वेद प्रकाश तुली
रावलपिंडी, पाकिस्तान
बंटवारे के समय रावलपिंडी में मैं नौवीं कक्षा में पढ़ता था। उस समय स्कूल से लेकर घर तक एक ही माहौल था कि हिन्दुओं को पाकिस्तान छोड़ना ही पड़ेगा। मेरे पिताजी नॉर्दन रेलवे में कर्मचारी थे। पिताजी का आए दिन स्थानांतरण होते रहने के कारण हम लोगों के रहने का ठिकाना भी बदलता रहता था। लेकिन दूसरी ओर पाकिस्तान के हालात भी दिन-प्रतिदिन खराब होते जा रहे थे। हिन्दुओं के घरों, दुकानों को निशाना बनाया जाने लगा। कुछ ही दिन में सैकड़ों लोगों का कत्लेआम कर दिया गया।
उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक पूज्य गुरुजी ने पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं से आह्वान किया कि उन्हें किसी भी परिस्थिति को सहते हुए डटे रहना है लेकिन जब हालात ज्यादा खराब हो गए और ऐसा लगा कि सभी हिन्दुओं को मार दिया जाएगा तो गुरुजी के आदेशानुसार स्वयंसेवकों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर पाकिस्तान से विभिन्न रास्तों से आने वाले हिन्दुओं की हरसंभव मदद की और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। इसी बीच मैं भी परिवार के साथ अमृतसर आ गया, जहां मेरी बुआ जी रहती थीं। लेकिन मेरे पिता जी नौकरी के कारण पाकिस्तान में ही थे। कुछ दिन अमृतसर के पास रहना हुआ।
इसी बीच मेरे चाचा जी भी अमृतसर आ गए। कुछ दिन बाद वे दिल्ली आ गए और एक बिस्कुट फैक्ट्री की शुरुआत की। मैं भी पढ़ाई के साथ बिस्कुट फैक्ट्री का काम देखने लगा। कुछ समय के बाद पिताजी का स्थानांतरण आगरा हुआ तो मैं आगरा चला गया। मेरी पढ़ाई-लिखाई वहीं हुई।
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