नई पीढ़ी कब किस चीज की तरफ खिंचने लगती है और कब उससे उकता जाती है, इस मनोविज्ञान को समझने के लिए विशेषज्ञ कोशिशें में जुटे हैं। किशोरों में तो मन का यह भटकाव कुछ ज्यादा ही देखने में आता है। आज की किशोरों की पीढ़ी, जो अंदाजन 1997 से 2012 के बीच जन्मी है, उस पर कभी सोशल मीडिया का ऐसा भूत सवार हुआ था कि दिन-रात बस उसी में डूबे रहना एक चलन बन गया था। बात ज्यादा पुरानी नहीं, बस सात-आठ साल पहले की है। खासतौर पर फेसबुक को लेकर तो जबरदस्त जुनून चढ़ा था। लेकिन अब हालात ऐसे नहीं हैं।
आज की ताजा स्थिति यह है कि किशोर फेसबुक से कन्नी काटने लगे हैं। अब वे रोज-रोज फेसबुक पर सक्रिय नहीं होते। लगता है, वर्चुअल दुनिया अब उनको उतनी भा नहीं रही है। जबकि 1981 से 1996 के बीच पैदा हुए आज के 26 से 41 साल के लोग अभी भी फेसबुक पर ही खूब उंगलियां चलाते देखे जा रहे हैं। किशोरों की हालत बिल्कुल उलट दिख रही है।
विश्व प्रसिद्ध शोध संस्था प्यू रिसर्च सेंटर ने हाल में एक सर्वे किया है, जिसके इस बाबत आंकड़े हैरान करने वाले हैं। प्यू का दावा है कि आज अमेरिका में 13 से 17 साल के सिर्फ 32 प्रतिशत बच्चे ही रोजाना फेसबुक पर सक्रिय होते हैं। जबकि आज से सात साल पहले, 2014-15 में ऐसा करने वाले किशोर 71 प्रतिशत थे। यानी तब आज के मुकाबले दुगुने से ज्यादा किशोर नियमित तौर पर फेसबुक पर सक्रिय थे। इतना ही नहीं, वे किशोर साथ ही रोजाना इंस्टाग्राम और स्नैपचैट पर भी खूब हरकत करते थे। लेकिन अब अमेरिका में किशोरों में सोशल मीडिया के लिए दीवानगी उतार पर है, यूजर्स की तादाद में गिरावट आ रही है। लेकिन यह बदलाव अचानक नहीं हुआ है।
पिछले पांच सालों के दौरान अमेरिकी किशोरों में रोज-रोज फेसबुक देखना साल दर साल घटता गया है। जैसा पहले बताया, अब सिर्फ 31 प्रतिषत किशोर ही रोज फेसबुक पर सक्रिय होते हैं। कारण? इस उतार का सबसे बड़ा कारण निजता पर हमले की बातों को माना जा रहा है। दरअसल, गत कुछ वर्षों में सोशल मीडिया से डाटा उड़ा लेने और निजता के खतरे में पड़ने के कई उदाहरण देखने में आए हैं। और यह एक बड़ी वजह मानी जा रही है किशोरों में सोशल मीडिया को लेकर चस्का कम होने के पीछे। फेसबुक से जी उचटने के पीछे।
अब किशोर किसी नए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर छलांग लगाने में ज्यादा देर नहीं लगाते। फेसबुक की मूल कंपनी ‘मेटा’ के इंस्टाग्राम पर 62 प्रतिशत किशोर सक्रिय हैं, पर इस पर भी वे अब रोज रोज उंगलियां नहीं चलाते। कइयों का कहना है कि वे इससे जल्दी ही उकता जाते हैं। सोशल मीडिया की कंपनियां भी यह जान रही हैं इसलिए आएदिन कोई न कोई नया फीचर अपने प्लेटफॉर्म में जोड़ रही हैं। या उन्हें नए कलेवर में फिर से बाजार में उतार रही हैं।
फेसबुक का तो यहां तक मानना है कि कुछ साल बाद, अमेरिका में फेसबुक पर किशोर यूजर्स गिनती के रह जाएंगे। लेकिन कंपनी को उम्मीद है कि आज की वयस्क पीढ़ी फेसबुक पर सक्रिय रहने वाली है। एक विशेषज्ञ का मानना है कि फेसबुक तथा दूसरी सोशल साइट्स नई पीढ़ी को लुभाने के लिए कई तरह के बदलाव कर रही हैं, लेकिन प्यू रिसर्च सेंटर का एक सर्वे इंग्लैंड में किए एक अन्य सर्वे के हवाले से बताता है कि 13 से 17 साल की लड़कियों की वीडियो में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है।
अब बात भारत की। पता चला है कि भारत में 73 प्रतिशत बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन है। एक राष्ट्रीय संस्थान की रिपोर्ट बताती है कि भारत में मोबाइल का प्रयोग कर रहे इन 73 प्रतिशत बच्चों में से 30 प्रतिशत मानसिक बीमारियों की चपेट में आ चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार, हर 10 में से 3 बच्चे डिप्रेशन, भय, चिंता तथा चिड़चिड़ेपन से ग्रसित हैं। एक अध्ययन में तो यहां तक पाया गया है कि सोशल मीडिया का प्रयोग करने वाले किशोरों के दिमाग, हॉर्मोन और बर्ताव पर इसका असर पड़ रहा है।
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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