अलवर में इस वर्ष सिख समुदाय के साथ हुई दो घटनाओं में ऐसा ही कुछ सामने आया है। साल की शुरुआत में एक दिव्यांग नाबालिग के साथ हुई अमानवीय घटना को सामान्य दुर्घटना बता कर रफा-दफा कर दिया गया, वहीं अब अलवर के रामगढ़ में गुरुद्वारे के पूर्व ग्रंथी के केश काटने की घटना भी रफा-दफा किए जाने की तैयारी है।
प्रदेश में तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के आगे मानवीय संवेदनाएं तक हारती दिख रही हैं। अलवर में इस वर्ष सिख समुदाय के साथ हुई दो घटनाओं में ऐसा ही कुछ सामने आया है। साल की शुरुआत में एक दिव्यांग नाबालिग के साथ हुई अमानवीय घटना को सामान्य दुर्घटना बता कर रफा-दफा कर दिया गया, वहीं अब अलवर के रामगढ़ में गुरुद्वारे के पूर्व ग्रंथी के केश काटने की घटना भी रफा-दफा किए जाने की तैयारी है। स्थिति यह है कि एक संदिग्ध को पकड़ कर थाने में लाने के बावजूद पुलिस अब तक आरोपियों की पहचान तक नहीं कर पाई है और सिख समुदाय को आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
प्रदेश का अलवर जिला गोतस्करी और ऐसे ही अन्य मामलों के कारण सुर्खियों में बना रहता है, लेकिन यहां मौजूदा सरकार के समय तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति का आलम यह है कि एक समुदाय विशेष यहां कितनी भी बड़ी घटना को अंजाम दे दे, उसका कुछ नहीं बिगड़ता, जबकि गो तस्करी करने वालों को रोकने के लिए छोटी सी कार्रवाई भी की जाए तो वह ‘लिचिंग’ के रूप में देश भर में सुर्खी बना दी जाती है। मेवात में हिन्दुओं और सिखों के प्रति बढ़ती आपराधिक घटनाओं को लेकर हिन्दू समाज में रोष है। घटना के विरोध में 25 जुलाई को रामगढ़ कस्बा पूरी तरह बंद रहा।
अल्पसंख्यक आयोग ने किया जवाब तलब
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अलवर की घटना को लेकर गंभीर हुआ है। आयोग ने राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस भेजकर अलवर में पूर्व ग्रंथी पर किए गए हमले और बाल काटने की घटना के बारे में जवाब तलब किया है। आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा ने बताया है कि गुरुद्वारे के पूर्व ग्रंथी पर किए गए हमले और बाल काटने के बारे में मीडिया में छपी रिपोर्ट का संज्ञान लिया गया है। आयोग ने प्रदेश के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर उनसे मामले की विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।
सिख जान कर कहा, ‘केश काट दो’
पीड़ित पूर्व ग्रंथी गुरुबख्श सिंह ने बताया कि 21 जुलाई की शाम वह बाइक से दवाई लेने मिलकपुर से अलावड़ा की तरफ जा रहे थे। रास्ते में कुछ युवकों ने किसी बहाने से रोका। उसके बाद उनकी आंखों मे मिर्च डाल दी और एक तरफ ले गए। फिर आंखों पर पट्टी बांधकर बिठा दिया। वह लोग मेरी गर्दन काटने की बात कर रहे थे। मैंने घबरा कर कहा कि ‘मुझे क्यों मार रहे हो, मैं तो गुरुद्वारे का ग्रंथी हूं।’ तब उन्होंने किसी जुम्मा नाम के व्यक्ति को फोन किया। जुम्मा के कहने पर आरोपितों ने उनकी पिटाई की और बाल काट दिए। वह लोग कह रहे थे कि जुम्मा ने कहा है कि गुरुद्वारे का आदमी है तो इसके बाल काट दो, वही बहुत है। जब उनकी आवाज बंद हुई तो पूर्व ग्रंथी ने पट्टी खोली और बाइक लेकर गांव पहुंचे। इसके बाद परिजन व ग्रामीणों को घटना की जानकारी दी।
इस बार तो मामला और भी ज्यादा दुर्भाग्पपूर्ण इसलिए है कि दोनों ही घटनाओं के पीड़ित सिख समुदाय से जुड़े हैं और दोनों को ही न्याय नहीं मिल रहा है। इस वर्ष की शुरुआत में अलवर में ही एक अबोध बालिका के साथ एक अमानवीय घटना सामने आई। शुरुआती जांच में पुलिस ने खुद माना कि यह दुष्कर्म का मामला दिख रहा है। पीड़िता से मिलने के लिए सरकार के मंत्री तक अस्पताल पहुंचे, लेकिन अंतत: मामला रफा-दफा कर दिया गया और इसे एक ‘सामान्य दुर्घटना’ बता कर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। वह बच्ची और उसके माता-पिता आज भी न्याय की आस में हैं।
दूसरा मामला हाल ही में सामने आया जब रामगढ़ के अलावड़ा गांव में मलिकपुर के गुरुद्वारे के एक पूर्व ग्रंथी गुरूबख्श सिंह के केश काट दिए गए। यह काम जुम्मा नाम के एक आदमी के कहने पर किया गया। गुरूबख्श सिंह ने खुद बताया कि आरोपी उसकी गर्दन काटने की तैयारी में थे, लेकिन जब उन्होंने खुद को गुरुद्वारे का ग्रंथी बताया तो केश काट कर छोड़ दिया गया। एक सिख के लिए उसके केश काटने से बड़ी अपमानजनक घटना कोई नहीं हो सकती।
करीब दो वर्ष पहले अलवर के ही चौपानकी थाना इलाके में दलित युवक हरीश जाटव के मामले में भी पुलिस ने कुछ नहीं किया था। वह लिंचिंग का शिकार हुआ और उसके पिता दर-दर न्याय की गुहार लगाते रहे। लेकिन न्याय नहीं मिला तो उन्होंने भी जहर खाकर जान दे दी। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के सामने सरकार और पुलिस पीड़ितों को न्याय दिलाना तो दूर, सुनवाई तक नहीं करेगी? आखिर ऐसा कब तक चलेगा?
इस मामले में सिख समुदाय ने जब रामगढ़ में प्रदर्शन किया और थाने का घेराव किया तो पुलिस कुछ समय बाद ही एक संदिग्ध को पकड़ कर ले आई। यह लगा था कि अब बाकी आरोपी भी तुरंत पकड़ में आ जाएंगे, लेकिन घटना के सप्ताह भर बाद भी पुलिस आरोपियों की पहचान तक नहीं कर पाई है। जिसे पुलिस पकड़ कर लाई थी, वह वही जुमा था, जिसके निर्देश पर ये घटना की गई थी। सामान्य पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे छोड़ भी दिया।
ऐसे गम्भीर मामले में भी पुलिस की लापरवाही बता रही है कि इस मामले को भी कहीं ना कहीं रफा-दफा करने की कोशिशें की जा रही हैं, क्योंकि आरोपी एक समुदाय विशेष से जुड़े हैं। मामला गम्भीर होने के बावजूद सिख संगत ने कानून-व्यवस्था को हाथ में नहीं लिया और पुलिस पर भरोसा करते हुए उसे कार्रवाई के लिए पूरा समय दिया, लेकिन पुलिस ने जब समुदाय का भरोसा तोड़ा तो अब न्याय की आस लगाए बैठे सिख समुदाय को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ रहा है। इसके विरोध में सोमवार को पूरे इलाके के बाजार और स्कूल बंद रहे और अब फिर अल्टीमेटम दिया गया है।
गौरतलब है कि करीब दो वर्ष पहले अलवर के ही चौपानकी थाना इलाके में दलित युवक हरीश जाटव के मामले में भी पुलिस ने कुछ नहीं किया था। वह लिंचिंग का शिकार हुआ और उसके पिता दर-दर न्याय की गुहार लगाते रहे। लेकिन न्याय नहीं मिला तो उन्होंने भी जहर खाकर जान दे दी। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के सामने सरकार और पुलिस पीड़ितों को न्याय दिलाना तो दूर, सुनवाई तक नहीं करेगी? आखिर ऐसा कब तक चलेगा?
गुरमत प्रचार कमेटी के अध्यक्ष सरजीत सिंह आरोप लगाते हुए कहते हैं कि सरकार व प्रशासन सिख समाज के लोगों से जुड़े मामलों में गंभीर नहीं है। पुलिस की उदासीनता साफ दिखी है। उन्होंने बताया कि 12 जनवरी को अलवर के तिजारा फाटक पर मूकबधिर नाबालिग लहूलुहान मिली थी। पहले पुलिस ने इसे बलात्कार माना। कई महीने बाद मामले को ‘दुर्घटना’ बता रफा-दफा कर दिया। इसी साल अलावड़ा में गुरु गोविंद सिंह जी एवं साहिबजादों के प्रति गलत शब्दों का प्रयोग किया गया। खैरथल में भी गुरुग्रंथ साहिब के पन्ने फाड़ने की घटना हो चुकी है। अब 21 जुलाई को ग्रंथी के केश काटे गए। इन सभी मामलों को लेकर सिख समाज में आक्रोश है।
पुलिस का दावा, बदले की भावना से घटना को अंजाम
पुलिस ने इस पूरे मामले का खुलासा गुरुवार को किया। इस मामले में पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जबकि चौथे की तलाश जारी है। पुलिस का दावा है कि प्रेम प्रसंग के चलते बदले की भावना से घटना को अंजाम दिया गया था।
पुलिस अधीक्षक तेजस्वनी गौतम के अनुसार पीड़ित गुरुबख्श ने दलबीर को अपना भाई बना रखा था। दलबीर का लड़का सुंदर मिलकपुर से एक महिला को भगाकर ले गया था। उस महिला को अलावड़ा सरपंच जुम्मा के सहयोग से पुलिस ने दस्तयाब किया था। जुम्मा को सबक सिखाने के लिए सुंदर ने मिलकपुर के ही शौकत, मौसम और टिंडा उर्फ फारुख के साथ मिलकर योजनाबद्ध तरीके से घटना को अंजाम दिया ताकि पुलिस जुम्मा व इकबाल के परिजनों इस मामले में पकड़ बंद कर दे। फिर सुंदर महिला के साथ बेरोकटोक रह सके। फिलहाल पुलिस ने शौकत, मौसम और सुंदर को गिरफ्तार कर लिया है, जबकि टिंडा फरार है।
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