मानसा जिले के गांव मूसा का सरकारी विद्यालय आम सरकारी विद्यालयों की तरह था। वही अनचाही घास व वनस्पतियों से भरा बिना चारदीवारी का मैदान, जर्जर इमारत, घुन खाया फर्नीचर और कक्षा की बजाए इधर-उधर समय बिताते बच्चे।
पंजाब में मानसा जिले के गांव मूसा का सरकारी विद्यालय आम सरकारी विद्यालयों की तरह था। वही अनचाही घास व वनस्पतियों से भरा बिना चारदीवारी का मैदान, जर्जर इमारत, घुन खाया फर्नीचर और कक्षा की बजाए इधर-उधर समय बिताते बच्चे। परिणामस्वरूप स्कूल बन्द होने के कगार पर पहुंच गया और अभिभावक अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में भेजने लगे, लेकिन एक अध्यापक के नवाचार ने दम तोड़ते विद्यालय की सांसों में नई ऊर्जा का संचार किया और वह भी लोकनृत्य, गीतों व रंगमंच से। आज वही विद्यालय राज्य के गिने-चुने उत्कृष्ट विद्यालयों में शामिल है।
सन् 2002 में जगजीत सिंह वालिया की इस विद्यालय में नियुक्ति हुई। जगजीत जब इस विद्यालय में पहुंचे तो वहां की हालत देखकर बहुत दु:खी हुए। सिर्फ चार कक्षाएं बनी थीं, न कोई शौचालय, न साफ-सफाई और न ही दरवाजा। बच्चे या तो विद्यालय आते नहीं थे और जो आते थे, वे कक्षाओं में कम दिखाई पड़ते। साथ ही विद्यालय जानवरों के लिए भी खुला मैदान था। पर जगजीत सिंह ने किसी और पर दोष डालने से पहले खुद अपनी जिम्मेदारी निभाने की ठानी। उन्होंने पहले तो अपने स्तर पर काम करना शुरू किया। बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ अन्य खेलकूद और रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ा। इसके अलावा विद्यालय की कोई छोटी-मोटी जरूरत होती थी तो वे अपनी जेब से कुछ पैसे खर्च कर देते।
उन्होंने बच्चों में विद्यालय आने के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए पंजाब की संस्कृति के अहम हिस्से, ‘भांगड़े’ का सहारा लिया। उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ भांगड़ा सिखाना भी शुरू किया। बच्चे नृत्य और नाटक आदि के चाव में नियमित विद्यालय आने लगे। उनकी इन छोटी-छोटी पहलों ने न सिर्फ छात्रों को, बल्कि अन्य विद्यालयों के शिक्षकों को भी प्रेरित किया। फिर उन्होंने अन्य सहयोगियों के साथ विद्यालय के ढांचागत विकास पर काम करना शुरू किया। पर इस राह में चुनौती थी धन की। सरकारी धन के इंतजार में बैठने का कोई फायदा नहीं था। इसलिए जगजीत सिंह ने सामुदायिक सहभागिता का रास्ता अपनाया। उन्होंने विद्यालय के विकास कार्यों के लिए गांव से चंदा इकट्ठा करने की ठानी।
वे हर सुबह घर-घर जाकर लोगों को समझाते कि अगर वे थोड़ी भी मदद करके सरकारी विद्यालय को ही सुधरवा दें तो उन्हें अपने बच्चों को महंगे निजी विद्यालयों में भेजने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उनकी यह मेहनत रंग लाई और धीरे-धीरे गांव के लोग उनकी मदद के लिए आगे आने लगे। उन्होंने गांव से लगभग 15,00,000 रु. इकट्ठे किए और खुद अपनी जेब से लगभग 2,00,000 रु. दिए। विद्यालय के अन्य सहयोगियों ने भी आर्थिक मदद की और इस तरह से विद्यालय की पूरी काया ही पलट गई। आज उनका विद्यालय पंजाब के 3,400 आदर्श विद्यालयों की सूची में आता है और छात्रों की संख्या 230 है। विद्यालय में आठ कक्षाएं हैं। छात्र-छात्राओं और शिक्षकों के लिए शौचालय, ‘स्मार्ट क्लास’, ‘कंप्यूटर क्लासेस’, ‘लाइब्रेरी’, खेलने का मैदान, प्रयोगशाला और ‘एजुकेशनल पार्क’ भी है।
वैसे तो विद्यालय का औपचारिक समय सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक का है, लेकिन यह शाम के 5 बजे तक खुला रहता है। छुट्टी के बाद बच्चे एक-डेढ़ घंटे के लिए घर जाते हैं और फिर कुछ देर खाना खाकर, आराम करके फिर से विद्यालय आ जाते हैं। यहां पर वे पहले गृह कार्य आदि पूरा करते हैं और फिर खेलते हैं। खेल-कूद के साथ-साथ संगीत की कक्षा भी होती है। इसके लिए विद्यालय ‘प्राचीन कला केंद्र’ नामक एक संगठन की मदद लेता है। पंजाब सरकार ने जगजीत सिंह को उनके प्रयासों के लिए सम्मानित करने के साथ-साथ 2018 में इस विद्यालय को ‘स्मार्ट स्कूल’ घोषित किया।
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