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1857 की क्रांति का शंखनाद

भारत की स्वतंत्रता के लिए 31 मई, 1857 को शंखनाद होना था परंतु मार्च, 1857 में ही अंग्रेजों द्वारा बैरकपुर में 19वीं पलटन को नि:शस्त्र किए जाने का आदेश भारतीय सैनिकों को अपमानजनक लगा। मंगल पाण्डेय ने 29 मार्च को ही स्वातंत्र्य बिगुल फूंकने का आह्वान किया। जब अंग्रेज अफसरों ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की तो उन्होंने दो अफसरों को मार गिराया। इससे फूटी चिंगारी 10 मई, 1857 को ज्वालामुखी बन कर भभक उठी

by रवि कुमार
Aug 6, 2022, 01:33 pm IST
in भारत, आजादी का अमृत महोत्सव
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1857 के स्वातंत्र्य समर के प्रथम बलिदानी मंगल पांडेय सेना की 19वीं पलटन के सैनिक थे। इस 19वीं पलटन का केंद्र बैरकपुर (बंगाल) था। मार्च के प्रारम्भ में फिरंगी पलटन कलकत्ता आई और 19वीं पलटन को नि:शस्त्र कर काम से हटाने का आदेश हुआ। निश्चित हुआ कि इस आदेश पर कार्यवाही बैरकपुर में की जाए। यह चर्चा सभी सैनिकों में फैली। अपने बंधुओं को अपनी आंखों के सामने दंडित किया जाएगा, यह सुन बैरकपुर शांत रहने वाला नहीं था।

 

देश की स्वतंत्रता के लिए एक साथ, एक समय प्रारम्भ होने वाली क्रांति का शंखनाद कैसे हुआ होगा? 31 मई 1857 के दिन सर्वत्र अंग्रेजों को खदेड़ दिया जाएगा, यह पूर्व निश्चित होने पर भी इतिहास के वर्णन में क्रांति का प्रारम्भ 10 मई 1857 क्यों आता है? चर्बी वाले कारतूस से भारतीय सैनिकों के मन में उठा विद्रोह देशभर में स्वतंत्रता संग्राम का रूप कैसे ले लेता है? ऐसे कई प्रश्न 1857 की क्रांति के विषय में आज की पीढ़ी के मन में हो सकते हैं। आइए इन प्रश्नों के उत्तर खोजते हुए इस स्वातंत्र्य समर के शंखनाद को भी जानने का प्रयास करते हैं।

1857 से प्रारम्भ हुई क्रांति की योजना पूरे देश में बन चुकी थी और आमजन के मन में स्वातंत्र्य की दृढ़ इच्छा 31 मई 1857 की भोर की प्रतीक्षा कर रही थी। योजना इतनी गुप्त थी कि अंग्रेजों को कानोंकान सूचना नहीं थी। फरवरी 1857 में अंग्रेजी पत्र एवं सरकारी रिपोर्ट कहती है-‘सम्पूर्ण देश पूर्णरूपेण शांत है।’-चार्ल्स बाल कृत ‘इंडियन म्यूटिनी’।

चर्बी से चिकने किए कारतूसों के विषय में मेडली ने लिखा है – ‘वस्तुत: चर्बी से चिकने किए गए कारतूसों की बात ने तो केवल उस सुरंग में अंगार मात्र ही लगाया था जिसका निर्माण अनेक कारणों से किया गया था।’ डिजराइली ने तो स्पष्ट शब्दों में इस धारणा को अस्वीकार किया था कि ‘चिकने कारतूस ही इस विद्र्रोह का मूल कारण थे।’- चार्ल्स बाल कृत ‘इंडियन म्यूटिनी’, खंड 1, पृष्ठ 629

1857 के स्वातंत्र्य समर के प्रथम बलिदानी मंगल पांडेय सेना की 19वीं पलटन के सैनिक थे। इस 19वीं पलटन का केंद्र बैरकपुर (बंगाल) था। मार्च के प्रारम्भ में फिरंगी पलटन कलकत्ता आई और 19वीं पलटन को नि:शस्त्र कर काम से हटाने का आदेश हुआ। निश्चित हुआ कि इस आदेश पर कार्यवाही बैरकपुर में की जाए। यह चर्चा सभी सैनिकों में फैली। अपने बंधुओं को अपनी आंखों के सामने दंडित किया जाएगा, यह सुन बैरकपुर शांत रहने वाला नहीं था।

क्रांति नेताओं का मत था कि अभी एक माह और प्रतीक्षा की जाए। परंतु मंगल पांडेय की तलवार को कौन धीरज बंधाए? मंगल पांडेय के पवित्र रक्त में देश के स्वातंत्र्य की विद्युत चेतना प्रवेश कर गई थी। बलिदानियों की तलवार को कभी धैर्य रहता है क्या! मंगल पांडेय 29 मार्च 1857 को ही विद्रोह का आग्रह सभी से कर रहे थे। गुप्त समिति के नेता इसकी अनुमति नहीं दे रहे, ऐसा ज्ञात होते ही उस जवान का रुकना दुष्कर हो गया।

मंगल पांडेय ने बंदूक उठाई और ‘मर्द हो, उठो’ की गर्जना करते हुए परेड मैदान में कूद पड़ा। ‘अरे अब क्यों पीछे रहते हो? भाइयो, आओ, टूट पड़ो। तुम्हे तुम्हारे धर्म की सौगन्ध है-चलो अपनी स्वतंत्रता के लिए शत्रु पर टूट पड़ो।’ यह देखते ही सार्जेंट मेजर ह्यूसन ने सिपाहियों को पकड़ने का आदेश दिया, परंतु इस आदेश का असर किसी सिपाही पर नहीं हुआ। इधर, मंगल पांडेय की बंदूक से निकली गोली ने ह्यूसन को तत्काल भूमि पर पटक दिया। लेफ्टिनेंट बॉ को मंगल पांडेय ने तलवार से परलोक पहुंचा दिया।

1857 से प्रारम्भ हुई क्रांति की योजना पूरे देश में बन चुकी थी और आमजन के मन में स्वातंत्र्य की दृढ़ इच्छा 31 मई 1857 की भोर की प्रतीक्षा कर रही थी। योजना इतनी गुप्त थी कि अंग्रेजों को कानोंकान सूचना नहीं थी। फरवरी 1857 में अंग्रेजी पत्र एवं सरकारी रिपोर्ट कहती है-‘सम्पूर्ण देश पूर्णरूपेण शांत है।’-चार्ल्स बाल कृत ‘इंडियन म्यूटिनी’।


समाचार मिलते ही जनरल हिर्से कुछ यूरोपीय सैनिकों को लेकर मंगल पांडेय को पकड़ने आगे बढ़ा। शत्रु के हाथ मेरा जीवित शरीर न लगे, इसलिए अपनी ही बंदूक से स्वयं पर गोली दाग स्वयं को घायल कर लिया। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। मंगल पांडेय का कोर्ट मार्शल कर जांच हुई। 8 अप्रैल 1857 को प्रात: मंगल पांडेय स्वतंत्रता की बलि वेदी पर चढ़ गए। मंगल पांडेय ने 1857 के क्रांति यज्ञ में अपना रक्त दिया। उस क्रांति में जो जो स्वदेश और स्वधर्म के लिए लड़े, उनमें ‘पांडेय’ उपाधि लगाने का प्रचलन शुरू हो गया।
मंगल पांडेय के बलिदान से 1857 की क्रांति का बीज जमते ही उसे अंकुरित होने में देरी क्यों? उत्तर प्रदेश में जन्मे मंगल पांडेय का रक्त बंगाल में ही नहीं, अन्य स्थानों पर भी क्रांति प्रारंभ करने की प्रेरणा दे रहा था।

अम्बाला अंग्रेजी सेना का प्रमुख केंद्र था। वहां पर सेना अधिकारी कमांडर-इन-चीफ अन्सन रहता था। अम्बाला के सैनिकों ने नई तरकीब अपना रखी थी कि जो भी अधिकारी उनके विरुद्ध हो जाए, उसका घर-बार जलाकर भस्म कर देना। अनेक देशद्रोहियों और फिरंगियों के घर जलने लगे। घर जलाने वालों का पता बताने पर हजारों का ईनाम था परन्तु कोई नाम बताता ही नहीं था। अंत में परेशान होकर कमांडर-इन-चीफ अन्सन गवर्नर जनरल को पत्र लिखता है-
It is really strange that the incendiaries should never be detected. Everyone is on the alert here, but still there is no clue to trace the offenders. फिर अप्रैल के अंत में वह लिखता है We have not been able to detect any of the incendiaries at Ambala.

यह आग हिन्दुस्थान में सभी जगह फैलने लगी। स्थान-स्थान पर चिंगारियां फूटने लगी। नाना साहब पेशवा के लखनऊ प्रवास के बाद वहां भी कुछ न कुछ होने लगा। यद्यपि गुप्त समिति के नेता 31 मई को एकसाथ क्रांति के लिए सहमत थे परन्तु युवाओं के रक्त में और प्रतीक्षा कहां! 3 मई को चार सैनिक बलपूर्वक लेफ्टिनेंट मेशम के तंबू में घुसे और बोले, ‘आपसे हमारा कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है, फिर भी चूंकि आप फिरंगी हैं, इसलिए आपको मरना होगा।’ इस घटना के बाद वहां की पलटन को धोखे से नि:शस्त्र कर दिया गया।
19वीं व 34वीं पलटन को अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र के लिए दोषी ठहरा दिया गया और इन दोनों पलटनों के सैनिकों को निशस्त्र कर नौकरी से निकाल दिया गया। यह घटनाक्रम पलटन के सैनिकों के लिए सम्मान जैसा था। शेष छावनियों में मंगल पांडेय के बलिदान की चर्चा आग की तरह फैल रही थी। फिरंगी सरकार भी छावनियों पर नजर रखे थी।

10 मई 1857 का रवि उदित हुआ। 20वीं पलटन और तीसरी घुड़सवार पलटन के सैनिक बोले – चर्च में फिरंगियों के जाते ही ‘हर हर महादेव’ बोलो। मेरठ के नजदीकी गांवों से भी टूटे-फूटे शस्त्र हाथों में लिए ग्रामीण नगर में एकत्र हो रहे थे और मेरठ शहर के नागरिक भी सुसज्जित हो रहे थे। सैनिक लाइन में एक ही गर्जना उठ रही थी – ‘मारो फिरंगी को’। धीरे-धीरे सारा मेरठ शहर क्रांति के रंग में रंग गया। कारागृह से धर्मवीरों को मुक्त कर, अंग्रेजों के रक्त के नाले बहाकर वे दो हजार सैनिक रक्त से रंगी अपनी तलवारें ऊंचीकर गर्जना करने लगे – ‘दिल्ली! दिल्ली! चलो दिल्ली!!

9 मई 1857 को मेरठ छावनी में यूरोपियन कंपनी और तोपखाने के पहरे में 85 भारतीय सैनिकों को खड़ा कर उनके कपड़े उतरवाए गए, नि:शस्त्र किया गया, लोहे की भारी-भारी बेड़ियां उनके हाथों और पैरों में ठोक दी गईं। यह सारा दृश्य दिखाने के लिए शेष भारतीय सैनिकों को जान-बूझकर बुलाया गया। इन 85 सैनिकों को 10 वर्ष का कठोर कारावास दंड सुनाकर जेल में बंद कर दिया गया।

यह घटना प्रात:काल की है। फिरंगियों द्वारा अपने साथियों का ऐसा अपमान देख सैनिकों का धीरज टूटने लगा। सैनिक बाजार गए। वहां महिलाएं उनका तिरस्कार कर कहने लगीं – ‘तुम्हारे बाप कारावास भेजे गए हैं और तुम यहां मक्खियां मार रहे हो। थू तुम्हारी जिन्दगी पर!! मर्द हो तो कारागृह से वीरों को छुड़ाकर लाओ।’ पहले से आक्रोशित सैनिकों को यह कैसे सहन होता। उस रात सैनिकों की गुप्त बैठकें होती रहीं। क्या अब भी 31 मई तक रुकना है? नहीं-नहीं, कल रविवार है। कल का नारायण अस्तमान होने से पूर्व स्वदेश जननी की बेड़ियां टूटनी ही चाहिए। तत्काल दिल्ली सन्देश भेजे गए – ‘हम तारीख 11 या 12 को वहां आ रहे हैं; सारी तैयारी करके रखो।’

10 मई 1857 का रवि उदित हुआ। 20वीं पलटन और तीसरी घुड़सवार पलटन के सैनिक बोले – चर्च में फिरंगियों के जाते ही ‘हर हर महादेव’ बोलो। मेरठ के नजदीकी गांवों से भी टूटे-फूटे शस्त्र हाथों में लिए ग्रामीण नगर में एकत्र हो रहे थे और मेरठ शहर के नागरिक भी सुसज्जित हो रहे थे। सैनिक लाइन में एक ही गर्जना उठ रही थी – ‘मारो फिरंगी को’। धीरे-धीरे सारा मेरठ शहर क्रांति के रंग में रंग गया। कारागृह से धर्मवीरों को मुक्त कर, अंग्रेजों के रक्त के नाले बहाकर वे दो हजार सैनिक रक्त से रंगी अपनी तलवारें ऊंचीकर गर्जना करने लगे – ‘दिल्ली! दिल्ली! चलो दिल्ली!!

बैरकपुर, अम्बाला, लखनऊ की घटना ने चिंगारी का कार्य किया परन्तु स्वतंत्रता के लिए बनी इस ज्वालामुखी में सुनियोजित विस्फोट मेरठ में हुआ। 31 मई को पूरे हिन्दुस्थान में ‘हर-हर महादेव’ एक साथ गूंज उठा होता तो सच में अंग्रेजी साम्राज्य की इतिश्री होने और स्वतंत्रता की विजय दुंदुभि बजाने के लिए इतिहास को अधिक देर ठहरना न पड़ता।
(लेखक विद्या भारती, दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य हैं)

Topics: क्रांति का शंखनाद1857 की क्रांतिrevolution of 1857मंगल पांडेयनाना साहब पेशवामारो फिरंगी को
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