नैनीताल। उच्च न्यायालय की एकल खंडपीठ ने एक अर्जी की सुनवाई के बाद केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह स्पेशल सर्विस ब्यूरो के गुरिल्लाओं को नौकरियों का लाभ दे। जानकारी के मुताबिक हाई कोर्ट में टिहरी की एक विधवा अनुसूय्या देवी, पिथौरागढ़ के मोहन सिंह और अन्य बीस की एक याचिका दायर हुई थी। ये सभी स्पेशल सर्विस ब्यूरो (एसएसबी) के गुरिल्ला थे।
स्पेशल सर्विस ब्यूरो 1963 में गृह मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया था। ये रॉ के अंतर्गत काम करता था। इसमें सीमांत क्षेत्र के रहने वाले लोगों को 45 दिन की सैनिक ट्रेनिंग दी जाती थी ताकि युद्ध की परिस्थिति में इनका उपयोग किया जा सके। इन्हें मानदेय भी मिलता था और पुरुष-महिला सभी को छापामारी युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया था। चीन के साथ युद्ध खत्म होने के बाद भी ये सेवा चलती रही और करीब बीस हजार लोग इससे जुड़े रहे, जिन्हें एसएसबी गुरिल्ला कहा जाता है।
गृह मंत्रालय ने 2003 में एसएसबी की गुरिल्ला इकाई को समाप्त कर दिया। इसी नाम से सीमा सशस्त्र बल का गठन करते हुए उन्हें नेपाल सीमा पर तैनात किया गया। उस दौरान गुरिल्ला संगठन ने एकजुट होकर अपना आंदोलन शुरू किया और नौकरियों के लाभ, पेंशन आदि की मांग की और ये मांगें नैनीताल हाई कोर्ट तक एक याचिका के रूप में पहुंच गईं । गुरिल्ला संगठन का तर्क है कि भारत सरकार ने मणिपुर राज्य में एसएसबी के गुरिल्ला संगठन के सदस्यों को नौकरियों के लाभ दिए हैं, लिहाजा उन्हें भी दिए जाएं।
इस याचिका पर न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की एकलपीठ ने सुनवाई पूरी करते हुए सरकार को निर्देश दिया कि वे इन्हें मणिपुर की तरह सेवानिवृत्ति का लाभ देने की व्यवस्था करे।
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