चंद्रकांता गुप्ता
मीरपुर, पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर
उस वक्त मीरपुर (पाक अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर) में करीब 3,000 हिंदू रहते थे। अगस्त 1947 के शुरुआती दिन थे। एक दिन पता चला कि मीरपुर को मुसलमानों ने चारों ओर से घेर लिया है। मैं 17 साल की थी और मेरी गोद में छह महीने का एक बच्चा था।मुसलमान पहाड़ी से हिंदुओं को गोली मार देते। बहुत हिंदू मारे गए। इस तरह की घटनाओं को देखते हुए बाद में दिन-रात कई बार मीरपुर के ऊपर हवाई जहाज चक्कर काटने लगे।
जब हवाई जहाज मीरपुर के ऊपर मंडराता, तभी हिंदू अपने घर से निकलते और जरूरी सामान लेकर घर में बंद हो जाते। बाद में मुसलमानों ने पानी की पाइपलाइन काट दी। इस कारण किलोमीटर दूर झेलम नदी से पानी लाना पड़ता, वह भी रात में। उस समय भी मुसलमान हमले करते। इसके बाद झेलम और मीरपुर के रास्ते की निगरानी हवाई जहाज से की जाने लगी। किसी तरह वहां तीन महीने बीते।
एक सुबह फौजी आए और सभी हिंदुओं से कहा, जल्दी-जल्दी यहां से निकलो, जम्मू चलना है। उन्होंने बच्चों और बुजुर्गों को गाड़ी में बैठाया और हम जैसों को पैदल चलने को कहा। मीरपुर से कोटली 120 मील की दूरी तय करने में हमें आठ दिन लगे। जम्मू में रहने की जगह नहीं थी। एक सिनेमा हॉल में रहने की व्यवस्था की गई।
हमारे पास तन के कपड़ों के अलावा और कुछ नहीं था। मीरपुर में हमारे पिताजी कपड़े की दुकान चलाते थे। ससुराल वालों का भी अच्छा कारोबार था। अब हम लोग बिल्कुल कंगाल हो गए थे। जम्मू से पठानकोट, अमृतसर, अलीगढ़ होते हुए पुराना किला, दिल्ली पहुंचे। फिर लाजपत नगर में घर मिला।
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