बहुराष्ट्रीय तकनीकी कंपनियों की तरक्की में भारत का हाथ है क्योंकि उनके लिए भारत सबसे बड़ा उपभोक्ता केंद्र है। एक तो भारत दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है और दूसरे, चीन के विपरीत, भारत में बहुराष्ट्रीय तकनीकी कंपनियों को प्रतिबंधों के दायरे में नहीं बांधा गया है।
बहुत सी बहुराष्ट्रीय तकनीकी कंपनियों की तरक्की में भारत का हाथ है क्योंकि उनके लिए भारत सबसे बड़ा उपभोक्ता केंद्र है। एक तो भारत दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है और दूसरे, चीन के विपरीत, भारत में बहुराष्ट्रीय तकनीकी कंपनियों को प्रतिबंधों के दायरे में नहीं बांधा गया है। जाहिर है कि कोई भी वैश्विक तकनीकी कंपनी भारत से दूरी बनाने की कल्पना भी नहीं कर सकती और इसीलिए सबका फोकस भारत तथा भारतीय भाषाओं पर है। टिकटॉक को भारत से जाना पड़ा तो उसके उपभोक्ताओं की संख्या में एक झटके में भारी कमी आई।
आज यूट्यूब के सबसे ज्यादा दर्शक भारत में हैं जिनकी कुल संख्या 46.7 करोड़ है। अमेरिका में यह संख्या 21 करोड़ होने का अनुमान है। यही बात फेसबुक पर लागू होती है जिसके भारत में लगभग 32 करोड़ उपभोक्ता हैं और अमेरिका में लगभग 18 करोड़। जाहिर है, यूट्यूब और फेसबुक दोनों पर भारत पहले तथा अमेरिका दूसरे नंबर पर है। लेकिन बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती।
इन्स्टाग्राम में भी भारत पहले नंबर पर है जहां उसके 23 करोड़ उपभोक्ता हैं जबकि अमेरिका के 16 करोड़। और व्हाट्सएप्प की तो बात ही छोड़ दीजिए। भारत फिर से पहले नंबर पर है जहां उसके लगभग 49 करोड़ उपभोक्ता है। अमेरिका में हमसे एक चौथाई भी उपभोक्ता नहीं हैं जहां का आंकड़ा है 11 करोड़। ध्यान रहे, ये आंकड़े स्टेटिस्टा नाम की वेबसाइट के हैं जो दुनिया भर के डेटा का हिसाब-किताब रखती है।
सरकार गांव-गांव में अपनी सेवाएं पहुंचाने के लिए इंटरनेट और मोबाइल को माध्यम बना रही है। बिना स्थानीय भाषा के यह संभव नहीं है, इसलिए सरकारी वेब पोर्टल, मोबाइल एप्लीकेशन और आनलाइन सेवाएं बहुभाषी हो रही हैं। जहां तक तकनीकी पहलुओं का सवाल है- रिलायंस जियो और उसके प्रतिद्वंद्वियों ने गांव-गांव में मोबाइल के जरिए इंटरनेट पहुंचा दिया है और हर व्यक्ति कन्टेन्ट का उपभोग करने की स्थिति में है। चीजें सुगम हो गई हैं तो प्रयोग भी बढ़ रहा है।
इन सोशल मीडिया मंचों पर हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं का कन्टेन्ट प्रमुखता से देखा जाता है तथा अंग्रेजी की तुलना में ज्यादा तेज रफ्तार से बढ़ भी रहा है। यूट्यूब की तरफ से जारी आंकड़े बताते हैं कि इस प्लेटफॉर्म पर 93 प्रतिशत से ज्यादा दर्शक भारतीय भाषाओं में वीडियो देखना पसंद करते हैं।
सवाल उठ रहा है कि यह सब कैसे संभव हो पा रहा है, उस भारत में जिसे पश्चिमी देश हाल तक एक पिछड़ा देश माना करते थे। आज उन्हीं की कंपनियों की कामयाबी में भारत का आम आदमी हाथ बंटा रहा है। इसके कुछ सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक कारण हैं तो कुछ तकनीकी भी। वैश्विक स्तर पर भारत का आर्थिक तथा भू-राजनैतिक दृष्टि से मजबूत होकर उभरना एक अहम कारण है। आज जो देश आर्थिक दृष्टि से मजबूत हैं और जहां पर बाजार है, वैश्विक परिदृश्य में उसका उतना ही महत्व है।
भारत का सकल घरेलू उत्पाद लगातार 7-8 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और दुनिया को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। आर्थिक ठहराव से चिंतित वैश्विक कंपनियों के लिए भारत संभावनाओं का नया स्रोत बनकर उभरा है। उन्हें बाजार की तलाश है और हम बाजार उपलब्ध करा रहे हैं। ऐसे में हर क्षेत्र की बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत की ओर आकर्षित हो रही हैं और तकनीकी कंपनयां इसमें अपवाद नहीं हैं।
सीधे शब्दों में कहें तो भारत के पास अब संख्याबल भी है और खर्च करने के लिए पैसा भी। पिछले वित्त वर्ष में आम भारतीय की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय लगभग 18 प्रतिशत बढ़कर डेढ़ लाख रुपये हो गई है। सन 2000-2001 में यह महज 16,173 रुपये हुआ करती थी। यानी आम भारतीय की आय पिछले बीस साल में लगभग नौ गुना हो गई है।
इधर शिक्षा का स्तर भी बेहतर हुआ है तथा तकनीकी जागरूकता भी। आर्थिक क्षमता बढ़ने के साथ-साथ भारतीय नागरिकों की जरूरतें भी बढ़ी हैं और महत्वाकांक्षाएं भी। बेहतर जीवनशैली की ओर उनकी यात्रा बाजार में मांग पैदा कर रही है। यह मांग तकनीकी उत्पाद और सेवाओं में भी हैं। बाजार मांग और आपूर्ति के आधार पर चलता है। मांग है तो नए उत्पाद भी आएंगे और चूंकि बाजार में ग्राहक ही राजा है, इसलिए आपूर्तिकर्ता को ग्राहक की जरूरतों के लिहाज से ढलना पड़ेगा।
राजनैतिक-प्रशासनिक कारण भी हैं। सरकार गांव-गांव में अपनी सेवाएं पहुंचाने के लिए इंटरनेट और मोबाइल को माध्यम बना रही है। बिना स्थानीय भाषा के यह संभव नहीं है, इसलिए सरकारी वेब पोर्टल, मोबाइल एप्लीकेशन और आनलाइन सेवाएं बहुभाषी हो रही हैं। जहां तक तकनीकी पहलुओं का सवाल है- रिलायंस जियो और उसके प्रतिद्वंद्वियों ने गांव-गांव में मोबाइल के जरिए इंटरनेट पहुंचा दिया है और हर व्यक्ति कन्टेन्ट का उपभोग करने की स्थिति में है। चीजें सुगम हो गई हैं तो प्रयोग भी बढ़ रहा है।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक-भारतीय भाषाएं एवं सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं।)
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