सूरजप्रकाश गुलाटी
बन्नू, पाकिस्तान
उन दिनों बंटवारे का खौफ था, लूटमार, आगजनी के रोजाना के किस्से हमारे घर के बुजुर्गों को डरा देते थे। ऐसे माहौल में घर के बुजुर्गों ने जान बचाने के लिए धीरे-धीरे परिवार के सदस्यों को भारत भेजना शुरू कर दिया।
हमारे पिताजी भी परिवार के साथ भारत आने को मजबूर हो गए। हम ही नहीं, हमारे बाकी सब नाते-रिश्तेदार अपनी जान बचाकर भारत में अंबाला होते हुए कुरुक्षेत्र कैंप तक आए। वहां से हम सब बरेली गए और बाद में रुद्रपुर आकर बस गए।
मुझे आज भी याद है हमारे इलाके को कट्टर मुसलमानों ने ऐसा खौफनाक बना दिया था कि हम जैसा कोई वहां कितने दिन जिंदा रह पाता! जो हुआ, बहुत गलत हुआ।
कई बार तो स्थानीय मुस्लिम ऐसे जल्लाद हो जाते थे कि मौका मिलते ही गला काट दें। हमारे परिवारों की बहू-बेटियों का तो राह में निकलना तक मुश्किल हो चुका था।
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