सुरेंद्र कुमार सचदेवा
दोचक, सरगोधा, पाकिस्तान
जैसे ही मुसलमानों को पता चला कि दो हिंदू परिवार भाग गए हैं, तो वे लोग हमारे घर आ धमके। कहने लगे कि अब तुम लोगों को मुसलमान बनना पड़ेगा, तभी जिंदा रह पाओगे। इसके बाद वे लोग मेरी मां को छोड़कर परिवार के सभी पुरुषों को मस्जिद में ले गए।
वहां हमें मुसलमान बनाया गया। इसके बाद हम लोगों को एक मुसलमान के घर ही रखा गया। वहीं मेरी मां को भी बुला लिया गया। पिताजी मुसलमानों को चकमा देकर गांव लौट आए। वहां वे गोरखा सैनिकों के पास पहुंचे और उन्हें सारी बात बताई। इसके बाद पिताजी के साथ कुछ सैनिक मेरे गांव पहुंचे। 10 मिनट के अंदर उस ट्रक पर बैठकर हम लोग निकल गए।
फुल्लरवन में एक बड़ा गुरुद्वारा था। उसके पास ही हम शरणार्थियों के लिए शिविर बना था। हमें वहीं ले जाया गया। हम वहां करीब एक महीना रहे। शिविर की सुरक्षा में दो दिन गोरखा सैनिक आते थे, तो दो दिन मुस्लिम सैनिक आते थे। मुस्लिम सैनिक शिविर में रह रहे लोगों को बेवजह मारते रहते थे। आपस में बात करने पर भी पिटाई करते थे। वे बच्चों और महिलाओं को भी नहीं छोड़ते थे। बाद में मास्टर तारा सिंह ने हम लोगों को वहां से निकालकर भारत तक पहुंचाया।
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