ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी का मामला न्यायालय में चल रहा है। ऐसे में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर एमपी अहिरवार बयान देकर विवादों में घिरते नजर आ रहे हैं। एक यूट्यूब चैनल को दो माह पहले दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, ‘ज्ञानवापी का परिसर पहले बौद्ध विहार हुआ करता था।’ जब उनसे औरंगजेब के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने यह भी कहा, ‘राजदरबार की रानियां परिसर में भ्रमण को आई थीं। तब उनके साथ तहखाने में दुर्व्यवहार हुआ था। इसी बयान को लेकर छात्रों में काफी चर्चा है।
प्रोफेसर अहिरवार ने कहा, ‘अभी लोगों को गुमराह करने का ट्रेंड चल रहा है। 12वीं शताब्दी का मंदिर कंदवा में है। औरंगजेब ने उसको नहीं तोड़ा था। 11वीं और 12वीं शताब्दी के पहले का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि हम स्थान को हिन्दू तीर्थ मानें। ज्ञानवापी में बौद्ध विहार हुआ करता था। दुर्गाकुंड और मुड़कट्टा बाबा जैसे प्राचीन स्थल पर भी बौद्ध विहार हुआ करते थे। ज्ञानवापी में मंदिर तो वहां था। कलाविदों की टीम ही सही तथ्य बता सकती है। मंदिर से जुड़े इतिहास को खोजने की जरूरत है। बौद्ध विहार से जुड़े भी काफी इतिहास काशी से जुड़े हैं।
वहीं, काशी हिन्दू विश्विद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि काशी पूरी दुनिया में भगवान शिव के नाम से जानी जाती है। काशी खंड से लेकर तमाम विदेशी यात्रियों और इतिहाकारों के किताबों में मंदिर होने का प्रमाण मिलता है। काशी विश्वनाथ मंदिर के आस पास बौद्ध पंथ से जुड़ा कोई सिंबल नहीं मिलता है। औरंगजेब द्वारा मंदिर तोड़ने का जिक्र तमाम किताबों में मिलता है। वहीं, भारतीय आवाम पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ज्ञान प्रकाश ने बताया कि भगवान शिव का मंदिर वहां था। प्रोफेसर अहिरवार के द्वारा दिया गया बयान हमारी भावनाओं को आहत कर रहा है। पदाधिकारियों से बात करके इसका विरोध किया जाएगा।
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