श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन की सफलता की नींव रखने वाले पुरातत्वविद् प्रो. बी.बी. लाल 10 सितंबर को गोलोकवासी हो गए। प्रो. लाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातकोत्तर की उपाधि लेने के बाद पुरातत्व का कार्य प्रारंभ किया। संस्कृत का विद्यार्थी रहे होने के कारण प्रो. लाल भारतीय संस्कृति में गहन रुचि थी। उनके पुरातात्विक कार्यों में इसकी छाप स्पष्ट दिखाई देती है।
उन्होंने रामायण, महाभारत और सरस्वती सभ्यता से जुड़े पुरातात्विक स्थलों पर बड़े पैमाने पर कार्य किया। राम जन्मभूमि के पास उत्खनन कर उन्होंने सिद्ध किया कि बाबरी मस्जिद एक मंदिर के ढांचे के ऊपर बनी है। इस अकाट्य साक्ष्य ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हिंदू पक्ष में निर्णय सुनाने में बड़ी भूमिका निभाई।
प्रो. लाल ने 1975 में ‘रामायण स्थलों का पुरातत्व’ शीर्षक से एक परियोजना शुरू की। इसने अयोध्या, भारद्वाज आश्रम, नंदीग्राम, चित्रकूट और शृंगवेरपुर जैसे रामायण से संबंधित पांच स्थलों की खोदाई की। प्रो. लाल ने बाबरी ढांचे के पास स्तंभ आधारों की खोज के बारे में सात पन्नों की प्रारंभिक रिपोर्ट लिखी थी। हालांकि, इसके बाद सभी तकनीकी सुविधाएं वापस लेकर परियोजना रोक दी गई। फिर भी, उनकी प्रारंभिक रिपोर्ट भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद की ओर से 1989 में रामायण और महाभारत की ऐतिहासिकता पर अपने खंड में प्रकाशित की गई थी।
वर्ष 1990 में लाल ने उत्खनन के आधार पर ‘स्तंभ-आधार सिद्धांत’ के बारे में लिखा। उन्होंने दावा किया कि बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर जैसे स्तंभ मिले हैं। उन्होंने शोध के आधार पर दावा किया कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद की नींव मंदिर पर रखी गई होगी। प्रो. लाल ने लिखा है कि बाबरी मस्जिद के नीचे पत्थर के 12 स्तंभ उत्खनन में मिले। ये स्तंभ मस्जिद संरचना सिद्धांत के बिल्कुल उलट थे।
इन स्तंभों पर विशिष्ट हिंदू रूपांकन थे। मोल्डिंग और हिंदू देवताओं की आकृति भी उन्होंने देखे जाने का दावा किया। उन्होंने किताब में दावा किया कि ये स्तंभ मस्जिद के अभिन्न अंग नहीं थे। मंदिर जैसे स्तंभों के उनके सिद्धांत को 2002 में अदालत द्वारा नियुक्त उत्खनन दल के व्याख्यात्मक ढांचे के रूप में मान्यता दी गई थी।
उत्तर प्रदेश के झांसी में 21 मई, 1921 को जन्मे प्रो. लाल ने पुरातत्वविदों की 4 पीढ़ियों का मार्गदर्शन किया है। 1943 में उन्होंने प्रसिद्ध ब्रिटिश पुरातत्वविद् मोर्टिमर व्हीलर के अधीन खुदाई में एक प्रशिक्षु के रूप में कार्य किया और तक्षशिला की साइट से एक पुरातत्वविद् के रूप में अपना करियर शुरू किया। बीबी लाल 1968-1972 के बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक थे। प्रो. लाल ने 1950 और 1952 के बीच, महाभारत से जुड़े कई स्थलों की खुदाई की।
बीबी लाल ने हस्तिनापुर (उत्तर प्रदेश), शिशुपालगढ़ (उड़ीसा), पुराण किला (दिल्ली), कालीबंगन (राजस्थान) सहित कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों की खुदाई कर इतिहास की बहुत सारी परतें दुनिया के सामने खोली हैं। उन्होंने कई यूनेस्को समितियों में भी काम किया। 50 से अधिक वर्षों के दौरान लाल ने 50 से अधिक पुस्तकों और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित 150 शोध पत्रों पर काम किया।
2002 में प्रकाशित ‘द सरस्वती फ्लो आन: द कंटिन्युटी आफ इंडियन कल्चर’ और 2008 में प्रकाशित ‘राम, हिज हिस्टोरिसिटी, मंदिर एंड सेतु: एविडेंस आफ लिटरेचर, आर्कियोलॉजी एंड अदर साइंसेज’ प्रो. लाल की कुछ सबसे उल्लेखनीय पुस्तकें हैं।
‘द सरस्वती फ्लो आन’ में लाल ने प्राचीन भारत के इतिहासकार आरएस शर्मा द्वारा आर्य आक्रमण या आव्रजन सिद्धांत के तर्क की आलोचना की। प्रो. बी.बी. लाल को वर्ष 2000 में पद्म भूषण और 2021 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। भारतीय संस्कृति के ऐसे संरक्षक मनीषी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
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