नेशनल हेरल्ड मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) में पूछताछ चली, जिसके विरोध में कांग्रेस पार्टी ने सड़कों पर ‘सत्याग्रह’ किया। उधर संसद के भीतर विरोधी दलों ने महंगाई तथा अन्य समस्याओं को लेकर तख्तियां दिखाकर विरोध प्रकट किया। दोनों सदनों के कुछ सदस्यों को सत्र से निलंबित किया गया है। सदस्यों का निलंबन, सड़कों पर प्रदर्शन और राहुल-सोनिया गांधी से पूछताछ क्या असामान्य घटनाएं हैं?
हाल की कुछ घटनाओं ने देश का ध्यान खींचा है। नेशनल हेरल्ड मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) में पूछताछ चली, जिसके विरोध में कांग्रेस पार्टी ने सड़कों पर ‘सत्याग्रह’ किया। उधर संसद के भीतर विरोधी दलों ने महंगाई तथा अन्य समस्याओं को लेकर तख्तियां दिखाकर विरोध प्रकट किया। दोनों सदनों के कुछ सदस्यों को सत्र से निलंबित किया गया है। सदस्यों का निलंबन, सड़कों पर प्रदर्शन और राहुल-सोनिया गांधी से पूछताछ क्या असामान्य घटनाएं हैं? शायद नहीं, पर कांग्रेस के नेता ‘गांधी परिवार’ से पूछताछ को अकल्पनीय मानते हैं।
अदालत का फैसला
उपरोक्त तीन घटनाओं के अलावा गत 27 जुलाई को एक और संयोग हो गया। उच्चतम न्यायालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मिले अधिकार को उचित ठहराया। अदालत ने कहा कि कानून सही है और ईडी के पास गिरफ्तारी का अधिकार भी है। व्यक्ति की आय, तलाशी और उसे जब्त करने, गिरफ़्तार करने की शक्ति, संपत्ति कुर्क करने और जमानत की शर्तों से जुड़ी प्रिवेंशन आफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) की प्रक्रियाएं सही हैं। ईडी-अधिकारियों के लिए जरूरी नहीं कि वे किसी अभियुक्त को हिरासत में लेते समय गिरफ़्तारी की वजह बताएं। इस फैसले से ईडी के हाथ तो मजबूत हुए ही हैं, कांग्रेस पार्टी के आंदोलन की हवा निकल गई है। अदालत के इस फैसले के साथ बहुतों की उम्मीदें टूटी हैं। कांग्रेस समेत कुल 242 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत का यह फैसला आया है। इन याचिकाकर्ताओं में अन्य लोगों के अलावा पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती शामिल हैं।
सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा दायर मुकदमे में कहा गया है कि यंग इंडियन लिमिटेड ने
50 लाख रुपये देकर एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) पर बकाया 90 करोड़
के कर्ज की जिम्मेदारी को ले लिया है। उनका मुख्य आरोप है कि गांधी परिवार
के लिए खड़ी की गई कंपनीयंग इंडियन लिमिटेड ने एजेएल की
अचल संपत्तिको व्यावहारिक रूप से अपने नाम करा लिया है।
इस कानून के राजनीतिकरण की कोशिशें इसलिए हुई हैं, क्योंकि कुछ राजनेता इसकी पकड़ में आए हैं। शिवसेना के संजय राउत, पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी और उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी से पूछताछ चल रही है। महाराष्ट्र के नवाब मलिक और अनिल देशमुख के अलावा दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन ईडी जांच के बाद जेल में बंद हैं।
ईडी के हाथ मजबूत
सर्वोच्च न्यायालय के ताजा फैसले के बाद ईडी का आत्मविश्वास बढ़ेगा, वहीं कांग्रेस के नेता आरोप लगा रहे हैं कि देश में ईडी का आतंक है। कांग्रेस को तकलीफ इस बात की है कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी से पूछताछ कैसे की जा सकती है? उन्होंने इस मुद्दे को महंगाई, बेरोजगारी और जनता की बदहाली के लिफाफे में लपेटने की कोशिश भी की है। पर क्या दो व्यक्तियों के मामले को देश की सामान्य समस्याओं के साथ जोड़ना उचित है? इन मसलों पर चर्चा का फोरम संसद है। दुर्भाग्य से वहां भी गतिरोध चल रहा है। विरोध प्रकट करना कांग्रेस का राजनीतिक-अधिकार है, पर ईडी की जांच को राजनीतिक दृष्टि से देखना अनुचित है। यह पड़ताल हवा में नहीं है। यह तकनीकी जांच है और उसके पीछे कोई आधार है। जांच के बाद जो साक्ष्य निकल कर आएंगे, उनसे दूध का दूध और पानी का पानी हो सकेगा। ईडी को विवादास्पद बनाने से कुछ देर की राजनीति संभव है, पर यह बहुत दूर तक नहीं जाएगा, बल्कि प्रशासनिक-संस्थाओं की साख को गिराने की कोशिश नुकसानदेह होगी।
संयोग से जिस समय सोनिया गांधी से पूछताछ के समांतर पश्चिम बंगाल के मंत्री पार्थ चटर्जी से भी पूछताछ चल रही थी। उनके संपर्क वाले कुछ स्थानों से भारी नकदी की बरामद हुई और अचल संपत्ति के दस्तावेज भी मिले हैं। इस मामले को लेकर तृणमूल कांग्रेस में अपराध-बोध है। ममता बनर्जी ने पार्थ चटर्जी से पल्ला झाड़ लिया है।
नेशनल हेरल्ड मामला
नेशनल हेरल्ड का मामला अदालत में है और उसी सिलसिले में यह पूछताछ चल रही है। गांधी परिवार पाक-साफ है, तो चिंता किस बात की? इतने महत्वपूर्ण व्यक्तियों को, जिनके पास साधनों और कानूनी विशेषज्ञों की कमी नहीं है क्या यों ही फं साया जा सकता है? पर सड़कों पर आंदोलन चलाकर जांच को रोका जा सकता है क्या? किसी की कार को फूंकने से तो सबूत नहीं मिलेंगे। सड़कों पर उतर कर कांग्रेस शायद अपनी खोई जमीन हासिल करना चाहती है। जमीन मिलेगी या और खिसकेगी?
बहरहाल, सामान्य व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि नेशनल हेरल्ड का मामला क्या है? पिछले दस साल से चल रहे इस मामले के पीछे क्या कहानी है और ईडी की पूछताछ क्यों हो रही है वगैरह? पंडित जवाहर लाल नेहरू की पहल पर 1937 में बनी कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड द्वारा नेशनल हेरल्ड के अलावा हिंदी के दैनिक नवजीवन और उर्दू के दैनिक कौमी आवाज का प्रकाशन किया जाता था। अखबार नेहरू जी की पहल पर शुरू हुआ था, पर इसका मतलब यह नहीं था कि इसमें पैसा उनका ही लगा था। आजादी के बाद कई साल तक सफलता से चलने के बाद कंपनी की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी और अंतत: 2008 में अखबारों को बंद कर दिया गया।
कारोबार को बंद करने के लिए भी कंपनी के पास नकदी नहीं थी। ऐसे में एक सहज समाधान था कि कंपनी की अचल संपत्ति को बेच कर देनदारी पूरी कर ली जाए। पर ऐसा नहीं किया गया, बल्कि कंपनी को कांग्रेस पार्टी ने 90 करोड़ का बगैर ब्याज का कर्ज दिया। इसके बाद सन 2010 में यंग इंडियन लिमिटेड नाम से एक कंपनी का गठन हुआ। इस कंपनी के 76 प्रतिशत शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास हैं और शेष शेयर कांग्रेस पार्टी से ही जुड़े लोगों के पास हैं।
कांग्रेस पार्टी से मिले कर्ज को एजेएल चुकाने की स्थिति में नहीं था। 90 करोड़ का यह कर्ज यंग इंडियन लिमिटेड के नाम किया गया। 2010 में ही एजेएल के शेयरों की संख्या का विस्तार हुआ, जिन्हें यंग इंडियन ने हासिल किया। इस प्रकार यंग इंडियन के पास एजेएल के मेजॉरिटी शेयर हो गए हैं। इन शेयरों को खरीदने के लिए यंग इंडियन ने कोलकाता की एक कंपनी से एक करोड़ रुपये लिए। इसमे से 50 लाख रुपये एजेएल को 90 करोड़ के कर्ज की देनदारी हासिल करने के लिए कांग्रेस पार्टी को दिए गए।
राजनीतिक उद्देश्य
यह लेन-देन क्या न्यायसंगत था? क्या इसके पीछे कोई अनियमितता है? ऐसे सवाल जांच का विषय हैं। यह जांच कोई विशेषज्ञ संस्था ही कर सकती है, जो प्रवर्तन निदेशालय है। इसके सूत्र एक मुकदमे से जुड़े हैं। यह मामला सुब्रह्मण्यम स्वामी ने नवंबर 2012 में दर्ज कराया था। यानी भाजपा के सत्ता में आने से 18 महीने पहले। उस समय केंद्र में यूपीए सरकार थी। मामले को दर्ज कराते समय स्वामी भाजपा के सदस्य भी नहीं थे। वे नौ महीने बाद अगस्त, 2013 में पार्टी में शामिल हुए।
स्वामी की शिकायत पर निचली अदालत के एक जज ने पाया कि इसमें कई सवाल हैं और उसने इस संबंध में समन भेजा। गांधी परिवार ने समन को स्थगित करने और निचली अदालत में मामले को खारिज करने की अपील की, पर दिसंबर 2015 में उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका को स्वीकार नहीं किया। फरवरी 2016 में उच्च न्यायालय ने गांधी परिवार से कहा कि वे निचली अदालत में मुकदमे का सामना करें। अलबत्ता उन्हें व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट मिल गई। धीरे-धीरे यह मामला चल रहा है। इस प्रकार के मामलों की गति यों भी सुस्त होती है।
सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा दायर मुकदमे में कहा गया है कि यंग इंडियन लिमिटेड ने 50 लाख रुपये देकर एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) पर बकाया 90 करोड़ के कर्ज की जिम्मेदारी को ले लिया है। उनका मुख्य आरोप है कि गांधी परिवार के लिए खड़ी की गई कंपनी यंग इंडियन लिमिटेड ने एजेएल की अचल संपत्ति को व्यावहारिक रूप से अपने नाम करा लिया है। इस संपत्ति की कीमत दो से पांच हजार करोड़ के बीच आंकी गई है। अनुमान और कयास अपनी जगह हैं। असली कसौटी अदालत की कार्यवाही है। इंतजार उसके फैसले का करना चाहिए। यह फैसला सड़कों पर नहीं हो सकेगा।
टिप्पणियाँ