सभी लोग पांडू थाने के पुराने और जर्जर भवन में दिन गुजार रहे हैं। उनके पास न तो कोई काम है और न ही खाने के अन्न। कुछ हिंदू कार्यकर्ता उनकी मदद जरूर कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने उनकी अभी तक कोई सुध नहीं ली है।
क्या है पूरा मामला?
ये लोग कुंजरूकला पंचायत के अंतर्गत मुरुमातु गांव के हैं। इस गांव में मुसलमानों की आबादी बहुत अधिक है। इसी गांव के पास टोंगरी पहाड़ी है। पहाड़ी के पास काफी समय से ये परिवार रह रहे थे। जीवन-यापन के लिए ये लोग मेहनत-मजदूरी करते हैं। इनके घर खपरैल के थे। ग्रामीणों के अनुसार अचानक 25 दिन पहले वहीं के डॉक्टर रसूल असगर सेठ, उमद रसूल, जफर अंसारी, वार्ड सदस्य अदरु अंसारी, मुखिया इसराइल अंसारी उर्फ इसरार और राजन मियां सहित कई दबंग मुसलमानों की वजह से उन्हें बेघर होना पड़ा। इन्हीं लोगों ने इन परिवारों की जमीन पर कब्जा करने की नीयत से कहा कि यह जमीन मदरसे के लिए है। इसलिए उन्हें यह जगह छोड़कर जाना पड़ेगा। इसके बाद कई लोगों से हस्तलिखित सहमति पत्र पर जबरन अंगूठा लगवा लिया गया। ये लोग रोते रहे, बिलखते रहे, लेकिन इनकी पुकार किसी ने नहीं सुनी। गांव के कुछ मुसलमान इनके घरों के अंदर रखे सामान को निकालकर रखते गए। इसके बाद गांव के बच्चों और बूढ़ों को भी ट्रैक्टर में जबरन बैठाया गया। इसके बाद इन लोगों को छत्तरपुर प्रखंड के लोटो जंगल में छोड़ दिया गया। कुछ मुसलमान लोगों को छोड़ने गए, तो कुछ बुलडोजर बुलाकर इनके घरों को तुड़वाने लगे। इन लोगों ने वहां के एक प्राचीन शिव मंदिर को भी नहीं छोड़ा। मंदिर को भी बुलडोजर से तोड़ दिया गया।
गांव के एक बुजुर्ग ने बताया कि 40 साल पहले हुए सर्वेक्षण में वह गैरमजरूआ जमीन थी, जो उनके नाम पर दर्ज हो गई थी, जबकि वहां के मुसलमानों का कहना है कि यह जमीन मदरसे की है।
अब सवाल यह उठता है कि कई वर्षों से हिंदू समाज के लोग वहां रहते आ रहे हैं उसके बाद भी मदरसे के लिए यह जमीन इन लोगों को किसने आवंटित कर दी? इसी सवाल को लेकर वहां के अंचल अधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया। पलामू के आयुक्त जटाशंकर चौधरी से बात हुई। उनके अनुसार उन्हें अभी भी यह पता ही नहीं है कि वहां क्या हो रहा है। उन्होंने कहा कि पूछ कर बताते हैं लेकिन उनका भी कोई जवाब नहीं आया। इस घटना के बाद पांडू प्रखंड का यह स्थान राजनीति का अखाड़ा तो बना हुआ है, लेकिन इन परिवारों को अब तक न्याय नहीं मिल पाया है।
पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और कुछ अन्य हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता इन परिवारों से मिलने गए । इन लोगों ने इन्हें खाने पीने का सामान और कपड़े दिए। लोगों ने बताया कि कुछ दिन तक तो स्थानीय प्रशासन की ओर से मदद मिली लेकिन अब वह भी बंद कर दी गई है।
हिंदू कार्यकर्ता भैरव सिंह ने बताया 25 दिन बीतने के बाद भी स्थानीय पदाधिकारी सिर्फ आश्वासन पर आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन उनकी जमीन को वापस दिलाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रहे हैं।
यह तो रही पलामू के पांडू प्रखंड की बात। यही हालत पूरे प्रदेश की है। लोहरदगा, जामताड़ा, हजारीबाग, साहिबगंज, दुमका, जमशेदपुर आदि कई स्थानों पर इस तरह की घटनाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ महीने पहले जामताड़ा में भी एक हिंदू दलित परिवार की लगभग 7 एकड़ जमीन पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया था। इसे लेकर भी महीनों तक हिंदू परिवारों को धरना देना पड़ा था। लोहरदगा जैसे स्थानों पर भी कई जनजातीय समाज और दलित समाज की जमीन पर मुसलमानों द्वारा कब्जा कर उन पर मस्जिद या घर बनाए जा रहे हैं, लेकिन प्रशासन से लेकर सरकार तक सिर्फ तमाशा देख रही है।
पूरे झारखंड में खुलेआम बांग्लादेशी घुसपैठिए अलग-अलग स्थानों पर बसते जा रहे हैं और खाली स्थान देख कर अवैध मजार या फिर मकान बनाकर रह रहे हैं। अगर यही हालात रहे तो आने वाले दिनों में झारखंड के हिंदुओं के लिए अनेक तरह की समस्याएं पैदा हो सकती है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
टिप्पणियाँ