कई बच्चों के माता-पिता भी चाहते हैं कि उनका बच्चा इसी विद्यालय में पढ़े, ताकि जीवन में कुछ अच्छा कर सके। लइयो के इस विद्यालय में पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक पढ़ाई होती है। वर्ष 2003 से शिबू ने इस विद्यालय में पढ़ाना शुरू किया। खास बात यह है कि शिबू गाना गाकर और खेल-खेल में ही बच्चों को पढ़ा देते हैं
अमूमन यही कहा जाता है कि सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती है। इसी वजह से अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला सरकारी विद्यालय में नहीं करा कर उन्हें निजी विद्यालयों में पढ़ाते हैं। झारखंड में भी दूसरे राज्यों की तरह सरकारी विद्यालय हैं, लेकिन इन विद्यालयों को आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोग ही जानते हैं। किंतु रामगढ़ के घाटो प्रखंड के लइयो गांव में एक ऐसा सरकारी विद्यालय है, जो एक शिक्षक के कारण काफी प्रसिद्ध हो चुका है।
लइयो के राजकीयकृत मध्य विद्यालय में एक शिक्षक हैं, जिनका नाम शिबू कुमार महतो है। शिबू बीते 19 वर्ष से शिक्षण कार्य में लगे हुए हैं। बच्चों को पढ़ाने का उनका तरीका अनूठा है। उनकी शिक्षण कला पढ़ाई में बच्चों की रुचि पैदा कर रही है। शिबू की ख्याति का आलम यह है कि आसपास के क्षेत्रों यह विद्यालय की इतनी ख्याति हो गई है कि दूसरे विद्यालयों के बच्चे भी उनके विद्यालय में नाम लिखवाने के लिए उतावले रहते हैं।
कई बच्चों के माता-पिता भी चाहते हैं कि उनका बच्चा इसी विद्यालय में पढ़े, ताकि जीवन में कुछ अच्छा कर सके। लइयो के इस विद्यालय में पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक पढ़ाई होती है। वर्ष 2003 से शिबू ने इस विद्यालय में पढ़ाना शुरू किया। खास बात यह है कि शिबू गाना गाकर और खेल-खेल में ही बच्चों को पढ़ा देते हैं और बच्चों को पता ही नहीं चलता कि कब उन्हें सबक याद हो गया और कब खेल लिया। इस विद्यालय में कुल 8 शिक्षक हैं, जिनमें एक प्रधानाध्यापक हैं। इसके बावजूद कई कक्षाओं के बच्चों की मांग होती है कि उनकी कक्षा में शिबू सर ही पढ़ाएं।
शिबू का कहना है कि सरकारी विद्यालयों के शिक्षक काफी पढ़े-लिखे और कर्मठ होते हैं। यदि झारखंड सहित पूरे देश के शिक्षकों को पढ़ाने के अलावा किसी और काम में न लगाया जाए तो सरकारी विद्यालय देश के सभी निजी विद्यालयों से ज्यादा बेहतर परिणाम दे सकते हैं।
शिबू बताते हैं कि कुछ समय पहले सरकार द्वारा पारा शिक्षकों अभ्यास वर्ग कराया जाता था, जिसमें बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने अनूठी कला विकसित की। इसे बच्चों पर आजमाया तो इसका लाभ भी देखने को मिला। उन्होंने कहा कि पहले उनके विद्यालय में काफी कम विद्यार्थी थे। लेकिन जब उन्होंने नए तरीके से पढ़ाना शुरू किया तो विद्यालय का परिणाम अच्छा आने लगा।
यह देखकर अभिभावकों ने विद्यालय में अपने बच्चों का दाखिला कराना शुरू कर दिया। देखते-देखते गांव के ऐसे कई बच्चे भी विद्यालय आने लगे, जो पहले विद्यालय आते ही नहीं थे। उन्होंने कहा कि बच्चों का परिणाम अच्छा आने लगे तो एक शिक्षक के लिए इससे बड़ा पारितोषिक और कुछ नहीं हो सकता है। शिबू के अनुसार, सहयोगी शिक्षक और प्रधानाचार्य भी बच्चों को बढ़ाने के उनके अनूठे तरीके को पसंद करते हैं। उनसे हमेशा ही शिबू को प्रोत्साहन मिलता है। इस कारण वे बच्चों को अच्छे से पढ़ा पारहे हैं।
शिबू का कहना है कि सरकारी विद्यालयों के शिक्षक काफी पढ़े-लिखे और कर्मठ होते हैं। यदि झारखंड सहित पूरे देश के शिक्षकों को पढ़ाने के अलावा किसी और काम में न लगाया जाए तो सरकारी विद्यालय देश के सभी निजी विद्यालयों से ज्यादा बेहतर परिणाम दे सकते हैं। एक तो विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है, इसके बावजूद सरकार की शिक्षकों को दूसरे कामों में लगा देती है। इससे बच्चों को सही और समय पर उचित शिक्षा नहीं मिल पा रही है। हालांकि शिबू को अपनी अनूठी शिक्षण कला के कारण ख्याति मिल रही है, लेकिन वे इसका श्रेय अपने वरिष्ठ सहयोगियों और प्रधानाध्यापक को ही देते हैं।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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