शूकरक्षेत्र सोरों एक सनातन तीर्थ है। यह पुण्य-तीर्थ भारत के उत्तर प्रदेश के कासगंज जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर मथुरा-बरेली राजमार्ग पर, सातवें- वैवस्वत-मन्वन्तर में अवतरित भागीरथी गंगा के तट पर अवस्थित है।
यह पावन तीर्थ पृथ्वी उत्पत्ति स्थल, वैश्विक संकल्प- ‘श्रीश्वेत वराहकल्पेआदिवराहश्री शूकरक्षेत्रे’ की उद्घाटनभूमि, श्रीवेदव्यास प्रणीत विविध पुराणों में अनेक विधि रूपेण वर्णित, ब्रह्मांड में 5 मंडलों के निर्माता भगवान वराह ही हैं। आदिवराह, महावराह, यज्ञवराह, श्वेतवराह, ब्रह्मवराह, एमूषवराह, नरवराह, लिंगवराह आदि अवतारों की प्रादुर्भाव एवं तिरोभाव भूमि, छठवें चाक्षुष मन्वन्तर में आदिगंगा की प्राकट्य भूमि, मासानाम मार्गशीर्षोSहम्’ (गीता-१०.३५) ‘एकाहम मार्गशीर्ष्याम च द्वाद्श्याम सितवैष्णवम् (व0 पु 0 १७९)’ से एकादशी उत्पत्ति भूमि। इसी दिन उपोसित भगवानवराह का द्वादशी के दिन लीलाधाम गमनभूमि, सांख्यशास्त्र प्रणेता महर्षि कपिलमुनि तथा सहस्रों देव -ऋषिगणों की तपोभूमि, भगवान श्रीकृष्ण, बुद्ध, पांडवों, सिखों के छठवें गुरु हिन्दूपदसच्चापातशाह हरगोविंद साहब, पुष्टिमार्ग प्रवर्तक विष्णुस्वामीप्रज्ञाचक्षु स्वामी बिरजानन्द, महाकवि पद्माकर, चैतन्य महाप्रभु की यात्रा एवं विहारभूमि, आचार्यवल्लभकी 23वीं भागवतभूमि, श्रीरामचरितमानस के कालजयी कवि, सनातनधर्म के चल विश्वविद्यालय गोस्वामी श्रीतुलसीदास जी, उनकी पत्नी रत्नावली, उनके चचेरे भाई अष्टछाप महाकवि नन्ददास की जन्म-क्रीडा एवं विद्याभूमि, आर्यसमाज प्रवर्तक स्वामी दयानन्द व बदरिया निवासी पंडित अंगदराम शास्त्रीकी शास्त्रार्थभूमि।
राजा जनमेजय से भी जुड़ा है क्षेत्र
पांडवपौत्र राजा जनमेजय की साधनाभूमि, भारत के साढ़े तीन वटों में से एक ‘गृद्धवट, ‘भारत के साढ़े तीन श्मशानों में से एक महाश्मशान {जहाँ नित्य लगभग 1000 श्मशानों से अस्थियाँ विसर्जन हेतु आती हैं}, भारत के सप्तक्षेत्रों में से एक परमपावन शूकरक्षेत्र। मुगलसम्राट अकबर को पीने हेतु गंगाजल की निर्यात भूमि, थानेश्वराधिपति राज्यवर्धन का शशांक के साथ शरीरांत भूमि, कन्नोजाधिपति जयचंद व दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की स्वयम्वर भूमि। नाथसम्प्रदाय से अनुस्यूत तथा सनातन काल से अनेकानेक ऐतिहासिक, पौराणिक, पुरातात्विक, साहित्यिक, सांस्कृतिक- महानताओं से ओतप्रोत गंगातटवर्ती शूकरक्षेत्र सोरों सनातन तीर्थ ललाट धरती पर एकमेव है, जहाँ आज भी घोर कलिकाल में विसर्जित अस्थियाँ 72 घंटों में रेणुरूप होती हैं, ऐसा विज्ञान सम्मत प्रयुक्त है। किसी भी देवनदी में अस्थि नहीं गलती। शंकराचार्य परम्परा में सेवित अलौकिक ”श्रीयंत्र” की उपासनाभूमि, {निकटभविष्य में आद्य शंकराचार्य के श्रीविग्रहका अनावरण होगा}। शैव.शाक्त.वैष्णवों की त्रिवेणी के साथ समन्वय की भूमि है। रामानंदियों की तो गुरु गादी है। ”पंचयोजनविस्तीर्णेशूकरेहरिमन्दिरे” सोरों की 25 कोस चतुर्दिक सीमा से तथा विदेशों से भी अग्नि संस्कार हेतु मिट्टी आती है।
ऐसे दिव्य मुक्तितीर्थ ‘परमसौकरवमस्थानम् सर्वसंसारम मोक्षणम्’,(व.पु.१३७) में लगभग एक हजार तीर्थयात्रियों द्वारा पिंडदान-श्राद्ध-तर्पण कर्म आदि नित्य होते हैं। जहां नेपाल नरेश द्वारा जीर्णोंद्धारित श्रीवराहमंदिर शोभित है, तथा वराहपुराणोक्त चौंसठ मोहल्ले आज भी हैं, जो अनुसन्धानाभाव में लुप्त हो रहे हैं।
‘ यत्र भागीरथी गंगा मम सौकरवेस्थिता ’
लगभग एक अरब पिचानबे करोड़ अठ्ठावन लाख पचीस हजार एक सौ बीस वर्ष पूर्व वर्तमान सृष्टि का उद्भव हुआ था। उस समय से अब तक वराह वैदिक देव के द्वारा उसके पश्चात् चाक्षुषमन्वंतरमें भगवान शूकरवराह के द्वारा हिरण्याक्ष वध के पश्चात यह पवित्र भूमि सिद्ध क्षेत्र के रूप में मानी जाती रही है।
भगवान बुद्ध का भी ज्ञानक्षेत्र
आज भी विक्रमी ११वीं तथा १२वीं से भी प्राचीन शिलालेख शूकरक्षेत्र सोरों में विद्यमान हैं और अनेक इसके भूगर्भ में सन्निहित हैं। लगभग 2000 वर्ष पूर्व यह तीर्थ स्थल भगवान बुद्ध का और अनेक उनके अनुयायियों का भी ज्ञानक्षेत्र रहा है। इस तीर्थ से तक्षशिला तक सीधा तथा गंगा में नावों द्वारा वर्तमान कोलकाता तक व्यापार होता था। यह तीर्थ बड़ा समृद्ध था। विद्या का केंद्र था, बौद्ध साहित्य में इसके ज्ञान के उत्कर्ष का वर्णन है।
चालुक्य कहलाए राजवंश
चालुक्य क्षत्रिय इसी सिद्धक्षेत्र में चुलुक जलपान कर राजवंश कहलाये। उन्हीं की शाखा सोलंकी और वघेलाओं ने उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक विजय वैजयंती फहराई। अयोध्या में भी इस तीर्थ के चालुक्यों द्वारा लगभग 85 राजाओं ने राज्य किया था, ऐसा भारतीय पुरातत्ववेत्ता स्मरण करते हैं। अयोध्याके शिला लेख में वराहकी मूर्ति अंकित है। चालुक्योंकी राजपताका में गंगा-वराह की मूर्ति, उनके सिक्कों में भी अंकित थी। ये सिक्के ब्रिटिश म्यूजियम में हैं। दक्षिण भारत के उटकमंड में ‘हर्षवर्धन-शशांक युद्ध का अभिलेख’ इसी तीर्थ में हुआ, ऐसा सुरक्षित है।
महाराणा प्रताप ने किया था तुलादान
मेवाड़ नरेश महाराणा प्रताप ने सोरों में तुलादान किया था। जयपुर नरेश ने पितृदोष तथा कुष्ठ रोग की निवृति हेतु हरिपदी गंगा के घाटों का जीर्णोद्धार कराया था, ऐसे ‘युगयुगीन शूकर क्षेत्र सोरों’ में भारतीय सांस्कृतिक-रिक्थ का अपरिमेय-भंडार है। सामाजिक इतिहास की सुदीर्घ थाती है, जिसका संरक्षण अत्यावश्यक है। पौरोहित्य कर्म का प्रधान केंद्र है, आगम-निगम, हिंदी संस्कृत वांग्मय के शताधिक-ग्रन्थों में सोरों तीर्थ का सविस्तार उल्लेख है।
अटल जी का आत्मीय लगाव
श्री अटल बिहारी वाजपेयी का सोरों से आत्मीय लगाव था। उनके हाथों पश्चिमी तटों के घाटों का 26 जनवरी 1971 को शिलान्यास हुआ था। राजमाता सिंधिया ने जनसंघ संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा का 24 मार्च 1973 को अनावरण किया था। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का भी सोरों से नैकट्य रहा। संघके चतुर्थ व पंचम सरसंघचालक का इस तीर्थ से आन्तरिक नेह रहा। रज्जूभैया व अटलजी की तो अस्थियाँ भी सोरों में श्रीकलराज मिश्र, राज्यपाल-राजस्थान द्वारा विसर्जित हुईं। प्रधानमन्त्री निवास में अटलजी ने लेखक की पुस्तक ‘कथासु सूकरखेत’ का दिसंबर 2001 में विमोचन किया था। भारतीय इतिहास संकलन समिति के संस्थापक श्री मोरोपंत पिंगलेजी ने इस तीर्थ के एतिहासिक स्वरूप को ग्रन्थाकार की योजना बनवाई थी।
मारीशस में सुषमा स्वराज की अध्यक्षता में ’सोरोंतीर्थ’ पर शोध प्रपत्र का वाचन
संजय खान द्वारा निर्देशित धारावाहिक ‘जय हनुमान’ में गलत प्रसारण पर दूरदर्शन पर क्षमा मांगी। तत्कालीन सूचनामंत्री अरुण जेटली ने लेखक को सलाहकार बनाया। मलाया विश्वविद्यालय, मलेशिया तथा भारत सरकार के प्रतिनिधि रूप में 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन, मारीशस में सुषमा स्वराज की अध्यक्षता में ’सोरोंतीर्थ’ पर शोध प्रपत्र का वाचन किया। 22 जुलाई 2018 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथजी ने शूकर क्षेत्र सोरों को पर्यटन/तीर्थ रूपमें विकसित करने की घोषणा भी की थी। उ०प्र० सरकार द्वारा प्रायोजित संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में 22-23 फरवरी 2020 को “पुराणवर्णित उत्तर प्रदेश के प्रमुखतीर्थ” पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में तुलसी/तीर्थ अध्येता के रूपमें ‘सनातनतीर्थ ;शूकरक्षेत्रसोरों’ पर लेखक ने विशेष व्याख्यान दिया। 1985 में तत्कालीन सरकार ने अपने गजट में इस तीर्थ की महत्ता को विवेचित किया है। आजादी के तीसरे दशक में राष्ट्रपति द्वारा पूर्वोत्तर रेलवे तथा डाकघर के नाम को “शूकरक्षेत्र सोरों” गजट किया गया। तीर्थ की गरिमा के कारण, ”तुलसीदास” फिल्म की शूटिंग प्रस्तावित है।
पर्यटन तीर्थ सूची में हो समायोजन
मीडिया के माध्यम से इस तीर्थ की महिमा से भारतीय जनमन सुपरिचित होंगे। ऐसे सनातन तीर्थ को सरकार यथाशीघ्र पर्यटन /तीर्थ सूची में समायोजित करने का शासनादेश की अधिसूचना जारी करे। साथ ही कासगंज जिला का नामकरण ‘तुलसीदासनगर’/शूकरक्षेत्र सोरों शोध-संस्थान/गोस्वामीतुलसीदास अकादमी/महिलासाक्षरता०९%कारण रत्नावली राजकीय कन्या महाविद्यालय/ शूकरक्षेत्र सोरों तीर्थ विकास प्राधिकरण का गठन/पंचकोशी परिक्रमा मार्ग का गिरिराज परिक्रमा की तर्ज पर समग्र विकास/पुरोहित प्रशिक्षण केंद्र/गोस्वामी श्रीतुलसीदास वेद वेदांग पाठशाला/रामायण सर्किट के अधीन समायोजन/ इंडोनेशिया की तरह रामकथा केंद्र/ रूस की तरह दैनिक रामलीलाकेंद्र/ मारीशस की तरह रामायण सेंटर की स्थापना/ राजा सोमदत्त सोलंकी के किले का जीर्णोद्धार, गुरु नरहरिदास सार्वजनिक पुस्तकालय, “वार्षिक कुम्भ: शूकर क्षेत्र महोत्सव ‘मेला मार्गशीर्ष” का संस्कृति/ पर्यटन विभाग, द्वारा संयोजन-संचालित हो/ जिले का “केन्द्रीय विद्यालय” स्थापित हो। गोस्वामी तुलसीदास एयरपोर्ट बने, रेलवे स्टेशन के निकट पालिका संचालित प्रसूति गृह को अत्याधुनिक सुविधायुक्त” रत्नावली महिला प्रसूति गृह”नामकरण व नर्सेस कोर्सेस के साथ प्रारम्भ, गोस्वामी तुलसीदास मेडिकल कालेज की स्थापना, वन विभाग द्वारा “पितरों की स्मृति में “पितर स्मृति उद्यान” लगभग 20 लाख तीर्थयात्री वर्षभर धर्मयात्रा करते हैं। पर्यटन विभाग पीसीएल की पत्रावली शीघ्र कार्यान्वित हो।
उत्तर भारत में मालवा, शेखावाटी, ढुढार, मेवाड़, निमाड़, तोमरघार, हाडोती, डांग, सिकरवारी, गोंडे, मेवात, दिल्ली के तमरवाडी, पार, गुजराती, बंगाली, पंजाबी के अलावा नेपाल ,लन्दन आदि स्थानों/ देशों में यहतीर्थ “सोरमजी गंगाजी घाट” के नामसे सुविख्यात है। गंगा- यमुना के गर्भ का यह परम पावन तीर्थ ’व्रजतीर्थ विकास परिषद’ के साथ सन्नद्धहो। इसी तीर्थ में आदि गंगा के अतिरिक्त उत्तर वाहिनी भागीरथी गंगाजी तीर्थ की नगरपालिका के बार्ड क्रमांक८ तथा १४{लहरा} मेंप्रवाहित हैं। शूकर क्षेत्र सोरों को ज्ञान, तप, साधना, मोक्ष की वसुंधरा होने के कारण छोटीकाशी भी कहा जाता है। गर्ग-सहिंता में यह तीर्थ मथुरा व्रज प्रदेशान्तर्गत उपव्रज में ही है, ऐसी उद्भावना है।
गोस्वामी तुलसी दास जी के शब्दों में ,
”मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा सु सूकरखेत” {बाल कांड३०क}
भारत सरकार के ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ को चाहिए कि आज़ादी के अमृतमहोत्सव में स्वर्णिम भारत को वैज्ञानिक चर्मोत्कर्ष की ओर ले जाने वाले कार्य मूर्त रूप लें,
• “मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को “पृथ्वी उत्पत्ति दिवस” मनाए।
• तिरुवनंतपुरम की तरह शूकरक्षेत्र सोरों में ”राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र” की स्थापना।
• सोरों में पृथ्वी के ठोस बिंब आकृति स्थापित हो, जो एशिया में सबसे बड़ा स्तूप हो।
सन 1998 में ‘तीर्थ विकास समिति’के आयोजन में प्रथम बार श्री वराह जयंती बड़े स्तर पर मनाई गई। 40 हजार के बजट में एक कुंतल पंचगव्य से श्री वराह का अभिषेक तथा नगर में वितरण, पृथ्वी सूक्त से यज्ञ,’पृथ्वी उत्पत्ति स्थल: विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी, भव्य बैंड बाजा के साथशोभायात्रा, दीपदान आदि कार्यक्रम हुए। पहली जयंती में विश्व हिंदू परिषद के श्री अशोक सिंघल, ओंकारभावे, सुनील शर्मा, स्वामी रामचन्द्र गिरि, आचार्य वेदव्रत शास्त्री, उमाशंकर शर्मा, डॉ योगेन्द्र पचौरी, भगवान सहाय बरबारिया, शिवशंकर स्थापक, रामकिशोर दुबे सलौने आदि के सहयोग से जयंती की नींव डाली गई। आज भव्य वटवृक्ष रूप में आयोजन होता है।
“कासगंज जनपदपुरी पटियारी- न्यारी इक
“खुसरो अमीर” जहाँ- जनम- धरायो है,
भागीरथी- नीर –तीर- तीरथ बसत “सोरों”
जहाँ “मातु हुलसी”ने “तुलसी” जनायो है |
हरिपदी गंग- तीरे मन्दिर वराह सोहे ,
जाको जस वेद ओ पुरानन हू गायो है,
याही ठौर आई “हरि शूकर” को धारयो वेष ,
जाहि सो जि धाम क्षेत्र “शूकर कहायो” है | |
(लेखक परिचय- सदस्य, हिंदी सलाहकार समिति {राजभाषा }
नागर विमानन मंत्रालय ,भारत सरकार )
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