अफगानिस्तान में मजहबी उन्मादी तालिबान को कुर्सी हथिया कर सत्ता पर काबिज हुए एक साल पूरा हो चुका है। इस बीच उसने न सिर्फ वहां अर्थव्यवस्था चौपट कर दी है, बल्कि विरोधियों को मारने और मानवाधिकार कुचलने में भी सीमाएं लांघ दी हैं।
तालिबान सरकार के कामकाज के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र कमीशन की रिपोर्ट चौंकाने वाली है। रिपोर्ट से पता चलता है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के निकलने के बाद से परिस्थितियां नाजुक बनी हुई हैं। पैसे की तंगी से जूझ रहे इस देश में 80 प्रतिशत परिवारों में बच्चों को खाना नसीब नहीं हो रहा है। वे भूखे ही सोया करते हैं। कुछ की किस्मत अच्छी है जो उन्हें एक वक्त की रोटी मिल रही है। इस पर भी परिवार में लड़कियों को लड़कों के मुकाबले कम खाना दिया जा रहा है।
जर्जर हो चुकी अर्थव्यवस्था लगातार संकट से गुजर रही है। पिछले करीब एक साल में देश के बजट में 65 प्रतिशत की कटौती की गई है। लड़कियों की तालीम को लेकर तालिबान के प्रतिबंध जारी हैं, साल भर से सिर्फ सुधार के वायदे किए गए हैं। लड़कियां प्राइमरी कक्षा तक ही पढ़ पा रही हैं। संयुक्त राष्ट्र को संदेह है कि गत एक वर्ष में करीब पांच लाख लोग अफगानिस्तान से पलायन कर चुके हैं। पाकिस्तान जाने वाले करीब तीन हजार अफगानी बाकायदा शरणार्थी का दर्जा पाने को तरस रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र मिशन की रिपोर्ट बताती है कि पिछले एक साल में 2,106 लोगों का कत्ल किया गया है। ज्यादातर हत्याएं काबुल तथा मजारे-शरीफ में की गई हैं। तालिबान के राज में 80 प्रतिशत महिला पत्रकार काम छोड़ चुकी हैं तो 173 पत्रकारों के हकों को कुचला गया है। करीब 122 पत्रकार गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान का करीब 56 हजार करोड़ रुपया फ्रीज किया हुआ है। अफगानिस्तान सेंट्रल बैंक का ये पैसा अमेरिकी फेडरल रिजर्व में जमा है। मानवाधिकारों को लेकर तालिबान की हरकतों ने इस पैसे को अमेरिकी कोष में रहने को मजबूर किया हुआ है।
अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआईए ने गत दिनों ड्रोन हमले में अल कायदा सरगना अयमन अल जवाहिरी को काबुल में ढेर कर दिया था। काबुल में हुई ये अमेरिकी कार्रवाई साफ दिखाती है कि अफगानिस्तान में अभी भी अल कायदा का नेटवर्क काम कर रहा है।
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