अभी नीतीश कुमार और लालू यादव के साथ आने के कुछ ही दिन हुए हैं, लेकिन इसके परिणाम दिखने लगे हैं। लालू की पार्टी राजद ने कहा है कि नीतीश संन्यास लें। इस बयान के बड़े मायने हैं और नीतीश के अलावा और कोई इसे अच्छी तरह नहीं जानता है।
अब राजद के नेता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह अहसास कराने से नहीं चूक रहे हैं कि आप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लालू यादव की कृपा से हैं। इसमें कोई दो राय भी नहीं है, लेकिन शायद नीतीश कुमार इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। यदि वे इस बात को स्वीकारते तो शायद भाजपा से दूर नहीं होते। खैर, इसके बारे में नीतीश ही अच्छी तरह बता सकते हैं। लेकिन यह बात भी साफ दिखने लगी है कि अब नीतीश की राह आसान नहीं रही। बता दें कि हाल ही में राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने नीतीश कुमार को सलाह दी है कि राजनीति से संन्यास लेकर एक आश्रम खोलें और वहां राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दें। जब वे यह बोल रहे थे उस समय मंच पर लालू यादव और तेजस्वी यादव दोनों मौजूद थे। इसके बावजूद राजद की ओर से शिवानंद के बयान का खंडन नहीं किया गया। इसलिए माना जा रहा है कि शिवानंद ने जो कहा है, उसके पीछे लालू ही हैं। लालू ने खुद न बोलकर शिवानंद के जरिए अपनी इच्छा नीतीश को बता दी है। लालू की इसी इच्छा को देखते हुए कुछ दिन पहले भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने भी कहा था कि नीतीश की कुर्सी जाने वाली है।
बता दें कि शिवानन्द ने उपरोक्त बयान पटना में आयोजित राजद की राज्य परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए दिया था। उनके अनुसार आश्रम का स्थान भी निश्चित हो चुका है। वैसे भी नीतीश कुमार ने 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान सार्वजनिक तौर पर घोषणा कर दी थी कि यह उनका आखिरी चुनाव है।
इस आश्रम में राजनैतिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जायेगा। इस पर आरसीपी सिंह के एक निकटवर्ती ने कहा कि आखिर नीतीश कुमार राजनैतिक कार्यकर्ताओं को क्या प्रशिक्षण देंगे? सत्ता के लिए कैसे पलटी मारी जाती है? या फिर अपने लोगों से कैसे विश्वासघात किया जाता है?
शिवानन्द का यह बयान तब आया है जब नीतीश कुमार विपक्षी एकता के अभियान पर निकल चुके हैं। राज्य भर में पोस्टर लगाए गए हैं कि प्रदेश में दिखा अब देश में दिखेगा। मतलब साफ है कि देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में नीतीश कुमार स्वयं को देखना चाहते हैं।
इस कड़ी में उन्होंने इस महीने की शुरुआत में तीन दिन दिल्ली में रहकर विपक्ष के कई बड़े नेताओं से मुलाकात की। इसमें कांग्रेस के राहुल गांधी, भाकपा के डी राजा, माकपा के सीताराम येचुरी, जनता दल (सेक्युलर) के डीके कुमारस्वामी, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, सपा के मुलायम और अखिलेश यादव, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और राकांपा के शरद पवार शामिल थे। यद्यपि कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनकी मुलाकात नहीं हुई थी। इसको लेकर सीएम नीतीश ने कहा था कि एक दिन सोनिया गांधी से मिलने के लिए वे दिल्ली आएंगे।
अब जब नीतीश कुमार मन ही मन कई सपने पाल बैठे हों और उनके आपातकाल के संघर्ष के साथी शिवानंद तिवारी ने संन्यास की बात की हो तो इसके कई मतलब तो निकलेंगे ही। राजनैतिक विश्लेषक कुमार दिनेश ने इसे राजद द्वारा नीतीश कुमार को घर बिठाने की सलाह माना है। नीतीश कुमार पर कोई भरोसा नहीं करता। ऐसे में बेहतर है कि अब वे संन्यास लेकर अन्य कार्य करें। इस बात की पुष्टि शिवानंद तिवारी के उसी भाषण में हो जाती है। शिवानंद तिवारी ने विपक्षी एकता की बात करना तराजू में मेंढक तौलने जैसी कसरत कहा। यह कार्य असंभव है। आपातकाल में जेपी के व्यक्तित्व के कारण विपक्ष एकजुट हुआ था। मतलब नीतीश कुमार का वैसा व्यक्तित्व नहीं जो विपक्ष को एकजुट कर सके।
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