नेपाल के उत्तरी सीमा में चीन द्वारा जमीन कब्जाने का सिलसिला अभी भी जारी है। गोरखा जिले के रुई में नेपाली भू-भाग पर चीन द्वारा सैन्य बंकर और भवन बनाने का खुलासा प्रमाण सहित ‘पाञ्चजन्य’ में प्रकाशित हुआ था। एक बार फिर चीन द्वारा उसी क्षेत्र में बिना नेपाल की जानकारी के कंटीले तार लगा कर सीमा को बंद करने का मामला सामने आया है।
कोरोना महामारी की आड़ में चीन द्वारा अपने पड़ोसी देशों की भूमि पर अतिक्रमण करने की खबरें तो पहले भी कई बार आ चुकी हैं। नेपाल में तो हर साल किसी न किसी सीमावर्ती जिले में उसके द्वारा जमीन हथियाने की खबर का खुलासा होता रहता है। लेकिन इन दिनों चीन की कुदृष्टि भूटान के सीमावर्ती क्षेत्र पर है। जिस तरह दो साल पहले चीन ने नेपाल के गोरखा जिले के रुई गांव के करीब अपना सैन्य ठिकाना बनाया और 9 ऊंची इमारतें खड़ी कर उसके आसपास नेपाली नागरिकों के दिखने तक पर प्रतिबंध लगा दिया था, यही काम अब वह भारत-भूटान सीमा पर कर रहा है। डोकलाम के आसपास भूटानी भू-भाग पर चीन द्वारा चार गांव बसाने के षड्यंत्र का खुलासा हुआ है। चीन दो गांव तैयार कर वहां अपने नागरिकों को बसा भी चुका है। तीसरा गांव निर्माणाधीन है, जबकि चौथा गांव भी बसाने की योजना है।
नेपाल के उत्तरी सीमा में चीन द्वारा जमीन कब्जाने का सिलसिला अभी भी जारी है। गोरखा जिले के रुई में नेपाली भू-भाग पर चीन द्वारा सैन्य बंकर और भवन बनाने का खुलासा प्रमाण सहित ‘पाञ्चजन्य’ में प्रकाशित हुआ था। एक बार फिर चीन द्वारा उसी क्षेत्र में बिना नेपाल की जानकारी के कंटीले तार लगा कर सीमा को बंद करने का मामला सामने आया है।
सीमा का रेखांकन नहीं
हिमालयी क्षेत्र में नेपाल की सीमा का रेखांकन नहीं होने से सीमा की वास्तविक स्थिति पता नहीं चल पाता है। इसी का फायदा उठाते हुए चीन ने नेपाल की सीमा में अतिक्रमण करते हुए कंटीले तार लगा दिए हैं। गोरखा जिले के चुमनुब्री गांव पालिका के रुइला सीमा नाका से स्थानीय निवासियों ने यह खबर दी है कि चीन ने नेपाली भूमि में कंटीले तार लगाए हैं। इस बारे में न तो जिला प्रशासन और न ही यहां के गृह या विदेश मंत्रालय को कोई जानकारी है। गोरखा जिले के प्रमुख जिला अधिकारी शंकर हरि आचार्य ने बताया कि इस तरह की कोई भी जानकारी उनके पास नहीं है और न ही चीन की तरफ से हमारे साथ कोई समन्वय किया गया है। नेपाल के विदेश मंत्रालय की सहायक प्रवक्ता रीता धिताल ने कहा कि दशगजा क्षेत्र निषेधित होता है, वहां पर कोई भी संरचना या निर्माण कार्य करने से पहले दोनों पक्षों की सहमति आवश्यक है। चीन ने दशगजा क्षेत्र के बाद अपनी सीमा में कंटीले तार लगाए हैं या नेपाली भू-भाग की तरफ, हमारे पास इसकी कोई सूचना नहीं है। लेकिन स्थानीय नागरिकों का दावा है कि चीन ने नेपाली भूमि की तरफ से कंटीले तार लगाए हैं। रुइला निवासी छिरिंग लामा ने वहां जो तस्वीर भेजी है, उससे इसकी पुष्टि होती है। यही नहीं, चीन ने उस तरफ नेपाल के नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध भी लगा दिया है। लामा का कहना है कि कंटीले तार नेपाल के गांव रुई और साम्दा के बीच लगाए गए हैं।
एक अन्य स्थानीय नागरिक दावा लामा का आरोप है कि पिछली बार जब से चीन द्वारा नेपाल की भूमि पर इमारत बनाने की खबर मीडिया में आई है, तब से सीमा पर निगरानी और बढ़ा दी गई है। तीन साल से नेपाली नागरिकों को खास कर रुइला निवासियों को साम्दा की ओर नहीं जाने दिया गया है। वहां पर चीनी सुरक्षाकर्मियों का जमावड़ा रहता है और सीसीटीवी से निगरानी की जाती है। छिरिंग लामा और दावा लामा, दोनों का कहना है कि हमारे सगे-संबंधी उस तरफ साम्दा में रहते हैं, उधर के भी कई लोग हैं जिनके सगे-संबंधी इस तरफ रहते हैं। लेकिन तीन साल से हम एक-दूसरे से मिल नहीं पा रहे हैं। कंटीले तार से घेराबंदी करने के बाद जो दरवाजा बनाया गया है, उस पर ताला लगा दिया गया है। चीनी सैनिक 24 घंटे वहां तैनात रहते हैं।
सीसीटीवी कैमरे से निगरानी
रुई भंज्यांग के पास चीन द्वारा दशगजा क्षेत्र में बाड़बंदी की जानकारी मिलने पर कुछ समय पहले एक सरकारी अधिकारी वहां की स्थिति जानने के लिए गए थे। नाम नहीं छापने की शर्त पर अधिकारी ने बताया कि करीब 150-200 लंबे क्षेत्र में कंटीले तार से घेर कर सीसीटीवी कैमरा लगाया गया है। अगर गलती से भी कोई स्थानीय नागरिक कंटीले तार के आसपास घूमता दिख जाता है तो वहां सुरक्षा में तैनात चीनी सैनिक उन्हें वापस लौटने का निर्देश देने लगते हैं। अपना अनुभव बताते हुए सरकारी अधिकारी ने बताया कि जैसे ही वे उस इलाके में सर्वे करने पहुंचे वैसे ही चीनी सेना के जवान आ गए और उनकी टीम को वापस चले जाने को कहा। ऐसा नहीं है कि सिर्फ रुइला और साम्दा इलाके में ही चीन ने इस तरह की हरकत की है। चुमनुब्री गांव के छेकम्पार में डूंगला नाका में भी चीन ने बाड़बंदी की कोशिश की थी, लेकिन स्थानीय नेपाली नागरिकों के लगातार प्रतिरोध के कारण उसे काम बंद करना पड़ा।
कुछ समय पहले ही नेपाल सरकार ने चीन द्वारा कब्जाई गई भूमि के बारे में पता लगाने के लिए एक उच्च स्तरीय जांच आयोग का गठन किया था। गृह मंत्रालय के सहसचिव जयनारायण आचार्य के संयोजकत्व में बनी सात सदस्यीय जांच समिति ने तीन महीने का समय देकर नेपाल-चीन सीमा में चीनी अतिक्रमण और उसकी ओर से पैदा की जा रही समस्याओं को लेकर सरकार को प्रतिवेदन सौंपा है। मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने हालांकि उस प्रतिवेदन को सार्वजनिक तो नहीं किया, लेकिन नेपाली मीडिया में उसे लीक कर दिया। इस प्रतिवेदन में नेपाल की जांच समिति ने चीन के भूमि अतिक्रमण को लेकर कई खुलासे किए हैं।
क्या है प्रतिवेदन में?
प्रतिवेदन में कहा गया है कि ‘स्तंभ संख्या 5(4) के ऊपर रहे किट डांडा से लेकर किट नदी तक चीनी पक्ष ने कंटीले तार लगाए हैं। नेपाल-चीन साझा सीमा स्तंभ संख्या 5(2) के दक्षिण और किट नदी के पूरब होते हुए उत्तर की तरफ स्तंभ संख्या 6(1) से कंटीले तार को कर्णाली नदी तक पहुंचा दिया गया है। स्तंभ संख्या 5(2) से किट नदी के मध्य भाग को प्रोटोकॉल के तहत दोनों देशों की सीमा के रूप में वर्णित किया गया है। यह क्षेत्र नेपाल के अंतर्गत आता है, लेकिन ऐसा लगता है कि चीनी पक्ष ने नेपाली क्षेत्र में बाड़ लगा कर अतिक्रमण करने का काम किया है। साथ ही, चीन ने किट डांडा का पानी किट नदी से लेने की कोशिश की, जो उसकी सीमा से लगभग 145 मीटर ऊपर है। प्रतीत होता है कि एक स्थायी शहर बनाने के लिए चीन ने सड़क और टैंक का निर्माण किया है। चूंकि चीन लंबे समय से जल स्रोत को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है और नदी के मुहाने पर लगभग उसका कब्जा हो गया है, इसलिए इसे संरक्षित करने के लिए कूटनीतिक रूप से संबोधित करने की आवश्यकता है।’’
प्रतिवेदन में चीनी पक्ष द्वारा नहर तैयार किए जाने और सीवेज के निर्माण कार्य की तस्वीर भी प्रस्तुत की गई है। प्रतिवेदन के अनुसार, नेपाली जांच दल के आने से दो दिन पहले खोदे गए पूरे क्षेत्र को फिर से मिट्टी डाल कर ढका गया था। नेपाली जांच दल को अधिक समय तक वहां रहने और तस्वीर लेने नहीं दिया गया था। फिर भी जब तक चीनी सेना के अधिकारी आते नेपाली पक्ष ने कुछ तस्वीरें ले ली थीं, जिसे प्रतिवेदन के साथ चीनी अतिक्रमण के प्रमाण तौर पर प्रस्तुत किया गया। प्रतिवेदन में यह भी कहा गया है कि चीन ने इस क्षेत्र में जो दो सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं, उनमें से एक नेपाली क्षेत्र में है। नेपाल की सीमा पर स्थित लोलुंग क्षेत्र में मानसरोवर दर्शन स्थल तक चीनी सुरक्षा बल निगरानी करता है। इस क्षेत्र में नेपाली नागरिकों को धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं है।
चीनी बाजार पर निर्भरता
बुनियादी ढांचे और विकास के अभाव के कारण लिमी लपचा और हिल्सा क्षेत्रों के नेपाली नागरिक चीनी बाजार पर निर्भर हैं, लेकिन पिछले तीन वर्षों में उन्हें काफी पेरेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वे चीनी सुरक्षाकर्मियों पर निर्भर हैं। जब चीनी सुरक्षाकर्मियों का मन होता है, वे नेपाली नागरिकों को रोजमर्रा की वस्तुएं खरीदने के लिए जाने देते हैं और जब चाहे उसे बंद भी कर देते हैं। स्थानीय लोगों के हवाले से प्रतिवेदन में कहा गया है कि कभी-कभी तो दो-दो महीने तक सीमा के पास सामान खरीदने की अनुमति नहीं दी जाती है, जिससे वहां के लोगों का जीवन काफी कष्टदायी हो जाता है।यही नहीं, चीनी पक्ष ने पश्चिम किट डांडा से गुजरने वाले सीमा स्तंभ संख्या 5(2) से सीमा स्तंभ संख्या 4 तक के क्षेत्र के आसपास नेपाली नागरिकों की आवाजाही पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है, जबकि वह भूमि या तो नेपाल का हिस्सा है या दशगजा क्षेत्र में आता है।
नेपाली क्षेत्र में सीमा स्तंभ संख्या 6(1) से 5(2) के भीतर किट नदी के पूरब में नेपाली क्षेत्र में चीनी सुरक्षाकर्मियों की व्यापक तैनाती देखने की बात भी प्रतिवेदन में है। चीनी क्षेत्र में रहे सीमा स्तंभ संख्या 7(2) अपने पहले वाले स्थान पर था ही नहीं। यानी चीनी सेना ने उस सीमा स्तंभ को गायब कर दिया है। नेपाली जांच दल ने उसे ढूंढने का बहुत प्रयास किया, लेकिन वह सीमा स्तंभ कहीं नहीं दिखा।
चीन ने नेपाल-चीन साझा सीमा स्तंभ संख्या 9(2) से सीमा स्तंभ संख्या 10 तक लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर कंटीले तार लगाए हैं, जिसे सीमा प्रोटोकॉल के प्रावधानों का उल्लंघन माना जा सकता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समझौतों के मुताबिक कोई भी देश बिना दूसरे देश को जानकारी दिए इस तरह से सीमा स्तंभ से 10 मीटर के भीतर कोई स्थायी संरचना नहीं बना सकता है। इसके अलावा, चीन ने अपनी तरफ हुमला में भांगदरे नदी में 6 हेक्टेयर, कर्णाली में 4 हेक्टेयर, रसुवा जिले के संजेन नदी में 2 हेक्टेयर, भुर्जुग नदी में 1 हेक्टेयर, लेम्दे नदी में 1 हेक्टेयर और जबमू नदी में 3 हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जा जमाया हुआ है। इस विवरण में इसका भी उल्लेख है कि चीन ने सिंधुपालचोक की खराने नदी में 7 हेक्टेयर, भोटेकोशी नदी में 4 हेक्टेयर, समजूंग नदी में 3 हेक्टेयर, काम नदी में 2 हेक्टेयर और संखुवासभा की अरुण नदी में 4 हेक्टेयर भूमि पर अवैध तरीके से कब्जा जमाया हुआ है।
डोकलाम में बसाए दो गांव
चीन ने भारत की सीमा से सटे डोकलाम के पास दो गांव पूरी तरह से बसा लिए हैं। भूटान के अमो चू घाटी में यह गांव उस जगह से 9 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां 2017 में भारतीय और चीनी सेना का आमना-सामना हुआ था। चीन इस गांव को पंगडा कहता है, जबकि यह पूरी तरह से भूटान की जमीन पर बसा हुआ है। उपग्रह चित्रों में इसका खुलासा हुआ है। पंगडा के पास ही आॅल वेदर रोड है, जो चीन ने भूटान की जमीन पर कब्जा कर बनाई है। यह रोड तेज बहाव वाली अमो चू नदी के किनारे है, जो भूटान में 10 किलोमीटर अंदर है। चीन अमो चू घाटी में गांव और सड़क का निर्माण अभी भी कर रहा है। यह घाटी चीनी कब्जे वाले भूटान के सबसे बड़े इलाके से करीब 30 किमी दक्षिण में है। अमो चू के आसपास निर्माण की वजह से चीनी सेना रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण डोकलाम पठार तक आसानी से पहुंच सकती है। इससे चीनी सेना भारत के संवेदनशील सिलीगुड़ी गलियारे तक आसानी से पहुंच बना सकती है। सिलीगुड़ी गलियारा पूर्वोत्तर के राज्यों को बाकी देश से जोड़ता है। भारतीय सेना ने चीनी कामगारों को साल 2017 में डोकलाम में मौजूद झाम्पेरी रिज पर पहुंचने से रोक दिया था। चीन अब वैकल्पिक रास्ते से यहां पहुंचने की कोशिश कर रहा है।
मैक्सार उपग्रह द्वारा जारी तस्वीर में अमो चू नदी के ऊपर बना चीनी पुल साफ दिखाई दे रहा है। इसके आसपास निर्माण कार्य जारी है। नई तस्वीरों से पता चला है कि अमो चू नदी के किनारे मौजूद दूसरा गांव लगभग पूरी तरह से तैयार हो चुका है, जबकि दक्षिण में मौजूद तीसरे गांव में निर्माण कार्य चल रहा है। तीसरे गांव के पास नदी पर एक पुल का निर्माण भी किया गया है। यहां पर 6 इमारतों की नींव भी दिखाई दे रही है। नई तस्वीरों का विश्लेषण कर चुके इंटेलिजेंस रिसर्चर डेमियन साइमन ने बताया कि इतने सुदूर इलाके में तेजी से हो रहा निर्माण भारत की सुरक्षा व संवेदनशीलता के लिए चिंता का विषय है। इससे पता चलता है कि चीन किस तरीके से बिना किसी विरोध के अपनी सीमाओं का विस्तार कर रहा है। वह सभी मौसम में इस इलाके तक पहुंच बनाने के लिए सड़कों का निर्माण कर रहा है। साइमन ने बताया कि चीन भूटानी इलाके के टुकड़े कर रहा है और भूटान इसे रोक नहीं पा रहा।
अब तक 41 लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा
चीन की सीमा भले ही 14 देशों से लगती हो, लेकिन सिर्फ नेपाल और भूटान ही नहीं, वह कम से 23 देशों की जमीन या समुद्री सीमाओं पर दावा जताता है। चीन अब तक दूसरे देशों की 41 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर चुका है, जो मौजूदा चीन का 43 प्रतिशत है। अपनी विस्तारवादी नीति के तहत चीन ने बीते 6-7 दशकों में अपने आकार को लगभग दोगुना कर लिया है। दरअसल, चीन ने 1949 में कम्युनिस्ट शासन की स्थापना के बाद से जमीन हथियाने की नीति अपनाई। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के 2013 में सत्ता में आने के बाद से चीन ने भारत से लगी सीमा पर मोर्चाबंदी तेज की।
ला ट्रोबे यूनिवर्सिटी एशिया सुरक्षा रिपोर्ट में चीन की विस्तारवादी नीति को लेकर तथ्य दिए गए हैं। चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान की 16.55 लाख वर्ग किलोमीटर भू-भाग को हड़प रखा है। 1934 में पहली बार उसने इसे अंजाम दिया और 1949 तक पूर्वी तुर्किस्तान पर कब्जा कर लिया। यहां 45 प्रतिशत आबादी उइगर मुसलमानों की है। इसके बाद 7 अक्तूबर, 1950 को चीन ने 12.3 लाख वर्ग किलोमीटर वाले तिब्बत पर कब्जा कर लिया। इस तरह 80 प्रतिशत बौद्ध आबादी वाले तिब्ब्त पर हमला कर चीन ने अपनी सीमा का विस्तार भारत तक कर लिया। उसे यहां अपार खनिज, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, मीकांग जैसी नदियों का स्रोत मिल गया।
चीन ने 11.83 लाख वर्ग किलोमीटर भू-भाग वाले मंगोलिया पर अक्तूबर 1945 में हमला कर कब्जा जमाया। यहां दुनिया का 25 प्रतिशत कोयला है, जबकि आबादी तीन करोड़ है। चीन ने 1997 में हांगकांग पर कब्जा कर लिया। इन दिनों वह वहां राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर शिकंजा कसने की फिराक में है। 450 वर्ष के शासन के बाद 1999 में पुर्तगालियों ने मकाउ, चीन को सौंप दिया। रूस के साथ चीन का 52 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को लेकर विवाद है। चीनी सेना बर्फीले हिमालयी क्षेत्र में घुसपैठ और तिब्बत में सैन्य तैयारियों के लिए रेल संपर्क को पीओके, नेपाल, म्यांमार व बांग्लादेश तक बढ़ाना चाहता है। उसने दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में अपने सामरिक दायरे को बढ़ा लिया है।
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