रविंद्र पाल वोहरा
मुजफ्फराबाद
भारत विभाजन के कुछ ही समय बाद कबाइलियों ने मुजफ्फराबाद पर हमला कर दिया। कबाइलियों को आज के आतंकवादी कह सकते हैं। ये लोग हिंदू पुरुषों को देखते ही गोली मार देते थे, जबकि हिंदू महिलाओं को उठाकर ले जाते। जाने से पहले ये हमलावर हिंदुओं के घरों को लूटते और अंत में आग लगा देते थे।
जब स्थिति बहुत ही खराब हो गई तो हिंदू महिलाएं मुजफ्फराबाद से बाहर भागने लगीं। उन्हें यह भी नहीं पता था कि कहां जाएं। कबाइलियों से बचने के लिए महिलाओं ने आत्महत्या करना शुरू किया। शहर के बाहर एक नदी पर पुल बना था। हिंदू महिलाएं उस पुल से नदी में छलांग लगाकर जान देने लगीं।
उस वक्त मैं 14 साल का था। जब कभी कहीं जाना होता था तो हम लोग झुंड में जाते थे, अकेले कोई नहीं जाता था। उस वक्त मुजफ्फराबाद में कोई कानून नहीं रह गया था। पूरी तरह कबाइली राज चल रहा था। वे जिसे चाहते थे, मार देते थे। हमारे जिले में हिंदू और सिखों की आबादी करीब 40,000 थी। उनमें से लगभग 3,000 ही बचकर भारत आ पाए थे।
मुसलमानों के बीच रहने और अपनी जान बचाने के लिए हमारे पास एक ही रास्ता था—मुसलमान बन जाना। हर शुक्रवार को जबरदस्ती हम लोगों को नमाज पढ़ने के लिए कहा जाता था। जान बचाने के लिए हिंदुओं ने यह सब किया। जब तक हम लोग मुजफ्फराबाद में रहे तब तक मस्जिद जाते रहे, नमाज पढ़ते रहे। लेकिन शरीर में तो हिंदू रक्त बह रहा था। इसलिए एक दिन अवसर मिलते ही मुजफ्फराबाद से निकल भागे और भारत आ गए। साथ में केवल पहने हुए कपड़े थे। यहां आकर फिर से हिंदू हो गए। एक-एक दाने के लिए महीनों भटकते रहे।
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