कंगाल पाकिस्तान के कर्जे के कटारे में उसके आका चीन सहित तमाम मुस्लिम देशों के ठेंगा दिखाने के बाद उसे बस अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ से उम्मीद बची है। अभी तीन दिन पहले पता लगा, कि आईएमएफ की एक टीम गुपचुप इस्लामाबाद जाकर इस बात पर आश्वस्त होना चाहती थी कि कर्जा दिया तो पाकिस्तान उसे चुका भी पाएगा कि नहीं! अभी तक के कर्जे को छोड़ भी दें तो आईएमएफ आगे जो कर्जा देने की सोच भी रही है तो उसकी वापसी कैसे होगी। इसीलिए अब लगता है आगामी 2022-23 की दूसरी छमाही में पाकिस्तान को कर्जा नहीं मिल पाएगा।
इसमें एक बड़ी वजह पाकिस्तान का सीईपीसी परियोजना पर पैसा लगाना है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) को लेकर भी पाकिस्तान को सांसत में डाल दिया है। यह संस्था पहले भी इस चीनी परियोजना को लेकर पाकिस्तान को सावधान कर चुकी है। अब एक और विश्लेषण सामने आया है जिसमें इस संस्था की ओर से कहा गया है कि 2022 में चीनी परियोजना सीपीईसी में हुआ निवेश पाकिस्तान में आर्थिक वृद्धि दर बढ़ा सकता है। इससे होगा ये कि पाकिस्तान की कर्ज चुका पाने में नाकाम हो जाएगा।
विष्लेशकों के अनुसार, इस समय पाकिस्तान आईएमएफ पर इतना ज्यादा निर्भर है, कि प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ आईएमएफ की सलाह को ठुकरा नहीं सकते हैं। पाकिस्तान के लिए हाल ही में कर्ज की एक किस्त को मंजूरी वह दे ही चुकी है।
सार्वजनिक एवं देशी कर्ज भुगतान क्षमता पर आईएमएफ की विश्लेषण कहती है, ‘2022 के शुरू में सीपीईसी के अंतर्गत पैसा लगाया गया है। हो सकता है इन्फ्रास्ट्रक्चर में दूसरे चरण में हुए इस निवेश से आर्थिक विकास की संभावनाएं सुधर जाएं, लेकिन कर्ज का बोझ तो बढ़ना तय है। यही वजह है कि पाकिस्तान को अगर और पैसा देते हैं तो वह वापस लौटेगा कि नहीं, इसको लेकर संशय बना हुआ है।’
यानी अपनी विश्लेषण रिपोर्ट में कर्ज दे सकने वाली आईएमएफ ने कहा है कि 2022-23 की दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले कर्ज के अनुपात में कोई गिरावट नहीं आएगी। इसलिए कर्ज वापसी को लेकर संदेह पैदा हुआ है। 2020-21 के अंत में पाकिस्तान में जीडीपी के मुकाबले कर्ज का अनुपात 77.9 प्रतिशत दर्ज किया गया था। विशेषज्ञ कह तो रहे हैं इसके वित्त वर्ष 2021-22 के आखिर में जाकर 78.9 प्रतिशत हो जाने के कयास हैं। लेकिन आईएमएफ ने भी पूरी दमदारी से कह दिया है कि उसने जो सुझाव दिए हैं उन पर अगर पाकिस्तान ठीक से चला तो 2026-27 के आखिर में उसके जीडीपी के मुकाबले कर्ज का अनुपात 60 प्रतिशत हो सकता है।
इसी रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि पाकिस्तान पर अभी कुल जितना कर्जा है, उसका 30 प्रतिषत हिस्सा तो चीन का है। अब आईएमएफ की चेतावनी है कि ‘ब्याज की ऊंची दर, नीतियों में सख्ती की वजह से इस वक्त आर्थिक विकास में अपेक्षा से अधिक गिरावट आने की संभावना, मध्यावधि में आर्थिक वृद्धि दर हल्की रहने की संभावना और चीन के सरकारी प्रतिष्ठानों को देनदारी के बोझ की वजह से पाकिस्तान को अभी तक दिए गए कर्ज की वापसी को लेकर ही खतरा बना हुआ है।’
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