मुहम्मद अली जिन्ना के साथ गुपचुप समझौता करके, देश को बांटने वाली कांग्रेस पार्टी के दरबारीछापों के ‘युुवराज’ आजकल भारत को ‘जोड़ने’ निकले हुए हैं। अपनी बची-खुची पार्टी को देश के राजनीतिक परिद्श्य से बाहर कराने यानीकराने के लिए दक्षिण से निकले ये ‘युवराज’ भारत के इतिहास, संस्कृति और परंपराओं से अनभिज्ञ हैं, यह कोई छुपा हुआ तथ्य नहीं है।
कभी मुहम्मद अली जिन्ना के साथ गुपचुप समझौता करके, देश को बांटने वाली कांग्रेस पार्टी के दरबारीछापों के ‘युुवराज’ आजकल भारत को ‘जोड़ने’ निकले हुए हैं। अपनी बची-खुची पार्टी को देश के राजनीतिक परिद्श्य से बाहर कराने यानी भारत को ‘कांग्रेस मुक्त’ कराने के लिए दक्षिण से निकले ये ‘युवराज’ भारत के इतिहास, संस्कृति और परंपराओं से अनभिज्ञ हैं, यह कोई छुपा हुआ तथ्य नहीं है।
आजादी के फौरन बाद पण्डित नेहरू के हाथ सत्ता आनी ही थी, क्योंकि तब सरदार पटेल को जनभावना के विरुद्ध जाकर जिस तरह कांग्रेस पार्टी ने हाशिए पर रखा था, उसके कारणों को सब जानते हैं। मुस्लिम लीग की देश को मजहब के आधार पर तोड़ने की जहरीली मांग को मानकर कांग्रेस ने अपनी तुष्टीकरण वाली देश विरोधी सोच तब से ही दर्शानी शुरू कर दी थी। इसलिए यह कहने में किसी समझदार इंसान को हिचक नहीं होनी चाहिए कि देश को तोड़ने और समाज को संकीर्ण स्वार्थ की वेदी पर बांटने का सबसे बड़ा पाप करने वाली कोई पार्टी है तो वह कांग्रेस ही है।
तो, इसी कांग्रेस के वर्तमान ‘कर्णधार युवराज’ की बचकानी सोच और हरकतों के बीच संभवत: किसी चापलूस ने ढहती पार्टी से मीडिया और भारतवासियों का ध्यान भटकाने के लिए विदेशी जूते पहनने और थोक के भाव फोटो खिंचवाने का मौका देने वाली इस ‘यात्रा’ का सुझाव दिया और उन्होंने मान लिया। एसी कंटेनर में ‘मिनिएचर महल’ में बैठकर भाड़े की भीड़ जुटाकर, ‘अपने पैसों पर पलते’ मीडिया में खबरें और फोटो छपवाकर ‘यात्रा’ को ‘ऐतिहासिक’ दिखाने से कोई दरबारी कन्नी नहीं काट रहा, काट भी नहीं सकता।
लेकिन ‘युवराज’ और उनके ‘प्रवक्ता’ अपनी समाज तोड़क सोच चलाने और तथ्यहीन आरोप लगाने की गंदी राजनीति से बाज कैसे आ सकते हैं! शायद इसीलिए कांग्रेस की अधकचरी आईटी टीम ने मुद्दों के अभाव में सोशल मीडिया पर भारत के प्रति अगाध निष्ठा रखने वाले और समाज को समरस करने का ध्येय लेकर 1925 से ही काम कर रहे रा.स्व.संघ को अपनी ईर्ष्या का निशाना बनाया। गत 12 सितम्बर को एक ट्वीट में संघ के गणवेश वाले खाकी निकर (कांग्रेसी शायद नहीं जानते कि अब इसमें वर्षों पूर्व परिवर्तन हो चुका है और यह खाकी पैंट हो चुकी है) को लपटों से घिरा दिखाया गया है और साथ में जो लिखा है, वह तथ्यों से कहीं मेल नहीं खाता।
इस ओछे ट्वीट के बाद ‘युवराज’ की नजरों में नंबर बढ़ाने के लिए प्रवक्ता जयराम रमेश ने भाजपा पर हमला बोल दिया, कहा कि ‘जो कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं उन्हें पुतला जलाने से परेशानी क्यों है? वे हमसे जवाब क्यों मांग रहे हैं? जवाब तो उन्हें देना है, जिन्होंने गांधी की हत्या की। जो गोडसे का समर्थन करते हैं, उसे अपना आदर्श बताते हैं। जवाब तो उन्हें देना है जो देश को तोड़ने में लगे हैं’।
दरअसल इससे पूर्व भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने उक्त ट्वीट पर कांग्रेस की भर्त्सना करते हुए कहा था कि ‘राहुल गांधी इस तस्वीर के जरिए देश में हिंसा फैलाना चाहते हैं। पात्रा ने तीखा आरोप लगाते हुए कहा कि गांधी परिवार के कहने पर कांग्रेस ने संघ और भाजपा की विचारधारा से जुड़े लोगों की हत्या करने के लिए लोगों को उकसाने का काम किया है।’ भाजपा ने कांग्रेस से इस ट्वीट और फोटो को फौरन हटाने की मांग की।
तथ्यों और तर्कों से संपन्न संबित पात्रा ने ‘युवराज’ पर सीधा निशाना साधा और कहा, ‘‘यह भारत जोड़ो नहीं, भारत तोड़ो और आग जलाओ आंदोलन है। वे लोगों को आगजनी और हिंसा के लिए उकसा रहे हैं। पहले भी उन्होंने किसान आंदोलन और अग्निवीर आंदोलन के समय लोगों को उकसाने का काम किया था। अब इस पोस्ट के जरिए वे आतंकवादियों को भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं की हत्या करने का संदेश प्रसारित रहे हैं।’’
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उन्होंने ‘युवराज’ को ‘पार्ट टाइम पॉलिटीशियन’ बताया। उन्होंने आगे कहा कि पार्ट टाइम राजनीति करने वाला आदमी हिंदुस्थान को क्या जाने?
बात सही है। जो राजनीतिक व्यक्ति यही नहीं जानता कि किसी संगठन या राजनीतिक दल की विचारधारा और कार्य क्या हैं, उसे राजनीति में रहने का अधिकार भी क्यों होना चाहिए! ‘युवराज’ को अपने नाना नेहरू के कामों तक की भी जानकारी नहीं है, अन्यों की तो जाने ही दीजिए। संघ ने सदा मातृभूमि को सर्वोपरि रखा है। यह बात नेहरू जानते तो थे, लेकिन स्वीकारते नहीं थे। लेकिन 1962 में चीन से हुए युद्ध के दौरान संघ स्वयंसेवकों की अगाध देशभक्ति देखकर नेहरू भी उन्हें सम्मानित करना नहीं भूले थे। (देखें बॉक्स) लेकिन जिन्होंने घुट्टी में समाज को तोड़ना ही सीखा हो, वे जोड़ने का मर्म नहीं समझ सकते!
‘संघ के समर्पण को नेहरू सरकार ने सम्मानित किया था’
26 जनवरी,1963 को रा.स्व.संघ का दस्ता राजपथ पर परेड में शामिल हुआ था। उस दस्ते का हिस्सा थे 87 वर्षीय श्री कृष्णलाल पठेला। हमने दिल्ली के जनकपुरी में रहने वाले पठेला जी से उस परेड और 1962 के युद्ध के बाद के उस दौर के बारे में बात की। पाञ्चजन्य के 31 जनवरी 2016 के अंक में प्रकाशित वह वार्ता यहां पुन: प्रस्तुत है
आज भले ही मेरी आयु 87 वर्ष की है, लेकिन 1963 की 26 जनवरी का वह दिन आज भी मुझे ज्यों का त्यों ध्यान है। मुझे याद है, हम जनकपुरी (नई दिल्ली) शाखा के स्वयंसेवकों को जब यह समाचार मिला कि रा.स्व.संघ का एक दस्ता 26 जनवरी की परेड में राजपथ पर निकलेगा तो एकाएक भीतर से उमंग की लहर उठी। हम सभी स्वयंसेवक इतने उत्साहित हुए कि जैसे जाने क्या मिल गया था। लेकिन इतना तो तय है कि संघ में सब ओर यही चर्चा थी कि नेहरू सरकार ने संघ की राष्ट्र निष्ठा और संकटकाल में देश के साथ खड़े होने के जज्बे का सम्मान किया है।
मुझे याद है जनकपुरी शाखा से हम दो स्वयंसेवक जिले के अन्य स्वयंसेवकों के साथ मार्चपास्ट की तैयारी में जुटे थे। मुझे यह तो नहीं पता कि मेरा चयन क्यों किया गया था, पर इतना तो पक्का है कि मेरे अधिकारी ने मेरे अंदर वैसी काबिलियत देखी होगी। पूरी दिल्ली से और भी स्वयंसेवक थे। देश के विभिन्न प्रांतों से स्वयंसेवक दस्ते में शामिल होने के लिए आने वाले थे। हमने पूरी तैयारी अनुशासन और लगन के साथ की थी। जैसा कि चलन है, 26 जनवरी से दो दिन पूर्व हमारे दस्ते यानी संघ के दस्ते ने, जिसमें शायद करीब 3200 स्वयंसेवक थे, बाकी परेड के साथ ड्रेस रिहर्सल में भाग लिया था। और फिर 26 जनवरी का दिन आया। हम सभी स्वयंसेवक एकदम चाकचौबंद गणवेश पहने, कदम से कदम मिलाते हुए जब राजपथ पर सलामी मंच के सामने से गुजरे तो दर्शकों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया। सीना ताने हम लोग परेड करते हुए इंडिया गेट तक गए।
मुझे ध्यान आता है 1962 का वह युद्ध। जैसा हमारा अभ्यास है, हर संकट की घड़ी में हम स्वयंसेवक कंधे से कंधा मिलाकर देशसेवा में जुट जाते हैं, युद्धकाल के दौरान भी हमने जिस मोर्चे से जितना बन पड़ा, सेना की उतनी मदद की थी। हमारे साथी स्वयंसेवकों ने अग्रिम मोर्चे पर जाकर हमारे सैनिकों को भोजन में खीर परोसने की ठानी। वे बंकरों के अंदर जाकर जवानों को खीर परोसते थे। एक दिन तो ऐसा हुआ कि स्वयंसेवक खीर के भगोने लेकर पहुंचे तो वहां पर गोलाबारी हो रही थी। लेकिन तय कर लिया था तो जाना ही था। स्वयंसेवक खाई-खंदकों से होते हुए, जमीन पर रेंगते हुए जवानों के बंकरों में पहुंचे और भोजन के वक्त उनके लिए खीर का इंतजाम कर दिया।
उस दौर की एक और बात याद आती है। देशभर से जवान रेलगाड़ियों, ट्रकों से मोर्चे की ओर रवाना हो रहे थे। पूरे देश की जनता अपने सैनिकों के साथ खड़ी थी और जहां जितना मौका मिलता, पैसे, भोजन, पानी सबका प्रबंध कर रही थी। हम स्वयंसेवकों में तो अलग ही जोश था। दिल्ली से भले ही हम मोर्चे पर जाकर सैनिकों की सेवा नहीं कर पा रहे थे, लेकिन हमने भी ठान लिया था कि कुछ करेंगे। हम स्वयंसेवकों ने मोहल्ले से चंदा इकट्ठा किया। उस जमाने में भी 697 रुपये इकट्ठे हो गये थे। हमने खूब सारे फल खरीदे और टोकरों में भरकर नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गए। सैनिकों से भरी एक रेलगाड़ी पंजाब की तरफ जा रही थी। हमने डिब्बों में चढ़कर सैनिकों से फल लेने का अनुरोध किया तो उन्होंने पलटकर कहा, ‘अरे भाई, आप लोगों ने इतना भोजन और फल दे दिये हैं कि अब तो इन्हें रखने की जगह भी नहीं है। बेहतर होगा आप इन्हें और जरूरतमंदों में बांट दें।’ युद्ध के समय ऐसा था देश का माहौल। मुझे याद है स्वयंसेवक और सभी आनुषंगिक संगठन अपनी तरफ से सरकार का सहयोग कर रहे थे। भारतीय मजदूर संघ ने भी अपने सभी आन्दोलन स्थगित कर रखे थे और सरकार को कह रखा था कि हम आपके साथ हैं। आज जब बाल स्वयंसेवकों को शाखा में खेलते देखता हूं तो वे पुरानी स्मृतियां मानस पटल पर उभर आती हैं। स्वयंसेवक यह न भूलें कि हमारा कार्य है देशहित की चिंता करना, हमारे लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि है। अपने इस स्वयंसेवकत्व को नहीं भूलना है। मैं जितना होता है, संगठन के लिए सक्रिय रहता हूं। सुबह से शाम तक अपने को व्यस्त रखता हूं और संघ कार्य में मस्त रहता हूं। प्रस्तुति : आलोक गोस्वामी
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