तमिलनाडु राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (टीएनएससीपीसीआर) की टीम ने कुछ छात्रावास एवं आवासीय गृहों का औचक निरीक्षण किया। आयोग के सदस्य सीएसआई मोनाहन गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल की दुर्दशा देखकर हैरान रह गए।
सीएसआई मोनाहन गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल के छात्रावास में निरीक्षण करती राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्याएं
तमिलनाडु के बाल गृहों-छात्रावासों में लड़कियों पर निरंतर एवं सुनियोजित अत्याचार (उत्पीड़न) को देखकर यही प्रतीत होता है कि ये बच्चियां कन्वर्जन के लिए ‘सॉफ्ट टारगेट’ हैं। देश अभी लावण्या की आत्महत्या (?) को भूला नहीं था कि चेन्नई के रोयापेट्टा स्थित ‘सीएसआई मोनाहन गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल’ में लड़कियों के साथ हो रहे अत्याचार एवं उत्पीड़न का सनसनीखेज खुलासा हुआ है।
तमिलनाडु राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (टीएनएससीपीसीआर) की टीम ने कुछ छात्रावास एवं आवासीय गृहों का औचक निरीक्षण किया। आयोग के सदस्य सीएसआई मोनाहन गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल की दुर्दशा देखकर हैरान रह गए। आयोग की सदस्य डॉ. सरन्या जयकुमार ने बताया, ‘‘एक बड़े हॉल में कुछ पलंग थे। उनमें जंग लगी थी। उन पर कुछ मैले-गंदे तकिये रखे थे। बर्तन गंदे थे। कुछ रैक थे और उनमें बाइबिल की प्रतियां रखी थीं। बच्चियों के कपड़े भी बहुत गंदे थे।’’
डॉ. सरन्या ने बताया, ‘‘जहां-तहां बाइबिल की प्रतियां पड़ी हुई थीं। लड़कियों से बात आरंभ की तो वे प्रबंधन की ओर देखने लगीं। हमने प्रबंधन को बाहर रुकने को कहा और बच्चियों से बात की। उनसे कहा कि मैं ईसाई हूं और किसी राजनीतिक दल से नहीं हूं। हमारी ईसाई मत की सख्ती के मुद्दे को उठाने की भी कोई मंशा नहीं थी।
हम तो बच्चियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को तथ्यात्मक रूप से उजागर करना चाहते थे। इसलिए कहा कि यहां जो-जो होता है, लिखकर दो। लड़कियों से अपना नाम नहीं लिखने को कहां। कई लड़कियां तो आयोग के सदस्यों से लिपटकर बहुत रोर्इं। बच्चियों ने कहा कि वार्डन को कुछ मत बताइए, नहीं तो बहुत मार पड़ेगी। उन्होंने बताया कि एक दिन वार्डन भोजन कर रही थी और जूठे हाथ से ही एक लड़की को थप्पड़ जड़ दिया। इसलिए उनकी सच बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी।’’
कानूनों का उल्लंघन
तमिलनाडु में ‘तमिलनाडु होम्स एंड हॉस्टल्स एक्ट 2014’ के तहत सभी वाणिज्यिक, निजी, शैक्षिक संस्थानों से संबंधित या स्वतंत्र छात्रावासों के लिए पंजीकरण अनिवार्य है तो ‘चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन्स’ और ‘चिल्ड्रेन होम्स’ को ‘किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015’ के अंतर्गत पंजीकृत कराना अनिवार्य है। परंतु सीएसआई मोनाहन गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल ने पंजीकरण नहीं कराया है।
इसके प्रबंधन के पास समुचित दस्तावेज, लाइसेंस इत्यादि भी नहीं हैं। प्रबंधन से बात की तो पता चला कि इसका मासिक शुल्क मात्र 300 रुपये है। उसमें भी बहुत से बच्चे पैसे नहीं दे पाते। ऐसे में 10 रुपये में प्रतिदिन के हिसाब से खर्च कैसे चलेगा? पैसा कहां से आता है? स्पष्ट है, बच्चों की गरीबी का दोहन हो रहा है। उनकी स्थिति को देखकर लगता है कि उन्हीं से काम करवाया जाता है। इन बच्चों के माता-पिता इतने गरीब हैं कि वे फीस भी नहीं भर सकते। यही बड़ी बात है कि बच्चे कहीं-न-कहीं पढ़ रहे हैं। कुल मिलाकर स्थिति बहुत दयनीय है।
बच्चियों का दमन खतरनाक स्तर पर : कानूनगो
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा, ‘‘तमिलनाडु में पिछले कई दिनों से छात्रावासों में बच्चों की मौत की खबरें आ रही हैं। यह बेहद खतरनाक है। बच्चों के विकास के लिए एक रचनात्मक माहौल की जरूरत होती है, जो यहां पर नहीं है। बच्चियों को पैंट-शर्ट तक पहनने की इजाजत नहीं है। बच्चियों को अपने बाल खुले रखने की इजाजत नहीं है। बिंदी, चूड़ी पहनने की इजाजत नहीं है। अपनी मर्जी से खेलने-कूदने की इजाजत नहीं हैं। उनको बेहद अलग तरह के वातावरण में दबाकर रखा गया है और साथ-साथ उन्हें ईसाइयत की घुट्टी पिलाई जा रही है, जो बच्चियां नहीं चाहती हैं। ये सब बातें जब राज्य बाल आयोग ने बतार्इं, तब हमने तत्काल राज्य के डीजीपी और मुख्य सचिव को कार्रवाई करने के लिए लिखा है। लेकिन उन्होंने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है।’
राज्य सरकार की खामोशी
डॉ. सरन्या ने बताया कि उन्होंने राज्य सरकार के प्राधिकारियों, समाज कल्याण मंत्री और सामाजिक सुरक्षा निदेशालय को भी सूचित किया, परंतु कोई कार्रवाई नहीं हुई। राज्य आयोग की अध्यक्ष सरस्वती रंगासामी को भी सूचित किया गया। उन्होंने कहा कि बच्चों के साथ यह सब नहीं होना चाहिए। अंतत: हमें राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष को लिखना पड़ा। यह मामला केवल कन्वर्जन का नहीं है।
यह उससे बहुत आगे बच्चियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार एवं उत्पीड़न का है। यह उनके मनो-मस्तिष्क को ग्रंथियों से भरने वाला मामला है। ये बच्चे कभी भी राज्य के पक्ष में खड़े नहीं होंगे। इतना अत्याचार कौन करता है? यदि मैं बच्चों से यह कहूं कि तुम्हें अपना जाति प्रमाणपत्र बदलने की आवश्यकता नहीं है, बस कुरान पढ़ लो, बाइबिल पढ़ लो तो वह भी एक प्रकार का उत्पीड़न ही है। मानसिक यातनाएं झेलकर बच्चे कैसे जीते होंगे, यह बड़ा प्रश्न है। मुझ जैसी सामाजिक कार्यकर्ता यह देखकर हैरान है और कोई बच्चों की सहायता के लिए तैयार नहीं है।
अंतत: तमाम दरवाजे खटखटाने के बाद राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष रंगासामी और एससीपीसीआर सदस्य डॉ. सरन्या ने 13 सितंबर को तमिलनाडु के राज्यपाल से भेंट की और गैर-पंजीकृत गृहों-छात्रावासों के निरीक्षण तथा उसके बाद की घटनाओं के संबंध में 85 पृष्ठ की रिपोर्ट प्रस्तुत की।
डॉ. सरन्या ने बताया, ‘‘मैंने लड़कियों से वादा किया था कि उन्हें कुछ नहीं होगा। उन्हें यहां से सुरक्षित निकाल लेंगे।
7 सितंबर को उन्हें नहीं निकाला गया। 8 को भी नहीं। 9 को एक अज्ञात नंबर से एक लड़की ने फोन किया और बताया कि हमने जो कुछ लिखा था, वह सब प्रबंधन के पास है। हमने आप पर विश्वास किया था। अब हमें मारा-पीटा जा रहा है। हमारे माता-पिता को बुलाया गया है और यह लिखने के लिए विवश किया जा रहा है कि यहां सब कुछ अच्छा है।’’
पिछले वर्ष अक्तूबर में मद्रास उच्च न्यायालय ने बाल कल्याण अधिकारियों को समय-समय पर सभी बाल गृहों-छात्रावासों का निरीक्षण करने और नियमों का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई के निर्देश दिए थे। आश्चर्य है कि 6 सितंबर से अब तक बच्चों को उसी परिस्थिति में संघर्ष करने के लिए छोड़ दिया गया है। तमिलनाडु सरकार टस-से-मस नहीं हो रही।
जनवरी में तंजावुर जिले के ईसाई मिशनरी स्कूल ‘सेक्रेड हार्ट हायर सेकेंडरी स्कूल’ में 12वीं की छात्रा लावण्या की कथित आत्महत्या, जुलाई में कल्लाकुरिची निजी विद्यालय में 12वीं की एक छात्रा की संदिग्ध परिस्थिति में मौत और तिरुवल्लूर जिले के किलाचेरी के पास सरकारी सहायता प्राप्त संस्थान सेक्रेड हार्ट गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल के छात्रावास के कमरे में 12वीं की छात्रा का लटके हुए मिलना केवल संयोग नहीं हैं। इससे इन स्कूलों की ‘सेक्रेडनेस’ पर सहज ही संशय होता है।
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