संघ का उद्देश्य समाज को एकजुट कर दुनिया को जीवन जीने की कला सिखाना– सरसंघचालक

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WEB DESK

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन राव भागवत जी ने रविवार को कहा कि संघ का उद्देश्य समाज को एकजुट और संगठित करना है ताकि सारी दुनिया भारत से जीवन जीने की शिक्षा प्राप्त कर सके। उन्होंने कहा कि इसके लिए जरूरी है कि समाज में अपनेपन का भाव हो और इसी भाव के साथ सेवा कार्य करते हुए सभी को आगे ले जाने का प्रयास हो।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली प्रांत की ओर से आज यहां ‘समाज उपयोगी युवा शक्ति’ (सुयश) का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें विभिन्न क्षेत्रों में सेवा कार्य कर रहे युवा लोगों को आमंत्रित किया गया था और उनमें से कुछ ने अपने अनुभव भी इस दौरान साझा किए। सरसंघचालक जी ने बताया कि सुयश का उद्देश्य संख्या या लोकप्रियता हासिल करना नहीं और किसी को मंच प्रदान करना नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए युवा शक्ति को आगे लाना है।

अपने वक्तव्य में सकारात्मक नजरिए पर जोर देते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि देश में बहुत कुछ नकारात्मक घटित हो रहा है लेकिन उस पर ध्यान ना देते हुए बहुत कुछ अच्छा हो रहा है हमें उस पर ध्यान देना चाहिए। देश में सेवा और उपकार के बहुत से कार्य हो रहे हैं।

डॉ. श्री मोहन राव भागवत जी ने भारत के मानस में बसे सेवा भाव के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि हम दूसरों की सेवा में सुख पाते हैं और सेवा का अवसर देने के लिए कृतज्ञ मानते हैं। यही मानस हमारा दुनियाभर के लिए भी है। उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जिससे दुनिया जीवन जीने की शिक्षा प्राप्त करे। हम लोग इसी के चलते विश्व शांति, एकता और भाईचारे की बात करते हैं।

सरसंघचालक जी ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों की विभिन्न हस्तियों ने देश की आजादी में बलिदान दिया और योगदान दिया, लेकिन हमें एक समाज के रूप में हमें फलने-फूलने में समय लगा। कल्याणकारी कार्य करते समय हमें “मैं” और “मेरे” से ऊपर उठने की आवश्यकता है और इससे हमें एक समाज के रूप में विकसित होने में मदद मिलेगी।

इस अवसर पर संघ के दिल्ली प्रांत के संघचालक कुलभूषण आहूजा दिल्ली प्रांत कार्यवाह भारत भूषण सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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