प्रेमनाथ रावल
चक हाफसाबाद, मुल्तान, पाकिस्तान
आज 75 वर्ष बाद भी मैं उस घटना को नहीं भूल पाता, जिसमें मेरी तीन मौसेरी बहनों ने कुएं में कूद कर जान दे दी। जब मुसलमानों ने हमारी मौसी के घर हमला किया तो उन लोगों ने उनकी तीनों बेटियों के साथ बहुत ही बुरा व्यवहार किया। जब मुसलमान चले गए तो तीनों बहनों ने अपने माता-पिता से कहा कि तलवार उठाएं और हमें मार दें।
माता-पिता ने तीनों को समझाने का प्रयास किया। पर उन तीनों ने सबकी नजरों से बचते हुए घर के पास ही एक कुएं में छलांग लगा दी। जब यह घटना घटी, उस समय मैं अपने माता-पिता के साथ मुल्तान के शिविर में था। उस समय मैं साढ़े आठ साल का था। पता चला कि भारतीय सेना जगह-जगह फंसे हिंदुओं को निकालकर भारत ले जा रही है। कुछ मराठा सैनिक गाड़ी लेकर हमारे गांव आ गए। उन्होंने हमें मुल्तान के शिविर में छोड़ा था।
मुल्तान से हम लोगों ने लाहौर जाने वाली गाड़ी पकड़ ली। रास्ते में बेवजह अनेक स्थानों पर गाड़ी रुकने लगी तो पता चला कि चालक मुसलमान है। इससे गाड़ी में बैठे सभी लोग डर गए। इसी डर के बीच आगे कुछ मुसलमानों ने गाड़ी को रोक लिया। वह घंटों खड़ी रही और हम लोग अंदर दुबके रहे।
फौजी कार्रवाई के बाद गाड़ी चली और हम लोग पहले लाहौर और उसके बाद अटारी पहुंचे।
बाद में भारत में पिताजी की नौकरी लगी और हम लोगों की पढ़ाई हुई। मैं सेना के इंजीनियरिंग विभाग में कई साल तक अधिकारी रहा। अब समय काटने के लिए कुछ समाज सेवा कर लेता हूं।
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