सियाचिन में बलिदान हुए कुमाऊं रेजीमेंट के लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला का पार्थिव शरीर 38 साल बाद मिलने से दो अन्य बलिदानी सैनिकों के घर भी आस जगी है कि उनकी देह भी एक न एक दिन घर आएगी।
1984 में सर्च ऑपरेशन मेघदूत के दौरान ग्लेशियर टूटने से 20 सैनिक बलिदान हो गए थे, जिनमें से 15 की देह उस दौरान मिल गई थी, लेकिन पांच का पता नहीं चल पाया था। इनमें से दो की देह, पिछले दिनों मिली थी जिनमें से एक चंद्रशेखर हरबोला थे, जिनका अंतिम संस्कार हल्द्वानी चित्रशिला घाट में किया गया। इसी दौरान ये खबर भी सामने आई है कि क्षेत्र के दो अन्य सैनिकों के पार्थिव शरीर अभी तक घर नहीं आए। इन दोनों की वीरांगनाओं ने मुख्यमत्री पुष्कर सिंह धामी से अनुरोध किया है कि वो अपने स्तर से इनकी खोज के लिए रक्षा मंत्रालय से बात करें।
जानकारी के मुताबिक देश की खातिर बलिदान देने वाले लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला के साथ नायक दया किशन जोशी और सिपाही हयात सिंह भी बलिदान हुए थे। जिनके पार्थिव देह के आने का आज भी परिजनों को इंतजार है। बलिदानी हरबोला के साथ सियाचिन की चोटी पर जा रही कंपनी में सिपाही हयात सिंह भी शामिल थे। उनकी वीरांगना यानी उनकी पत्नी बच्ची देवी ने बताया कि उनके घर पहुंचे दो टेलीग्राम ने उनकी जिंदगी को सूना कर दिया था। पहले टेलीग्राम में सैन्य अधिकारियों ने उनके पति समेत 20 जवानों के लापता होने की सूचना दी थी। करीब एक महीने बाद पहुंचे दूसरे टेलीग्राम को पढ़ने के बाद तो मानो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा था। उसमें उनके पति के बलिदान होने की खबर थी, लेकिन पार्थिव शरीर मिलने की पुष्टि नहीं हुई थी।
बच्ची देवी ने बताया कि हयात सिंह दो महीने की छुट्टी पर घर आए थे। एक महीने की छुट्टी के बाद अचानक चिट्ठी आई और छुट्टी रद्द करके उन्हें बुला लिया गया था। अब उनका 14 वर्षीय पोता हर्षित नौवीं कक्षा में पढ़ता है। 14 अगस्त को लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला का पार्थिव शरीर मिलने के बाद हर्षित कहता है कि दादी अब तो दादा जी भी मिल जाएंगे। बच्ची देवी इस समय अपने बेटे राजेंद्र के साथ रहती हैं। बेटी पुष्पा शादी के बाद लखनऊ में रह रही हैं।
बच्ची देवी ने बताया कि जब सिपाही हयात सिंह बलिदान हुए थे तब उनकी उम्र 24 साल थी और उनकी नौकरी को पांच साल छह महीने ही हुए थे। उस समय उनका बेटा राजेंद्र तीन साल का था। बेटी गर्भ में थी। पिता की शहादत के पांच माह बाद पुष्पा इस दुनिया में आई थी। बच्ची देवी ने बताया कि वह मूल रूप से रीठा साहिब की हैं। 16 साल से हल्द्वानी के भट्ट विहार स्थित कृष्णा कॉलोनी में रह रही हैं। वर्ष 1978 में बलिदानी हयात सिंह फौज में भर्ती हुए थे और 29 मई 1984 को सियाचिन में बलिदान हो गए।
इन्ही के साथ एक अन्य नायक सूबेदार दया किशन जोशी भी थे, जिनका पार्थिव शरीर भी आज तक नहीं मिला है। हालांकि सेना द्वारा समय-समय पर इनकी देह खोजने के लिए सर्च ऑपरेशन अपनी गश्त के दौरान चलाए जाते रहे हैं। उनकी पत्नी वीरांगना विमला जोशी का कहना था हमे उम्मीद है कि वो एक दिन वापस आएंगे। वो अपनी ड्यूटी पर गए हुए हैं और देश की रक्षा कर रहे हैं। लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला को श्रद्धांजलि देने पहुंचे सीएम धामी को बलिदानियों के परिजनों ने रोक लिया। बलिदानी नायक दया किशन जोशी और बलिदानी सिपाही हयात सिंह की पत्नी ने मुख्यमंत्री धामी से अपने पतियों के पार्थिव शरीर तलाशने की मांग की, जिस पर सीएम धामी ने उनसे कहा है कि वे निजी तौर पर इसके लिए प्रयास करेंगे।
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