कालीकट विश्‍वविद्यालय की मोदी से सेकुलर चिढ़ उजागर, नियम के विरुद्ध जाकर छात्रों से छुपाई 'मोदी@20' 
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कालीकट विश्‍वविद्यालय की मोदी से सेकुलर चिढ़ उजागर, नियम के विरुद्ध जाकर छात्रों से छुपाई ‘मोदी@20’ 

तीखे विरोध के बाद विश्‍वविद्यालय ने फैसला पलटा और पुस्तक को अब 15 दिन तक डिस्प्ले करने को तैयार हुआ है

Alok Goswami by Alok Goswami
Sep 17, 2022, 12:30 pm IST
in भारत, केरल
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https://panchjanya.com/wp-content/uploads/speaker/post-250707.mp3?cb=1663398315.mp3

मई 2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के नाते, फिर प्रधानमंत्री के नाते अब तक के कार्यकाल के संदर्भ में उनके कृतित्व पर प्रकाशित पुस्तक ‘मोदी@20ः ड्रीम्स मीट डिलीवरी’ के प्रति केरल के कालीकट विश्‍वविद्यालय के सेकुलर प्रबंधन की चिढ़ सामने आई है।

भारत की 22 स्वनामधन्य विभूतियों के मोदी पर लिखे आलेखों के संग्रह इस पुस्तक को कालीकट विश्‍वविद्यालय ने बस एक दिन के लिए अपने डिस्प्ले काउंटर पर रखने के बाद आनन-फानन में हटा दिया। जबकि नियम कहता है कि वहां कोई भी पुस्तक 15 दिन के लिए प्रदर्शित की जाएगी। इससे होता ये है कि छात्र उस पुस्तक की सामग्री को ठीक से देख पाते हैं और उसे खरीदने को लेकर निर्णय लेते हैं। लेकिन मोदी पर लिखी यह पुस्तक विश्‍वविद्यालय प्रबंधन को शायद रास नहीं आई होगी इसलिए उन्होंने उसे बस एक दिन ही सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखा था। हालांकि बाद में तीखे विरोध के बाद विश्‍वविद्यालय ने फैसला पलटा और पुस्तक को अब 15 दिन तक डिस्प्ले करने को तैयार हुआ है।

इससे पहले, पुस्तक हटाने का विवाद तेजी से बढ़ा था। भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश इकाई ने साफ कहा कि विश्‍वविद्यालय का तालिबानीकरण नहीं होने दिया जाएगा। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने कहा कि विश्‍वविद्यालय प्रशासन ने भारत के संविधान और देश की लोकतांत्रिक परंपरा का अपमान किया है। नरेंद्र मोदी चुने हुए प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी का दावा करने वाली माकपा के शासन तले असहिष्णुता हावी हो गई है। भाजपा ने घोषणा की है कि राज्य के सभी विश्‍वविद्यालयों में वह इस पुस्तक को लेकर पुस्तक मेले आयोजित करेगी। इतना ही नहीं, भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालय के सामने धरना भी दिया।

इधर, विवाद को तूल पकड़ता देखकर विष्वविद्यालय की केन्द्रीय लाइब्रेरी की नई पुस्तकों के वर्ग में मोदी वाली पुस्तक को फिर से रखने को राजी हुई। इस संबंध में विश्वविद्यालय के लाइब्रेरी साइंस विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर मोहम्मद हनीफा ने कहा कि नई किताबों को केवल 15 दिन के लिए प्रदर्शित किया जाता है। उन्होंने कहा, इसलिए उन्होंने उसे 15 सितंबर को हटा दिया। उनका कहना था कि वह कोई विवाद नहीं चाहते इसलिए पुस्तक को फिर से प्रदर्शित करने का फैसला लिया गया है।

उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में 22 विभूतियों के मोदी पर लिखे आलेख हैं, जिनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल और सुधामूर्ति।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने मीडियाकर्मियों से कहा कि कालीकट विश्वविद्यालय ने मजहबी कट्टरपंथियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। उन्होंने चेतावनी दी, विश्वविद्यालय को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

कालीकट विश्‍वविद्यालय

विश्वविद्यालय की ओर से इस तरह की यह पहली कार्रवाई नहीं है। 2013 में, इसी कालीकट विश्वविद्यालय ने बीए तृतीय वर्ष/बीएससी के पाठ्यक्रम में ‘साहित्य और समकालीन अध्ययन के मुद्दे’ पाठ में ग्वांटेनामो बे जेल में रहे एक पूर्व बंदी इब्राहिम अल-रुबाइश की लिखी कविता ‘ओडे टू द सी’ को शामिल किया था। पुस्तक में कमलादास उर्फ माधविकुट्टी, पाब्लो नरुदा, सिल्विया पथ और अन्यों की भी रचनाएं थीं। पुस्तक के परिचय ने ग्वांटेनामो बे जेल में रुबाइश की नजरबंदी और आतंकवादी संगठन अल कायदा से उसके कथित संबंधों के बारे में चुप्पी ओढ़ ली गई थी। लेकिन, जब शिक्षकों और छात्रों के एक वर्ग ने इस पुस्तक का विरोध किया और एबीवीपी ने जबरदस्त आंदोलन छेड़ने की बात कही तो विश्वविद्यालय ने पुस्तक से उस कविता को हटाया था।

इसी तरह, करीब दस साल पहले, कालीकट विश्वविद्यालय के लोकगीत सोसायटी के तत्कालीन अध्यक्ष प्रो. गोदा वर्मा राजा और उनकी टीम ने विजयादशमी के दिन स्कूल छात्रों के लिए दीक्षा उत्सव ‘विद्यारंभम’ आयोजित करने का फैसला किया था। केरल में यह एक पारंपरिक अनुष्ठान है। अखबारों में इसकी सूचना प्रकाशित हुई। लेकिन, मजहबी कट्टरपंथियों के कड़े विरोध के कारण विश्वविद्यालय ने उस कार्यक्रम को रद्द कर दिया। इतना ही नहीं, जिन अभिभावकों ने अपने बच्चों के नाम इसके लिए पंजीकृत कराए थे, उनका वह साल खराब हो गया, क्योंकि केरल में प्रथा है कि बच्चे विद्यारंभम के बाद ही स्कूल जाते हैं।

कालीकट विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में चार साल काम कर चुके डॉ. अब्दुल सलाम ने खुद एक टीवी चैनल को बताया कि विश्‍वविद्यालय में राजनीति हावी है। पुस्तक के प्रकरण पर भी राजनीति की गई है। देश के प्रधानमंत्री पर प्रकाशित पुस्तक को प्रदर्शन से हटाना पूरे राज्य के लिए शर्मनाक है।

दिलचस्प तथ्य है कि राज्य के मुस्लिम संगठन खुलेआम कहते हैं कि कालीकट विश्वविद्यालय उनके इशारों पर चलता है। उनकी अनुमति के बिना वहां कोई वीसी तक नियुक्त नहीं हो सकता। सत्तारूढ़ माकपा के नेतृत्व वाला लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट और कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्षी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट मजहबी संगठनों के आगे कुछ नहीं बोलता। अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीति की खातिर उनके होंठ सिले रहते हैं। (इनपुट-केरल से टी. सतीशन)

 

 

 

 

Alok Goswami
Journalist at Bahrat Prakashan | Website

A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth  of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.

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