देश के विभाजन की कसक 75 साल बाद भी पंजाब के लोगों के मन में सुलग रही है। आज भी बिछड़े लोग एक-दूसरे से मिल रहे हैं। पाकिस्तान में स्थित गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब की पवित्र धरती पर 1947 के बिछड़े हुए लोग गलियारा बनने के बाद अपने परिजनों से मिल रहे हैं। इसी कड़ी में सोमवार को जालंधर के रहने वाले 92 साल के सरवन सिंह गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब में पाक में रहने वाले अपने 82 साल के भतीजे अब्दुल खालिक (पुराना नाम मोहन सिंह) से मिले।
सरवन सिंह के साथ गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब में उनकी बेटी रछपाल कौर भी साथ गई थीं। डेरा बाबा नानक की भारत-पाक सीमा पर सरवन ने बताया कि 1947 में बंटवारे में परिवार से अलग हो गए थे। उस समय हुए कत्लेआम में उनके परिवार के 22 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। उस समय उनका भतीजा मोहन सिंह भागने में कामयाब हो गया था और एक मुस्लिम परिवार ने उसे शरण दी और वह मुसलमान बन गया।
सरवन सिंह ने बताया कि लेखक सुखदीप सिंह बरनाला ने विभाजन की त्रासदी पर डॉक्यूमेंट्री बनाई थी। डॉक्यूमेंट्री में विभाजन का दंशझेल रहे सरवन सिंह के परिवार व अन्य के बारे में बताया गया था। इस डॉक्यूमेंट्री को आस्ट्रेलिया में रह रहे गुरदेव सिंह ने देखा तो उन्होंने सरवन को भतीजे से मिलाने की कोशिश की। डॉक्यूमेंट्री में 6 साल के बच्चे के दो अंगूठे और एक जांघ पर काले धब्बे दिखाया गया था।
पाकिस्तानी पत्रकार से संपर्क करके मोहन सिंह के निशान बता कर ढूंढने में मदद की गुहार लगाई तो ऐसे ही व्यक्ति अब्दुल खालिक के बारे में बताया गया। आस्ट्रेलिया में रह रहे गुरदेव ने पाकिस्तान के अब्दुल खालिक का फोन जुटाया और दोनों की बात कराई। सोमवार को गुरदेव सिंह के कारण चाचा-भतीजा मिल पाए। सरवन ने बताया कि उनके भतीजे अब्दुल खालिक उर्फ मोहन सिंह का अपना परिवार भी है। भतीजे के 6 बेटे हैं।
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