जानिए जनजाति और पिछड़े वर्ग की महिला कथाकारों की ‘कथा’

Published by
रितेश कश्यप

जनजाति गांवों और सुदूर क्षेत्रों में सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक क्रांति ला रही हैं वे महिलाएं, जो परम्परागत कथावाचक या पुजारी नहीं हैं। जनजाति या पिछड़े वर्ग की इन महिलाओं के मुख से रामकथा सुनकर लोग अपने मूल धर्म की ओर लौट रहे हैं।

 

सामाजिक एकता, सांस्कृतिक जागरण और अपने धर्म के प्रति लोगों को जागरूक करने की दृष्टि से झारखंड के रामगढ़ में एक राम कथा हुई। इसकी सबसे बड़ी विशेषता थी कि सभी कथाकार महिलाएं थीं और उनमें भी अधिकतर जनजाति समाज की। कुछ कथाकार पिछड़े वर्ग की भी थीं। कथाकारों की संख्या 40 थी और ये सभी झारखंड के छह जिलों से आई थीं। मुख्य कथाकार संगीता किशोरी थीं। कथा का श्रीगणेश 25 अगस्त को हुआ और समापन 2 सितंबर को। पहले दिन रामगढ़ में भव्य शोभायात्र निकाली गई, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु महिलाओं ने सिर पर कलश रखकर नगर भ्रमण किया। स्थान-स्थान पर इनका स्वागत पुष्पवर्षा करके किया गया।

इन कथाकारों ने नौ दिन तक रामगढ़ को राममय बना दिया। प्रतिदिन प्रातः 7-11 बजे तक रामायण का पाठ हुआ और सायं 4-8 बजे तक रामकथा हुई। दोनों समय सैकड़ों श्रद्धालु कथा श्रवण के लिए पहुंचे। कथा का आयोजन श्रीहरि सत्संग कथा समिति ने किया था। बता दें कि यह समिति एकल अभियान का ही हिस्सा है। एकल अभियान पूरे देश में 1,10,000 से अधिक विद्यालयों का संचालन करता है। ये विद्यालय सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। यहां से पढ़-लिखकर निकलने वाले बच्चे आज अनेक क्षेत्र में देश की सेवा कर रहे हैं। ऐसे ही कुछ बच्चों को श्री हरि सत्संग कथा समिति कथाकार का प्रशिक्षण दिलाती है। इसके लिए अयोध्या और वृन्दावन में प्रशिक्षण केंद्र हैं।

रामगढ़ में कथा करने वालीं सभी कथाकार इन्हीं प्रशिक्षण केंद्रों से शिक्षित और दीक्षित हुई हैं। ये कथाकार सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में नियमित रूप से कथा और अन्य धार्मिक कार्य संपन्न करती हैं। इससे समाज की अनेक बुराइयां तो दूर होती ही हैं, इसके साथ ही उन तत्वों को हार मिलती है, जो लोभ-लालच से हिंदुओं को कन्वर्ट करते हैं।

मुख्य कथाकार विदुषी संगीता किशोरी ने बताया, ‘‘ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर धार्मिक गतिविधियां होने से लोग नैतिक रूप से ऊपर उठ रहे हैं, नशा छोड़ रहे हैं और अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि लोग ईसाई मिशनरियों के जाल से निकल रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग अपने मूल धर्म की ओर लौट रहे हैं।’’

संगीता खूंटी  जिले के तोरपा की रहने वाली हैं और पिछड़े वर्ग (बड़ाइक समाज) से आती हैं। उन्होंने 2008 में 13 वर्ष की उम्र से ही अयोध्या में प्रशिक्षण लेने के बाद कथा सुनाना शुरू कर दिया था। अब उनकी कथा सुनने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं।
कथा के प्रभाव के बारे में संगीता ने बताया, ‘‘2009 की बात है। मैं कथा सुनाने के लिए नेतरहाट के हुटाप गांव में गई थी। ईसाई बन चुके वहां के कुछ लोगों ने रामकथा का विरोध किया, लेकिन गांव के कुछ लोग कथा सुनना चाहते थे। इसलिए वे मेरे पक्ष में खड़े हो गए। इसके बाद वहां कथा हुई। गांव में समय-समय पर कथा होने से लोगों में अच्छा प्रभाव पड़ा। जो लोग ईसाई बने थे, वे फिर से हिंदू बन गए हैं।’’

जनजाति समाज से आने वालीं मालती कुमारी मुर्मू जमशेदपुर के घाटशिला की रहने वाली हैं। मालती 10 साल से कथा कर रही हैं। वे कहती हैं, ‘‘जनजाति समाज सुदूर गांवों, जंगलों और पहाड़ों में रहता है। उन तक रामकथा कोई नहीं पहुंचा रहा था और इस कारण उन्हें अपने धर्म और संस्कृति से दूर करना आसान है। अब श्री हरि कथा सत्संग समिति ने उन लोगों तक रामकथा पहुंचा दी है। लोग अपने धर्म के प्रति जागरूक हो रहे हैं और जाति के नाम पर जो दूरियां हैं, वे भी कम हो रही हैं।’’

कथाकार मंडली में शामिल मुंडा समाज की अमृता कुमारी पांच साल से रांची जिले के 30 गांवों में क्रम से कथा कर रही हैं। इसका समाज पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ रहा है। अमृता ने अपने एक अनुभव को इन शब्दों में बताया, ‘‘मैं एक बार बुढ़मू थाने के अंतर्गत एक जनजाति गांव में कथा सुनाने गई, तो वहां के कुछ लोगों ने विरोध किया। पता चला कि विरोध करने वाले ईसाई बन गए हैं। उनके विरोध को देखते हुए पहली बार लौटना पड़ा, लेकिन कार्यकर्ताओं के माध्यम से यह प्रयास भी करती रही कि गांव में एक बार रामकथा हो जाए। प्रयास का अच्छा परिणाम निकला और वहां कथा हुई। अब उस गांव के कई लोग मूल धर्म में वापस आ गए हैं।’’

सिंहभूम जिले के जमदा प्रखंड की रहने वाली सिनी मेराल भी जनजातीय समाज की हैं। चार महीने पहले ही अयोध्या से छह महीने का प्रशिक्षण प्राप्त करके अपने गांव पहुंची हैं। अब तक वे अनेक गांवों में कथा कर चुकी हैं। सिनी कहती हैं, ‘‘मुझे घर वालों और गांव वालों से अपार समर्थन मिल रहा है और आसपास के लोग भी अब कथा करने के लिए बुलाते हैं। लोगों में धर्म के प्रति आस्था बढ़ रही है।’’

सच में यह बहुत बड़ी सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक क्रांति है। और सबसे बड़ी बात है कि इस क्रांति की वाहक बनी हैं, वे महिलाएं, जो परम्परागत कथावाचक या पुजारी नहीं हैं।

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