चीनी सरकारी भोंपू ‘ग्लोबल टाइम्स’ क्यों करने लगा भारत की तारीफ?

ग्लोबल टाइम्स लिखता हैं, ‘हमें नई दिल्ली का रणनीतिक धैर्य अच्छा लगा, उसे आसानी से झांसा नहीं दिया जा सकता’

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WEB DESK

पूरी दुनिया में ‘चीन सरकार के भोंपू’ के नाम से मशहूर अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ इन दिनों भारत को लेकर बड़े मीठे बोल बोल रहा है। ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में भारत के प्रति बाग-बाग होते हुए लिखा है कि ‘अमेरिका और पश्चिमी देश न चीन को समझते हैं, न ही भारत को। आखिर चीन और भारत जैसे बड़े देश, जो एशियाई सदी का सपना देखते हैं, उनके इशारे पर कैसे नाच सकते हैं? अमेरिका तथा पश्चिम के मुकाबले हम भारत की आजाद विदेश नीति का सम्मान करते हैं।’

इसमें संदेह नहीं है कि ताकतवर आईएनएस विक्रांत के कमीशन होने, भारत के ब्रिटेन को पछाड़कर विश्‍व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद से चीन के सुर बदले नजर आ रहे हैं। ऐसे में ‘ग्लोबल टाइम्स’ भी उसी भाव को झलका रहा है तो इसमें आश्‍चर्य की बात नहीं है। लेकिन इस तारीफ की आड़ में उसने अमेरिका और भारत के बीच बढ़ती निकटता में दरार डालने की कोशिश की है।

अभी पिछले दिनों ही, भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ते दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का ओहदा पाया है। अब इसमें उसके पहले जो चार देश हैं वे हैं, अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी। इसमें संदेह नहीं है कि भारत की उपलब्धि पर सबसे ज्यादा चिढ़ किसी को हो रही है तो वह चीन ही है। चीन के जले पर नमक छिड़कते हुए पश्चिमी देशों ने यहां तक कयास लगाया है कि आने वाले थोड़े ही वक्त में भारत की अर्थव्यवस्था चीन को भी पछाड़ सकती है। यह बात कम्युनिस्ट चीन के गले नहीं उतर रही है। यही वजह है कि बीजिंग ने परोक्ष रूप से इस निकटता में फांक डालने के लिए बेमांगी सलाह दी है कि भारत पश्चिम से दोस्ती कम करे। ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि, ‘भारत पश्चिम के हाथों की कठपुतली न बने।’

ग्लोबल टाइम्स ने संपादकीय में लिखा है कि सोचिए, अगर भारत अमेरिका तथा पश्चिम के भू-राजनीतिक दायरे में फंसा और वॉशिंगटन का गुलाम बना, तो वह एक शक्तिशाली देश बनने के अपने मकसद को पाने के बारे में नहीं सोच सकता। अखबार लिखता है कि, इतना ही नहीं भारत का स्वाभिमान भी उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं दे सकता है।

ग्लोबल टाइम्स आगे लिखता हैं, ‘हमें नई दिल्ली का रणनीतिक धैर्य अच्छा लगा, उसे आसानी से झांसा नहीं दिया जा सकता।’ इतना ही नहीं, चीन पहले भी भारत के विदेश मंत्री जयशंकर के ‘एशियाई सदी’ वाले वक्तव्य का समर्थन कर ही चुका है। गत माह बैंकाक में जयशंकर ने चुलालांगकॉर्न विश्वविद्यालय में ‘हिंद-प्रशांत का भारतीय दृष्टिकोण’ विषय पर वक्तव्य में कहा था कि एशियाई सदी तभी संभव है जब भारत और चीन साथ आएं। उन्होंने कहा था कि यदि भारत और चीन साथ नहीं आते तो एशियाई सदी का लक्ष्य पाना मुश्किल होगा। चीन ने तब जयशंकर के बयान का समर्थन किया था। बीजिंग ने कहा था कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच ‘मतभेदों की तुलना में साझा हित कहीं ज्यादा हैं।’

 

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