भगवन्ती देवी
खानपुर, मुलतान, पाकिस्तान
विभाजन के समय बहुत भारी मुसीबत आयी। हाथ पकड़-पकड़ कर मुसलमानों ने घर से बाहर निकाला। जो नहीं निकलना चाहता था, उसे मार दिया गया। मुझे अभी भी याद है, एक दिन अचानक मजहबी नारों के साथ एक भीड़ आई और हमारे गांव पर हमला कर दिया। उस समय हम सभी भाई-बहन एक साथ ही बैठे थे। हमारे पड़ोस में अधिकतर मुसलमान रहते थे। हम उन पर बहुत विश्वास करते थे। उनमें से कुछ मुसलमानों ने कहा, ‘‘तुम्हें मारने वाले आए हुए हैं इसलिए सब छोड़-छाड़कर यहां से भाग जाओ।
हम तुम्हारे घरों में ताले लगा देंगे और बाद में तुम्हें वापस लाएंगे।’’ उनकी बातों पर विश्वास करके हम लोग निकल गए। हम लोग डरे-सहमे भागे जा रहे थे, लेकिन जाना कहां है, यह नहीं पता था। रास्ते में देखा कि लाशें जल रही हैं। उस वक्त मेरी माताजी की गोद में डेढ़ साल की मेरी बहन थी। मुसलमान उस बच्ची को छीनना चाहते थे, इसलिए मेरी मां ने उसे नहर में फेंक दिया। बाद में एक व्यक्ति ने उसे नहर से निकाल कर मां को दे दिया। रास्ता संकरा और नहर का किनारा था। इस कारण कई बच्चे अपनी मां की गोद से नहर में गिर गए और तेज बहाव के कारण बह गए।
कई घंटे बाद हम एक स्टेशन पर पहुंचे। वहां किसी ने हम लोगों को एक रेलगाड़ी में बैठा दिया और कहा कि अब यहां से भारत चले जाओ, देश का बंटवारा हो गया है। स्टेशन पर भी हमारे साथ बहुत बुरा बर्ताव किया गया। जिसको गाड़ी पर चढ़ाना था चढ़ा दिया, जिसको मारना था मार दिया। वहां महिलाओं की इज्जत लूटी जा रही थी। कई पुरुषों ने घर की महिलाओं को रास्ते में ही मार दिया था। जैसे-तैसे गाड़ी भारत पहुंची।
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