काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी प्रकरण में बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से एक शपथ पत्र दाखिल करके कहा गया कि वक्फ एक्ट 1936 के अंतर्गत 26 फरवरी 1944 को सरकार की ओर से नोटिफिकेशन जारी किया गया था. उस नोटिफिकेशन में ज्ञानवापी को वक्फ नंबर सौ पर दर्ज किया गया था. यह साक्ष्य 5 मई 2022 को यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने वाराणसी जनपद न्यायालय में दाखिल किया था.
वहीं हिंदू पक्ष के अधिवक्ता ने उच्च न्यायालय में कहा कि यह नया साक्ष्य दाखिल किया गया है. यह साक्ष्य पहले रिकॉर्ड में नहीं था. यह नया साक्ष्य संज्ञान में लेने योग्य नहीं है. वक्फ एक्ट मुस्लिम बनाम मुस्लिम पर लागू होता है. अगर कोई विवाद हिंदू बनाम मुस्लिम होता है तब उस पर यह एक्ट लागू नहीं होता है. इस तर्क के समर्थन में हिंदू पक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कई फैसलों को भी न्यायालय के सामने प्रस्तुत किया.
हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि विवादित स्थल न कभी वक्फ था और न ही कभी वक्फ हो सकता है. अगर मंदिर के किसी हिस्से पर कोई निर्माण कर लिया गया है और उस निर्माण के बाद शेष भूमि मंदिर के कब्जे में है तो ऐसा करने से मंदिर के रिलीजियस करैक्टर में कोई परिवर्तन नहीं आया.
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