चेलाराम पुपरेजा
मरदान, पाकिस्तान
भारत विभाजन के समय मेरा परिवार मरदान जिले के रेदा में रहता था। मेरा विवाह हो चुका था। उन दिनों मेरी मैट्रिक की परीक्षा चल रही थी। मरदान के खालसा स्कूल में परीक्षा केंद्र पड़ा था। एक दिन जब हम लोग परीक्षा दे रहे थे, तब स्कूल के बाहर मुसलमानों का एक जुलूस आया। उसमें लोग ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद’, ‘अल्लाह-हू-अकबर’ के नारे लगा रहे थे। इससे भीतर परीक्षा केंद्र में हिंदू विद्यार्थी डर गए। परीक्षा समाप्त होने के बाद सभी हिंदू छात्र एक कमरे में बैठे।
जब वहां से मुसलमानों की भीड़ चली गई तब हम लोग बाहर निकले और घर पहुंचे। तब वहां हिंदू-मुसलमानों की पोशाकें एक-सी होती थीं। सभी सलवार पहनते थे, लेकिन चेहरे से पहचान में आ जाते थे। बिगड़े माहौल के दिनों में मैं एक दिन किसी जरूरी काम से बाजार गया। कुछ मुसलमान मेरे पीछे पड़ गए। मैं तेजी से भागकर एक मुस्लिम की दुकान में घुस गया। उन्हें लगा कि मैं भी मुसलमान हूं और वे वहां से चले गए, तब मैं घर लौटा।
एक दिन गांव के सारे मुसलमान हिंदुओं के पीछे पड़ गए। उन लोगों ने मार-काट शुरू कर दी। इसके बाद हम लोगों ने गांव छोड़ने का निर्णय लिया। हमारा परिवार मरदान स्थित शिविर में पहुंचा। वहां से हम रावलपिंडी पहुंचे। यहां संघ के स्वयंसेवकों ने जगह-जगह पानी, खाने की व्यवस्था कर रखी थी।
वहां से भारत सरकार द्वारा भेजी गई एक विशेष रेलागाड़ी से हम लोग भारत आए। आज भी एक घटना याद है। मेरी ससुराल के गांव के कुछ लोग छह बसों में बैठकर जा रहे थे। उसमें मेरा साला भी था। रास्ते में बसों पर मुसलमानों ने हमला कर दिया। इसमें मेरे साले को छोड़कर सभी हिंदू मारे गए। मेरा साला एक सीट के नीचे छिपने से बच गया था।
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