उत्तराखंड में देश के पहले टाइगर रिजर्व में जहां इंसानों के पैदल चलने पर पाबंदी है वहां मजारें बना दी गईं और कॉर्बेट प्रशासन सोया रहा। ‘पाञ्चजन्य’ ने पहले भी इन अवैध मजारों के बारे में जानकारी दी थी, किंतु अभी तक किसी सक्षम अधिकारी ने इस मामले में अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है।
हाल ही में जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुए घपले में एक आईएफएस समेत अन्य अधिकारियों के खिलाफ अवैध निर्माण, बिना संस्तुति बजट ठिकाने लगाने के आरोप लगाते हुए विजलेंस विभाग ने एफआईआर दर्ज की है। सरकार ने कालागढ़ डिवीजन में टाइगर सफारी को लेकर हुए भ्रष्टाचार को गंभीरता से लिया है, लेकिन उत्तराखंड सरकार ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बन गईं अवैध मजारों को लेकर अभी तक कॉर्बेट प्रशासन का जवाब तलब नहीं किया है और न ही इस मामले में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने कोई नोटिस लिया है।
कॉर्बेट पार्क के झिरना फॉरेस्ट रेंज में रामनगर से कालागढ़ जाने वाली जंगल की सड़क के किनारे एक नहीं, दो-दो मजारें बन गई हैं। एक मजार तो ऐसी लगती है जिसे हाल ही में भव्य रूप दिया गया हो, बकायदा उसका गोल पत्थरों से आसन बनाकर उस पर चादर चढ़ाई गई हो, ये चादर चढ़ाने कौन आते हैं? जबकि इस टाइगर रिजर्व में किसी को बिना अनुमति घुसने नहीं दिया जाता। एक और मजार इसी सड़क पर करीब दो किमी आगे दिखाई देती है, ये दोनों मजारें कुछ सालों पहले तक नहीं थीं।
एक मजार मोरघट्टी कालागढ़ सोना नदी फॉरेस्ट डिवीजन में दिखाई देती है कहा जाता है कि ये पीर बाबा कालू सैय्यद की मजार है और बहुत पुरानी है। 1938 में यहां राष्ट्रीय उद्यान बना और 1957 में इसका नाम जिम कॉर्बेट पार्क हुआ। यहां पार्क में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए नियम कानून बने हुए हैं, इसके बावजूद यहां मजारें बनती चली गईं और कॉर्बेट प्रशासन मूकदर्शक बना रहा।
सवाल उठता है कि जिस कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में आदमियों के जाने पर पाबंदी है, तो वहां इन मजारों तक लोग कैसे पहुंचते रहे? बताया जा रहा है कि कालू सैय्यद की मजार पर तो बकायदा हर साल उर्स भी आयोजित किया जाता रहा है और उन दिनों सैकड़ों लोगों को वहां जाने पर कोई पाबंदी भी नहीं लगाई जाती, तो क्या कॉर्बेट प्रशासन आस्था के सवाल पर चुप्पी साध लिया करता है?
जानकारी के मुताबिक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के 1318.54 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में दो-तीन नहीं, बल्कि दर्जनों मजारें बना दी गई हैं। यूपी के बिजनौर जिले से लगे वन क्षेत्रों में ये मजारें बन गई हैं। यूपी और उत्तराखंड के बीच कालागढ़ कस्बा जिसे वन विभाग ने रामगंगा जल विद्युत परियोजना (कालागढ़ डैम) के लिए बसाया गया था वहां भी मजारें देखी गई हैं।
बड़ा सवाल ये है कि एक तरफ तो उत्तराखंड सरकार और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने हाल ही में टाइगर रिजर्व के कालागढ़ क्षेत्र में हुए अवैध निर्माण मामले में आईएफएस किशन चंद और अन्य अधिकारियों के खिलाफ विजलेंस जांच करवा कर एफआईआर दर्ज करवा दी है, वहीं, नई-नई मजारों के अवैध रूप से बनाए जाने पर जिम्मेदार चुप्पी क्यों साध रहे हैं?
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