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शिशु को मिला शिशु मंदिर में स्वदेशी ज्ञान

सावरकर का लिखा कभी पढ़ा है आपने? सिर्फ सावरकर का माफीनामा ही जानते हैं या कुछ में सुधार की अपेक्षा समाज से करते हैं। लेकिन गहराई से सोचें तो इसकी शुरुआत घर-परिवार से होती है। इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण है- सारांश

by प्रशांत सौरभ की फेसबुक वॉल से
Aug 3, 2022, 09:11 am IST
in सोशल मीडिया, हिमाचल प्रदेश
सारांश

सारांश

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सारांश तीसरी कक्षा में पढ़ता था। एक दिन किस्मत जी पत्नी और बेटे सारांश के साथ बाजार जा रहे थे। रास्ते में एक खिलौने की दुकान पड़ी। उसमें सारांश को तीर-धनुष दिखा, जिसे पाने के लिए उसका मन मचल उठा। सारांश ने अपने माता-पिता से खिलौना दिलाने का आग्रह किया।

सारांश हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर निवासी मेरे अभिभावक तुल्य मित्र किस्मत कुमार का पुत्र है। सारांश महज 7-8 साल का एक बच्चा है। लेकिन उसके भीतर राष्ट्रभक्ति की भावना इस तरह बसी है, जिसे जानकर आपको आश्चर्य होगा।

बात लॉकडाउन के ठीक पहले की है। सारांश तीसरी कक्षा में पढ़ता था। एक दिन किस्मत जी पत्नी और बेटे सारांश के साथ बाजार जा रहे थे। रास्ते में एक खिलौने की दुकान पड़ी। उसमें सारांश को तीर-धनुष दिखा, जिसे पाने के लिए उसका मन मचल उठा। सारांश ने अपने माता-पिता से खिलौना दिलाने का आग्रह किया। जैसा आम तौर पर होता है, पिता ने यह कह कर टाल दिया कि अभी नहीं, बाद में देखेंगे। बच्चा जिद करता रहा, लेकिन वे लोग उसकी जिद को नजरअंदाज कर आगे बढ़ गए। उन्हें आगे बाजार में खरीदारी करनी थी। खरीदारी करके लौटने का रास्ता वही था। जाते समय तो किस्मत ने बच्चे की मांग को टाल दिया, लेकिन लौटते समय पुत्र का पलड़ा भारी रहा।

 

‘सरस्वती शिशु मंदिर का छात्र हूं।’ दुकानदार बोला, ‘बेटा, ‘मेड इन इंडिया’ खिलौने दिलाने की जिम्मेदारी मेरी है।’ दुकानदार ने बच्चे से यह वादा किया?। आपको विश्वास नहीं होगा, उस दुकानदार ने उस दिन से ‘मेड इन इंडिया’ खिलौने रखना शुरू कर दिया। घटना छोटी है, लेकिन सीख कितनी बड़ी है, यह हम सबको आज समझने की आवश्यकता है। किस्मत जैसे लोग धन्य हैं, जिन्होंने अपने बच्चे को ऐसे संस्कार दिए। 

हुआ यूं कि सारांश ने खिलौने वाली दुकान के सामने धरना दे दिया। बोला कि जब तक खिलौना नहीं दिलाओगे, तब तक यहां से नहीं जाऊंगा। आसपास के लोग भी बाल हठ का आनंद लेने लगे। पत्नी ने भी कह दिया कि बच्चे को खिलौना दिला दीजिए। लिहाजा, पिता को बालक की हठ के आगे झुकना पड़ा। सारांश को लेकर मां दुकान पर पहुंची। दुकानदार ने सारांश के हाथ में खिलौना थमा दिया। मोल-भाव होने लगा।

दुकानदार ने खिलौने की कीमत लगभग 160 रुपये बताई, लेकिन किस्मत की पत्नी मोल-भाव कर उसे 100 रुपये पर ले आई। इतनी देर में सारांश ने खिलौने के पैकेट को उलट-पलट कर देख लिया था। जब उसकी मां पैसे देने लगी तो उसने रोका। बच्चे ने कहा, ‘मां! यह पढ़ो, क्या लिखा है।’ मां ने पैकेट पर लिखे को पढ़कर बताया कि मेड इन चाइना लिखा है। यह सुनकर सारांश ने खिलौने को धीरे से दुकानदार के सामने खिसका दिया और कहा कि मुझे नहीं चाहिए। दुकानदार ने पूछा- क्या हुआ? मां ने बताया कि उस पर मेड इन चाइना लिखा है, बच्चे ने पढ़ लिया। अब वह इसे नहीं लेगा।

जरा सोचिए! उस छोटे से बच्चे के मन में खिलौने के प्रति कितना मोह था कि उसने सड़क पर खिलौने के लिए तमाशा खड़ा कर दिया। लेकिन जब खिलौना मिल गया और जैसे ही उसने जाना कि यह ‘मेड इन चाइना’ है तो उसका मोह खिलौने से इस कदर भंग हो गया कि उसने इसे लौटा दिया। इस बात को देखकर दुकानदार दुकान से बाहर आया। उसने बच्चे को हंसते हुए प्रणाम किया और पूछा, ‘बेटा किस विद्यालय में पढ़ते हो।’

सारांश ने बताया, ‘सरस्वती शिशु मंदिर का छात्र हूं।’ दुकानदार बोला, ‘बेटा, ‘मेड इन इंडिया’ खिलौने दिलाने की जिम्मेदारी मेरी है।’ दुकानदार ने बच्चे से यह वादा किया?। आपको विश्वास नहीं होगा, उस दुकानदार ने उस दिन से ‘मेड इन इंडिया’ खिलौने रखना शुरू कर दिया। घटना छोटी है, लेकिन सीख कितनी बड़ी है, यह हम सबको आज समझने की आवश्यकता है। किस्मत जैसे लोग धन्य हैं, जिन्होंने अपने बच्चे को ऐसे संस्कार दिए।

Topics: शिशु मंदिरस्वदेशी ज्ञान‘मेड इन इंडिया’
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