बिहार में महागठबंधन की सरकार बन गई है। सरकार को विधानसभा में 24 अगस्त को विधिवत विश्वास मत भी प्राप्त हो गया। लेकिन अपराध के प्रति ‘जीरो टॉलरेन्स’ की बात करने वाले नीतीश कुमार के नए मंत्रिमंडल में हर तीसरा मंत्री दागी है, जिनका अपने-अपने क्षेत्रों में खौफ रहा है। ए.डी.आर. की रिपार्ट के अनुसार, कैबिनेट में शामिल 33 मंत्रियों में 23 पर मुकदमे चल रहे हैं। इनमें 17 पर तो हत्या की साजिश से लेकर हिंसा भड़काने और धोखाधड़ी जैसे गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
राजद समर्थित सरकार में नवनियुक्त कानून मंत्री कार्तिकेय सिंह उर्फ मास्टर कार्तिक को लेकर राज्य में घमासान मचा हुआ है। कानून मंत्री स्वयं कानून के घेरे में हैं। उनके खिलाफ अपहरण मामले में अदालत ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। वे फरार हैं और इसी फरारी में उन्होंने मंत्रिपद की शपथ ली। जिस दिन उन्होंने शपथ ली, उसी दिन उन्हें अदालत में समर्पण करना था। बिहार के पूर्व- उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने इसे कानून के साथ खिलवाड़ बताया है। उन्होंने कहा कि कानूनन फरार व्यक्ति द्वारा मंत्रिपद की शपथ लेना बिहार में पुन: अराजक स्थिति के आगमन का संकेत देता है। हालांकि सत्तापक्ष ने इस आरोप का खंडन किया है। बता दें कि कार्तिकेय सिंह विधान परिषद के सदस्य हैं और राजद कोटे से मंत्री बने हैं।
अपहरण मामले में कानून मंत्री फरार
मास्टर कार्तिक को मोकामा के पूर्व विधायक बाहुबली अनंत सिंह का दाहिना हाथ माना जाता है। अनंत सिंह अभी जेल में हैं और मास्टर कार्तिक ही उनका कारोबार संभाल रहे हैं। राजनीति में आने से पहले कार्तिकेय सिंह शिक्षक थे। इसलिए क्षेत्र में मास्टर कार्तिक के नाम से जाने जाते हैं। अनंत सिंह की सारी रणनीति वही तय करते रहे हैं। विपक्ष जिस अपहरण कांड की चर्चा कर रहा है, वह वर्ष 2014 का है।
वर्ष 2014 में राजीव रंजन नाम के एक बिल्डर के अपहरण में इनका हाथ बताया जाता है। पटना के बिहटा थाने में इस संबंध में एक मामला भी दर्ज हुआ था। इसमें अनंत सिंह का भी नाम था। इस मामले में जमानत के लिए मास्टर कार्तिक ने पटना उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी, जिसे न्यायालय ने 16 फरवरी, 2017 को खारिज करते हुए उन्हें निचली अदालत में जाने को कहा था। उसी साल 16 अगस्त को उन्हें न्यायालय में पेश होना था, लेकिन वे मंत्रिपद की शपथ ले रहे थे। वे बार-बार अदालत द्वारा ‘नो कोर्सिव’ आदेश का हवाला दे रहे हैं। पटना उच्च न्यायालय के वरीय अधिवक्ता रंजन पांडेय इसे छलावा बताते हैं। उनके अनुसार मास्टर कार्तिक जिस ‘नो कोर्सिव’ आदेश का हवाला दे रहे हैं, वह उन्हें न्यायालय में उपस्थित नहीं होने की छूट नहीं देता।
चरम पर अराजकता, सांसत में ‘सुशासन’
बिहार फिर से अराजक स्थिति में पहुंच गया है। 2005 से 2010 तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘सुशासन’ के नाम पर जो ख्याति अर्जित की थी, वह मिट्टी में मिल चुकी है। अपराधियों का दुस्साहस चरम पर है। शायद ही कोई दिन हो, जब राज्य में अपराध की घटनाएं सुर्खियां न हीं बनती हों।
नई गठबंधन सरकार बनते ही राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं। आलम यह है कि पटना के दुजरा में कुछ युवक नारे लगा रहे थे, ‘‘अब किसी बात का डर नहीं है। अपने लोग शासन में आ गए हैं।’’ राज्य में हत्या के बढ़ते ग्राफ को लेकर लोगों में आक्रोश है। हत्या के ही एक मामले में पुलिस की हीला-हवाली से गुस्साए लोगों ने 21 अगस्त को मुख्यमंत्री के काफिले पर हमला किया था, जिसमें 3-4 वाहनों के शीशे टूट गए थे। हालांकि उस समय मुख्यमंत्री काफिले में नहीं थे।
यह घटना पटना के गौरीचक इलाके की है। गौरीचक के सोहागी गांव का एक युवक 7 अगस्त को लापता हो गया था, जिसका शव 21 अगस्त को बेउर थाना क्षेत्र के एक नाले से बरामद हुआ था। लेकिन पूरे प्रकरण में पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इससे गुस्साए लोग शव को सड़क पर रखकर प्रदर्शन कर रहे थे, उसी रास्ते से मुख्यमंत्री का काफिला गया जा रहा था।
पहले तो कहा गया कि सरकार बनते ही 10 लाख शिक्षकों की बहाली का आदेश जारी किया जाएगा, लेकिन 22 अगस्त को पटना में शिक्षक-अभ्यर्थियों पर लाठियां बरसाई गई। तिरंगा लेकर निकले प्रदर्शनकारी अभ्यर्थियों को पुलिस ने जमकर पीटा। नालंदा में एक दलित के घर पर पुलिस ने फायरिंग की, जबकि हाजीपुर में बार बाला के डांस पर युवकों ने पिस्तौल लहराई। बिहार की घटनाओं पर नजर रखने वाले स्तंभकार कुमार दिनेश इसे स्वाभाविक बताते हैं। उनके अनुसार बिहार में 2010 के बाद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ध्यान कानून व्यवस्था से इतर केवल राजनीतिक जोड़-तोड़ में लगा रहा।
विशेषकर एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को गृह विभाग की कमान देने के बाद से स्थिति बद से बदतर होने लगी। अब प्रशासन धमक से चलता है, जबकि 2005-2010 के बीच लोगों में यह भय था कि अपराध करने पर कड़ी सजा मिलेगी। कोई बचाने वाला नहीं रहेगा। अब लोगों में प्रशासन का भय नहीं रहा।
पटना जिले का बाढ़ क्षेत्र नीतीश कुमार की कर्मस्थली रहा है। बाढ़ संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर ही वे केंद्र में मंत्री बनते थे। उनके प्रयास से ही बाढ़ में एनटीपीसी का कारखाना शुरू हुआ था। अब उनके ड्रीम प्रोजेक्ट में आए दिन आपराधिक घटनाएं घट रही हैं। 20 अगस्त को चोरी की नीयत से घुसे आठ बदमाशों ने एनटीपीसी के सिक्योरिटी गार्ड रमेश कुमार पर जानलेवा हमला किया। 21 अगस्त को रूपसपुर थाना क्षेत्र के दीघा एम्स एलिवेटेड रोड पर बाइक सवार बदमाशों ने पिस्तौल दिखाकर लूट की तीन घटनाओं को अंजाम दिया।
अपराधियों के हौसले बुलंद
8 अगस्त : किशनगंज के कोचाधामन प्रखंड में हमीद ने दोस्तों के साथ एक 45 वर्षीया महिला और उसकी बेटी पर जानलेवा हमला किया। रिपोर्ट लिखाने गए मुखिया को पुलिस ने दुत्कारा। इसी दिन गठबंधन सरकार बनाने की सुगबुगाहट शुरू हुई।
10 अगस्त : पटना के दीदारगंज में बुद्धा मोर्ट्स में रात को दो गार्ड को बंधक बनाकर अपराधी 9 लाख रुपये और 6 लैपटॉप लूट ले गए। एक की चाकू मार कर हत्या कर दी। इसी दिन मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी।
12 अगस्त : रात करीब दो बजे फुलवारी शरीफ के करबला मोड़ के पास स्थित एटीएम काटने की कोशिश कर रहे अपराधियों को पुलिस ने खदेड़ा। इसी दिन, दानापुर के बीवीगंज में घर का ताला तोड़कर चोर करीब 8 लाख रुपये का सामान उड़ा ले गए।
13 अगस्त : अपराधियों ने पटना सिटी में एक 25 वर्षीय मजदूर को खदेड़ कर गोली मार दी।
14 अगस्त : पटना सिटी में मामूली टक्कर पर बदमाशों ने एक व्यक्ति को गोली मारकर घायल किया।
16 अगस्त : पटना के व्यस्ततम फ्रेजर रोड में सुबह दो अपराधियों ने एक निजी कंपनी के अधिकारी के गले से चेन और लॉकेट लूट लिया।
17 अगस्त : पटना के बेऊर थाना क्षेत्र में सुबह कोचिंग से लौट रही 9वीं की छात्रा को अपराधियों ने गोली मारी। इसी दिन गर्दनीबाग में परीक्षा देकर लौट रही कॉलेज की एक छात्रा के साथ अपराधियों ने बदतमीजी की। विरोध करने पर परिजनों का सिर फोड़ा।
18 अगस्त : बाइक सवार हथियारबंद अपराधियों ने दो घंटे के अंदर श्रीकृष्णापुरी और शास्त्रीनगर थाना क्षेत्र में तीन लोगों से चार मोबाइल छीने। पटना सिटी के बहादुरपुर थाना क्षेत्र स्थित बकरी मंडी में देर रात अपराधियों ने अंधाधुंध फायरिंग की, युवक को गोली मारी।
19 अगस्त : मुजफ्फरपुर में जन्माष्टमी की रात मंदिर से लौट रही 10वीं की छात्रा के साथ छेड़खानी और दुष्कर्म का प्रयास किया गया। पुलिस से शिकायत करने गए तो परिजनों को पैसे का लालच देने की कोशिश।
23 अगस्त : दीघा थाना क्षेत्र में बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के सेवानिवृत्त चालक सुखदेव चौधरी की तलवार से हत्या कर दी गई।
24 अगस्त : भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के तकनीशियन राकेश पटेल को हाजीपुर पहुंचाने का झांसा देकर अपराधियों ने एटीएम कार्ड छीनकर 1.52 लाख रुपये निकाल लिए।
24 अगस्त : मोतीहारी के पिपरा थाने में हिरासत में पुलिस की पिटाई से 65 वर्षीय बुजुर्ग की मौत। निजी अस्पताल के गेट पर शव रखकर पुलिसकर्मी फरार।
25 अगस्त : पूर्वी चंपारण में पीएनबी से 14 लाख की लूट, भाग रहे दो बदमाशों को पुलिस ने दबोचा, चार भागने में सफल।
33 में से 23 मंत्री दागी
राजद कोटे से ही सहकारिता मंत्री सुरेंद्र यादव पर 9 मुकदमे दर्ज हैं। इनमें बाल यौन शोषण, मारपीट और आचार संहिता के उल्लंघन जैसे मामले शामिल हैं। सुरेंद्र यादव भी छवि भी बाहुबली की है। उन पर 2005 में बूथ लूटने के आरोप भी लगे हैं। इसी तरह, पी.एच.ई.डी. मंत्री ललित यादव पर भी कई मुकदमे हैं। ललित यादव ने एक ट्रक ड्राइवर दीनानाथ बैठा के पैर के नाखून उखाड़ दिए थे। उन्हें इसी आरोप में राजद सरकार में मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया था। वहीं, कृषि मंत्री सुधाकर सिंह पर चावल घोटाले का आरोप है।
लालू परिवार के बेटों, तेजस्वी और तेज प्रताप पर तो कई मुकदमे हैं। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर 11 मुकदमे दर्ज हैं। इनमें धनशोधन, आपराधिक षड्यंत्र रचने और धोखाधड़ी जैसे 7 आपराधिक मामले शामिल हैं। वहीं, उनके अग्रज तेज प्रताप पर 5 मुकदमे दर्ज हैं। इनके मामा साधु यादव कहते हैं कि यह बिहार का दुर्भाग्य है कि तेजप्रताप यादव जैसा व्यक्ति बिहार का मंत्री बना। जिस दिन मंत्रिमंडल का विस्तार हो रहा था, उस दिन पटना की सड़कों पर तेजप्रताप के खिलाफ पोस्टर लगे हुए थे। नवनियुक्त खनन और भूतत्व मंत्री डॉ. सुरेंद्र यादव की छवि भी बाहुबली की रही है। वे पहली बार 1985 में पटना पश्चिम से निर्दलीय विधायक चुन गए थे।
सरकारी बैठकों में जीजा
नीतीश सरकार में लालू परिवार की मनमानी सामने आने लगी है। राज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री तेज प्रताप यादव की आधिकारिक बैठक में उनके जीजा शैलेश कुमार और उनके राजनीतिक सलाहकार संजय यादव मौजूद रहते हैं। इसे लेकर भी बवाल मचा हुआ है। संजय यादव हरियाणा के रहने वाले हैं। भाजपा ने तेजस्वी और तेज प्रताप पर निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछा है कि क्या उनकी सरकार ने ‘राजनीतिक सहयोगियों’ और ‘दामादों’ को आधिकारिक बैठकों में शामिल होने की अनुमति दी है?
शैलेश अपनी सांसद पत्नी मीसा भारती के साथ धनशोधन मामले में अभियुक्त हैं। जुलाई 2017 में सीबीआई द्वारा आईआरसीटीसी घोटाले की जांच के सिलसिले में छापामारी के तुरंत बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मीसा और शैलेश के परिसरों की तलाशी ली और उनकी कंपनी, मिशैल पैकर्स एंड प्रिंटर्स के विरुद्ध धनशोधन का मामला दर्ज किया था। ईडी ने दिल्ली में मीसा के एक फार्महाउस को कुर्क करने के साथ दंपती के विरुद्ध आरोपपत्र दाखिल किया है।
नीतीश ने दूसरी बार बदला पाला
जदयू ने 9 अगस्त को पाला बदल कर महागठबंधन के साथ सरकार बना ली। जदयू ने इसका कारण भाजपा का विश्वासघात बताया है। जदयू का आरोप है कि भाजपा उसके विधायकों को तोड़कर अपनी सरकार बनाना चाहती थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद आरसीपी सिंह को इस ‘षड्यंत्र’ का सूत्रधार बताया जा रहा है। लेकिन सच्चाई इससे अलग है। राज्यसभा सांसद शंभू शरण पटेल के मुताबिक, नीतीश के पाला बदलने के पीछे कारण जदयू की अंदरूनी कलह है।
नीतीश कुमार ने पहली बार 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। लेकिन उस समय परोक्ष रूप से सत्ता की कमान तत्कालीन सांसद ललन सिंह के हाथों में थी। बाद में ललन सिंह का कद इतना बढ़ गया कि नीतीश कुमार खुद को असहज महसूस करने लगे थे। नीतीश ऐसे व्यक्ति हैं, जो अपने सामने किसी और की प्रशंसा बर्दाश्त नहीं कर सकता। एक विवाद के बाद आरसीपी सिंह का दखल सररकार और पार्टी में बढ़ने लगा, तब नीतीश ने ललन सिंह के पर कतरने शुरू किए।
धीरे-धीरे आरसीपी सिंह ने ललन सिंह की जगह ले ली। ललन सिंह को पार्टी छोड़नी पड़ी। बाद में उन्होंने मुंगेर संसदीय क्षेत्र से किस्मत आजमायी, लेकिन बुरी तरह हार गए। फिर जदयू में जब ललन सिंह का दोबारा आगमन हुआ, तो नीतीश के लिए यह अच्छा अवसर था, क्योंकि ललन सिंह और आरसीपी सिंह के बीच आपसी खींचतान में उनकी बादशाहत बनी रहती। आरसीपी सिंह के केंद्र में मंत्री बनने के बाद जदयू की अंदरूनी कलह सतह पर आ गई। 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू की सीटें घटने पर ठीकरा आरसीपी सिंह के सिर फोड़ा गया, जबकि उस समय जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार थे। आरसीपी सिंह शालीनता से अपना काम करते रहे, लेकिन ‘राज दरबार’ में उनके विरुद्ध षड्यंत्र होता रहा। अंतत: आरसीपी के बहाने जदयू ने भाजपा से किनारा कर दूसरी बार राजद का दामन थाम लिया। इससे आरसीपी दरकिनार हो गए और ललन सिंह के केंद्रीय मंत्री बनने की संभावना भी खत्म हो गई।
टिप्पणियाँ