तिलकराज रावल
गुजरांवाला, पाकिस्तान
उस समय मेरी उम्र लगभग 17 साल थी। हालात खराब होते देख मेरे पिताजी ने परिवार की जितनी भी महिलाएं थीं, उन्हें घर से निकालना शुरू किया। क्योंकि महिलाएं ही मुसलमानों का सबसे आसान शिकार होती थीं।
झांगवाला से मेरा परिवार मौसी के घर जम्मू आ गया। जब सारा परिवार और कुछ नाते-रिश्तेदार सकुशल जम्मू आ गए तब पिता मुझे लेकर 12 अगस्त, 1947 को जम्मू पहुंचे।
मुझे याद है कि अगले दिन खबर आई कि 13 अगस्त को पाकिस्तान से जो ट्रेन चली थी, उसे मुसलमानों ने पूरी तरह से काटकर भारत भेजा है। लेकिन हम पर भगवान का आशीर्वाद था, इसलिए हम सकुशल बचकर आ गए। निश्चित ही इस तरह के हालात के बारे में कभी किसी ने नहीं सोचा था।
रास्ते में हमने अपनी आंखों से देखा कि पटरी की दोनों तरफ लाशें बिखरी पड़ी थीं। खून-खराबा हुआ था। पटरी से बदबू आ रही थी।
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