बिहारीलाल सेठी
लालामूसा, पाकिस्तान
उम्र के इस पड़ाव पर थोड़ा ऊंचा भले सुनता हूं, लेकिन मेरे दिमाग में बंटवारे के दिनों की यादें शीशे सी साफ हैं। वे हादसे भुलाए भी नहीं जा सकते। हम लोगों ने जो पीड़ा झेली, उसे शब्दों में बयां करना बहुत मुश्किल है।
अचानक बंटवारे का ऐसा शोर मचा कि एक भय का माहौल बनता चला गया। उस समय कत्लेआम, लूटपाट और महिलाओं के साथ बदसुलूकी की घटनाएं सुनकर रूह कांप उठती थी।
पता चलता कि फलां गांव में कट्टर मजहबियों के झुंड थे जो हिंदुओं को लूटकर, काटकर चले जाते थे। जब डर का माहौल ज्यादा बढ़ने लगा तो हमारे परिवार के बुजुर्गों ने जान बचाने के लिए हिंदुस्थान की ओर बढ़ना शुरू किया।
हम सब रात-दिन भूखे-प्यासे रहते हुए, कहीं लंगर मिला तो पेट में कुछ डालते हुए कई दिन चलने के बाद अमृतसर, अंबाला होते हुए काशीपुर (उत्तराखंड) पहुंचे।
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