जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने एक दशक पहले बंद हो चुकी ”नाड़ीमर्ग नरसंहार केस” की फाइल को फिर से खोलने का आदेश दिया है। मार्च 2003 में लश्कर-ए -तैयबा के आतंकियों ने पुलवामा में 24 कश्मीरी हिन्दुओं की बेरहमी से हत्या कर दी थी।
उच्च न्यायालय के निर्णय के पश्चात हिंदुओं के नरसंहार में संलिप्त जीवित अपराधियों को न्याय के कठघरे में खड़ा किया जाएगा। उन्हें उनके द्वारा किए गए गुनाहों की सजा दी जाएगी। नरसंहार मामले में कश्मीरी हिन्दुओं को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को बड़ी राहत मिली है।
कश्मीरी हिंदू और सरपंच विजय रैना ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले से नरसंहार के पीड़ितों को राहत मिली है। जितने भी कश्मीरी हिंदुओं की हत्या की गई थी, उनके हत्यारों को सजा नहीं मिली थी। और भी हत्याकांड हुए हैं उनको भी खोला जाए। कोर्ट इन मामलों का संज्ञान ले। बिट्टा कराटे जैसे लोगों ने कश्मीरी पंडितों की हत्या की थी। उनकी वजह से ही नरसंहार हुए। उस समय की सरकार दोषियों को जेलों में डालती तो इस तरह का नरसंहार रुक जाता।
जम्मू कश्मीर – उच्च न्यायालय ने नाड़ीमर्ग नरसंहार केस की फाइल पुनः खोली
उच्च न्यायालय ने एक दशक पहले बंद हो चुके ''नाड़ीमर्ग नरसंहार केस'' को पुनः खोलने का आदेश दिया है. मार्च 2003 में लश्कर-ए -तैयबा के आतंकवादियों ने पुलवामा में 24 कश्मीरी हिन्दुओं की बेरहमी से हत्या कर दी थी. pic.twitter.com/IyFqmdeWzX
— VSK BHARAT (@editorvskbharat) August 26, 2022
ये है नाड़ीमर्ग नरसंहार
घाटी में कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार नब्बे के दशक में हुआ था। उन्हें घाटी से पलायन करने के लिए मजबूर किया गया। जो कश्मीरी हिंदू बचे रह गए उन पर लगातार जुल्म होते रहे।
घाटी में एक बार फिर वर्ष 2003 में नरसंहार हुआ। जिहादियों ने नाड़ीमर्ग में 24 कश्मीरी हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी। इनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं। एक बच्चे की उम्र तो महज दो साल की थी। हत्या के बाद आतंकी महिलाओं के शव से जेवर उतारकर ले गए। 23 मार्च 2003 की रात लश्कर-ए-तैयबा के सात आतंकियों ने इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया था। आतंकी पुलवामा जिले के नाड़ीमर्ग में सेना की वर्दी में आए और कश्मीरी हिंदुओं का नाम पुकारकर उन्हें घर से बाहर बुलाया। बच्चे और महिलाएं भी बाहर आईं। इसके बाद आतंकियों ने अपना असली चेहरा दिखाया। जिहादियों ने महिलाओं के कपड़े फाड़े। इसके बाद 24 कश्मीरी हिंदुओं को चिनार के पेड़ की नीचे इकट्ठा कर गोलियों से भून दिया। इन नरसंहार में 11 पुरुष, 11 महिलाएं और दो बच्चों की मौत हुई। उनके घरों में भी लूटपाट की थी।
इस तरह खुली फाइल
नरसंहार के बाद जैनापुर में मुकदमा दर्ज किया गया था। पुलवामा के सत्र न्यायालय में सात लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था। इसके बाद मामले को शोपियां की अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया। ट्रायल में देरी पर पीड़ित पक्ष के वकील ने दलील दी कि कई गवाह कश्मीर से बाहर चले गए हैं। उन्हें जान का खतरा है, इसलिए वे बयान देने के लिए अदालत में नहीं आना चाहते हैं। कोर्ट ने वर्ष 2011 में गवाहों के बयान आयोग के जरिए लेने की मांग को खारिज कर दिया। इसके बाद उन्होंने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में याचिका दायर की। यह याचिका भी खारिज कर दी गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले को दोबारा खोलने के लिए जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के लिए कहा। हाई कोर्ट ने केस को फिर से खोलने की याचिका मंजूर कर ली। न्यायालय में 15 सितंबर को इस मामले की सुनवाई होगी।
टिप्पणियाँ