आज ही के दिन 32 वर्ष पहले एक ऐतिहासिक, परम साहसिक एवं देशभक्ति से परिपूर्ण अभियान संपन्न हुआ। जब घाटी में देश का अपमान करते हुए आतंकवादी एवं अलगाववादी ताकतों ने राष्ट्रध्वज तिरंगे को श्रीनगर के लाल चौक पर जलाया तो देश भर में राष्ट्रवादी हृदयों में विरोध का ज्वार उबल पड़ा। उस अपमान का बदला लेने हेतु इसी दिन, 11 सितम्बर 1990 को, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के 10,000 कार्यकर्ताओं ने “कश्मीर बचाओ” आंदोलन के तहत लाल चौक पर तिरंगा फहराने तथा अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाने की मांग को लेकर “चलो कश्मीर” का नारा देते हुए श्रीनगर की ओर कूच किया था। आतंकवादियों की गीदड़ भभकियों को चुनौती देते हुए “जहाँ हुआ तिरंगे का अपमान वहीँ करेंगे तिरंगे का सम्मान” के नारे के साथ कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने जा रहे हज़ारों कार्यकर्ताओं को पुलिस ने उधमपुर से थोड़ी दूर धारा 144 तोड़ने के आरोप में गिऱफ्तार कर लिया था।
अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाने की नींव इसी दिन रख दी गयी थी। 5 अगस्त 2019 को जब अनुच्छेद 370 हटा तब विद्यार्थी परिषद् द्वारा देखे गए वर्षों पुराने साहसिक एवं देशप्रेम पूर्ण स्वप्न को साकार होते हुए सम्पूर्ण देश ने देखा। “चलो कश्मीर” आंदोलन मात्र एक दिन का आंदोलन नहीं था, अपितु लाल चौक पर तिरंगे के हुए अपमान से विदीर्ण हुए हृदयों का कई महीने तक चले क्रमबद्ध एवं अनुशासित योजना एवं प्रयासों का फल था, जिसने देश में वर्षों बाद होने वाली एक महत्वपूर्ण घटना की नींव रखी। 28 से 31 मई 1990 को पणजी, गोवा में संपन्न हुई राष्ट्रीय कार्यकारी बैठक में कश्मीर समस्या पर विशेष रूप से प्रस्ताव पारित किए गए। इसी बैठक में कश्मीर संकट पर छात्रों को शिक्षित एवं जागृत करने के किये कार्यक्रमों की शृंखला भी तय की गयी।
20 जून: पूरे देश में संकल्प दिवस का आयोजन
24 जून: कश्मीर समस्या पर राष्ट्रीय सम्मलेन
9 से 15 अगस्त : कश्मीर बचाओ सप्ताह
22 अगस्त : अखिल भारतीय कॉलेज बंद
11 सितम्बर : कश्मीर मार्च (चलो कश्मीर)
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की 75 वर्षों की संघर्षपूर्ण, अत्यंत गौरवपूर्ण, राष्ट्रपुनर्निर्माण की भावना व देशप्रेम से ओतप्रोत, एवं प्रेरणादायी महान यात्रा पर लिखी पुस्तक “ध्येय यात्रा” के प्रथम खंड में, पृष्ठ 282-293 में यह सम्पूर्ण अभियान का घटना क्रम बड़े विस्तार से उल्लिखित है। ध्येय यात्रा का ही, इसी घटनाक्रम पर आधारित एक अंश शरीर में रोमांच का संचार करता है :
“श्रृंखलाबद्ध गतिविधियों का ही परिणाम था की जब अभाविप ने 11 सितम्बर 1990 को ‘चलो कश्मीर’ का आह्वान किया, तो यह जानते हुए भी कि लाल चौक में तिरंगा फहराने की चुनौती स्वीकार करना सीधे मृत्यु को स्वीकार करने जैसा है , जम्मू में देशभर से दस हज़ार से भी अधिक कार्यकर्ता पहुंच गए। उनमे लगभग दो हज़ार तो छात्राएं थीं। वे लगातार उद्घोष कर रहे थे – ‘ जहां हुआ तिरंगे का अपमान, वहीँ करेंगे उसका सम्मान।’, ‘जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है, जो कश्मीर हमारा है, वह सारा का सारा है।’, ‘ खून भी देंगे जान भी देंगे, देश की मिट्टी कभी न देंगे’, ‘ कश्मीर हो या कन्याकुमारी- भारत माता एक हमारी’, ‘ 370 धोखा है, कश्मीर बचा लो मौका है’, ‘370 का कानून , पीता है भारत का खून’, कश्मीर हो या गोहाटी – अपना देश अपनी माटी’, एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान- नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे’ इत्यादि। ….यह एकत्रीकरण देशद्रोहियों एवं उग्रवादियों के लिए भीषण चेतावनी के सामान था, जब केंद्र सरकार राष्ट्रध्वज के सम्मान की रक्षा करने में असफल रही थी, तब यही छात्रशक्ति अपनी पूरी संकल्प शक्ति के साथ राष्ट्रध्वज के सम्मान की रक्षा के लिए उठ खड़ी हुई।”
उस समय के विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्रों ने विद्यार्थी परिषद् के कश्मीर आंदोलन को लेकर बहुत कुछ लिखा। 13 सितम्बर 1990 को ‘नवभारत टाइम्स’ ने अपने सम्पादकीय में लिखा – ” जब देश का प्रधानमंत्री और कोई भी राजनेता श्रीनगर जाने का सहस नहीं उठा पा रहा हो, तब अभाविप के बैनर तले 10,000 छात्रों का लालचौक तक मार्च करने का फैसला गाँधीवादी समाधान का नया संस्करण माना जायेगा। हम यह मान कर चलते हैं कि इस मार्च के जरिये छात्र कोई राजनीति नहीं कर रहे हैं। जय प्रकाश आंदोलन से लेकर असम आंदोलन तक छात्रों सरकार को नींद से जगा सकने की क्षमता दिखाई है। दूसरे नेता भी राजनीति की अलकापुरी से बहार निकल खतरे उठा कर क्यों नहीं इस मुहिम को आगे बढ़ाते ?”
दैनिक तरुण भारत, मुंबई ने अपने सम्पादकीय में विद्यार्थी परिषद् के पुरुषार्थपूर्ण संघर्ष के लिए शुभकामनायें व्यक्त कीं और अभाविप की प्रशंसा करते हुए कहा, ” पाकिस्तान की धमकी के बावजूद विद्यार्थी परिषद् ने लाल चौक पर तिरंगा फहराने का संकल्प लेकर कुछ किया है, वह देश का ऐसा संघर्षशील और प्रभावी संगठन बन गया है, जो छात्रों के आत्मबल को पहचानता है। पाकिस्तान द्वारा बिछाये गए बारूद और अंगारों पर चल कर कश्मीर के लिए कुछ करने वाले इस क्रान्ति-सूर्य को हार्दिक शुभकामनायें।”
आज जब कश्मीर में दोनों दुर्भाग्यपूर्ण कानून हट चुके हैं, और घाटी में कई सकारात्मक अमूलचूल परिवर्तन हो रहे हैं, तो हमें उस बीते समय और अभाविप के नेतृत्व में हज़ारों छात्रों के संघर्ष को भी नहीं भूलना चाहिए जिसके कारण ही आज अखंड भारत का स्वप्न पूर्णता को ओर प्रतिपल अग्रसारित है।
(लेखक दिल्ली स्थित जे.एन.यू. के पर्यावरण विज्ञान संस्थान में शोध छात्र हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के दिल्ली प्रान्त के प्रदेश मीडिया संयोजक का दायित्व निर्वहन कर रहे हैं।)
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