उत्तराखंड: कोविड के 2 साल बाद नंदा देवी महोत्सव कि धूम, कदली वृक्ष की छाल पर नंदा सुनंदा की मूर्तियां बनाने का काम शुरू

कहा जाता है कि शुरुआती दिनों में मूर्तियो को चांदी से बनाया जाता था। 1956 तक चांदी की ही मूर्तियां बनाई जाती रही। धीरे धीरे प्रथा में बदलाव आने लगा।

Published by
उत्तराखंड ब्यूरो

मां नंदा देवी महोत्सव का आगाज़ इस बार बड़ी ही धूमधाम से हुआ है। कोरोना का ग्रहण लगने की वजह से 2 साल नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव नही मनाया गया।

इस वर्ष महोत्सव का 120वां साल है। नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव सबसे पहले 1902 में शुरू हुआ था। इस महोत्सव का सबसे खास आकर्षण नंदा सुनन्दा की सुंदर मूर्तियां ही होता है। ये मूर्तियां कदली वृक्ष यानी केले के पेड़ से इको फ्रेंडली बनाई  जाती है। मूर्तियों के निर्माण में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है।

पिछले कई वर्षों से मां नंदा सुनंदा की खूबसूरत मूर्तियों को महोत्सव के आयोजक संस्था के अध्यक्ष रहे स्व ठाकुर साह के परिवार के सदस्यों द्वारा ही तैयार किया जाता है। मूर्ति निर्माण में महिलाएं ही अग्रणीय भूमिका निभाती है। कहा जाता है कि शुरुआती दिनों में मूर्तियो को चांदी से बनाया जाता था। 1956 तक चांदी की ही मूर्तियां बनाई जाती रही।

धीरे धीरे प्रथा में बदलाव आने लगा। अब कदली वृक्ष के तनों काटकर उसमे से खपच्चियों से चेहरे तैयार किये जाते है। सांचो में रुई लगाई जाती है। इको फ्रेंडली रंगों से चेहरों के ढांचों को आकार दिया जाता है और रंग सूखने के बाद माता को जेवर पहनाए जाते है। मां नंदा सुनंदा की मूर्तियां कल पूरी तरह तैयार हो जाएंगी फिर इन्हे नयना देवी मंदिर परिसर में नैनी झील किनारे स्थापित किया जाएगा।

Share
Leave a Comment